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भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक भाई दूज : गुड़िया झा

भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक भाई दूज : गुड़िया झा

हमारी भारतीय संस्कृति में विभिन्न प्रकार के पर्व त्योहार मनाये जाते हैं। सभी का अपना एक अलग उद्देश्य होता है। भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक भाई दूज भी उन्हीं में से एक है। हमारी भारतीय संस्कृति में जितना महत्व रक्षा बन्धन का है उतना ही महत्व भाई दूज का भी है।
भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक यह पर्व दीप महापर्व के अंतिम दिन मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यह मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन बहन भाई को टीका कर उसकी दीर्घ आयु और सुख समृद्धि की कामना करती है। इस दिन भाई द्वारा अपनी बहन के घर जाकर उसके हाथ का भोजन करने की विशेष परंपरा है। ऐसा माना जाता कि इससे भाई की आयु और बहन के सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। समय का अभाव और बदलती हुई परिस्थितियों के कारण हम चाहे कितने भी आधुनिक युग में क्यों न हों, हमारी संस्कृति ही वह मजबूत डोर है, जो हमारे स्नेह और प्रेम को एक दूसरे से बांधे रखती है।

1, संस्कृति, जो हमें सिखाती है रिश्तों को संजोना।
भले ही इस नयी तकनीक के युग में भागदौड़ और व्यस्त भरी जीवनशैली में हमारे पास समय का अभाव रहता है। ये हमारी संस्कृति ही है, जो हमें समय-समय पर याद दिलाती है कि हम चाहे जितनी भी सफलता की बुलंदियों पर पहुंच जायें, हमें रिश्तों को मजबूती प्रदान करने की सफलता इन संस्कृतियों के माध्यम से ही मिलती है। इन रिश्तों के माध्यम से ही हमें पता चलता है कि हमारे जीवन में परिस्थितियां चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल, ये रिश्ते ही हमारी मदद करने और हमारा हौसला बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं। दुनिया में प्रत्येक वस्तु की अपनी एक अलग ही कीमत होती है। लेकिन ये रिश्ते ही हैं जिनकी कोई कीमत नहीं होती है। ये संस्कृति ही हमें सिखाती है कि इन रिश्तों के आगे पैसों की कोई कीमत नहीं होती है। हमारा अपने रिश्तों के प्रति भी कुछ कर्तव्य होते हैं। क्यों न हम अपने कर्तव्य और स्नेह को साथ लेकर चलें।

2, पौराणिक मान्यता।
सूर्य देव की पत्नी छाया की कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देख कर हर्ष विभोर हो गई। प्रसन्न होकर भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया।
इससे खुश होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा। तब बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन कराये उसे आपका भय ना रहे। यमराज ‘तथास्तु’ कह कर यमपुरी चले गये। ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरे श्रद्धा से बहनों के स्वागत को स्वीकार करते हैं, उन्हें तथा उनकी बहन को यम का भय नहीं रहता।

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