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सर्दियों में ना करें शीतली और शीतकारी प्राणायाम : जगदीश से जानिए इसके वैज्ञानिक कारण

सर्दियों में ना करें शीतली और शीतकारी प्राणायाम : जगदीश से जानिए इसके वैज्ञानिक कारण

शीतली और शीतकारी दो ऐसे प्राणायाम है जिनको करने से शरीर में ठंडक पैदा होती है.
इसलिए इन दोनों प्राणायाम को सर्दी में नहीं करना चाहिए.

आइए पहले जानते हैं क्या है प्राणायाम

प्राणायाम योग के आठ अंगों में से एक है।
अष्टांग योग में आठ प्रक्रियाएँ होती हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, तथा समाधि ।
प्राणायाम = प्राण + आयाम ।
इसका शाब्दिक अर्थ है – ‘प्राण (श्वसन) को लम्बा करना’ या ‘प्राण (जीवनीशक्ति) को लम्बा करना’।
(प्राणायाम का अर्थ ‘स्वास को नियंत्रित करना’ या कम करना नहीं है।)
प्राण या श्वास का आयाम या विस्तार ही प्राणायाम कहलाता है।
यह प्राण -शक्ति का प्रवाह कर व्यक्ति को जीवन शक्ति प्रदान करता है।

शीतली और शीतकारी प्राणायाम करने का तरीका

शीतली प्राणायाम- शीतली प्राणायाम का वर्णन करते हुए योगी स्वात्माराम हठ प्रदीपिका में कहते हैं-

जिह्वा वायुमाडडष्य पूर्ववत्कुंभसाधनम।

शनकैर्घराणरंक्षाभ्यां रेचयेत्पवनं सुधी:।। (ह.प्र. 2/57)

अर्थात्- जिह्वा को होठों से बाहर निकालकर उसे पक्षी की चोंच के समान गोल बनाते हुए जिह्वा के मध्य से शनैः शनैः पूरक ( श्वास को अंदर खींचें ) करें।
फिर आभ्यन्तर कुम्भक ( श्वास को रोके ) में मूल बन्ध व जालन्धर बन्ध तगायें।
यथा शक्ति कुम्भक के पश्चात जालन्धर बंध खोले और दोनों नासारन्ध्रो से धीरे धीरे रेचक ( श्वास को बाहर करे ) करें।

इसी को शीतली प्राणायाम कहा गया है।

सीत्कारी प्राणायाम- सीत्कारी प्राणायाम का वर्णन करते हुए हठयोग प्रदीपिका में कहा गया है-

सीत्कां कुर्यान्तथा वकत्रे घ्राणेनैव विजृम्भिकाम्।

एवमभ्यासयोगेन कामदेवो द्वितीयकः।।  (ह.प्र.-2/54)

अर्थात- दांतों को आपस में मिलाकर जिह्वा को उनके साथ लगायें।
होठों को खोलकर दांतों के मध्य से सीत्कार की आवाज के साथ पूरक करें। तत्पश्चात आभ्यन्तर कुम्भक करें।
कुम्भक के पश्चात दोनों नासारन्ध्रो से रेचक करें।
स्वामी स्वात्माराम जी कहते हैं कि इसका अभ्यास करने वाला योगी कामदेव के समान हो जाता है।

आखिर कैसे करते हैं शीतली और चित्रकारी प्राणायाम शरीर को ठंडा जानिए इसके वैज्ञानिक कारण

जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे मुंह और जीभ में कई तरह की रक्त वाहिकाएं होती है जीभ भी रक्त से भरी होती है।
रक्त के द्वारा ही पूरे शरीर में गर्मी का प्रचार होता है ।
जब हम शीतली और शीतकारी प्राणायाम करते हैं तो ठंडी श्वास मुंह में प्रवेश करती है जो मुंह और जीभ में मौजूद रक्त को ठंडा करती और जब यह ठंडा रक्त पूरे शरीर में प्रसारित होता है तो वह शरीर के अंगों को ठंडा करता है ।

अतः सर्दियों में शीतली और शीतकारी प्रणाम को नहीं करना चाहिए इसके स्थान पर आप भस्त्रिका कपालभाति प्रणाम कर सकते हैं जो शरीर में गर्मी पैदा करते हैं

जगदीश सिह
Masters in Yogic Science
Email : jagdishranchi@gmail.com

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