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अखिल भारतीय कवि सम्मेलन/ मुशायरा

रांची , झारखण्ड | अगस्त | 24, 2019 :: शकील आज़मी और मोईन शादाब के साथ ख़ूब रंग बरसा
“ख़ुद को इतना भी मत बचाया कर
बारिशें हों तो भीग जाया कर “
ऐसे ही उम्दा शेरों से मुम्बई से आये मशहूर शायर शकील आज़मी ने श्रोताओं को दिल लुभा लिया।मौक़ा था संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र कोलकाता द्वारा ध्वनि_लाइव के सहयोग से 24 अगस्त 2019 शाम पलाश सभागार डोरंडा राँची में आयोजित भव्य अखिल भारतीय कवि सम्मेलन/ मुशायरा का।
दिल्ली से मोईन शादाब की शानदार शायरी और संचालन कार्यक्रम को ऊँचे मुक़ाम तक पहुँचा दिया।इनके कलाम
“ये किस का हुस्न महकता है मेरे शेरों में
ये कौन है जो इन्हें ख़ुश-गवार करता है
तुम्हारे ग़म को मैं दिल से लगा के रखता हूँ
यही तो है जो मुझे बा-वक़ार करता है”
पर सुनने वालों ख़ूब वाहवाही हासिल हुयी।
वरिष्ठ शायर हैरत फ़र्रुख़ाबादी साहब कार्यक्रम की अध्यक्षता की, आकाशवाणी के सुनील सिंह बादल उद्घाटन समारोह का सूत्र संचालन तथा नेहाल सरैयावी साहब ने कवि परिचय प्रदान किया।
कमला सिंह ज़ीनत- दिल्ली ने
“हम आएंगे तेरे शहर में लिए बचपन को
क्या अब भी जिंदा है तेरे शहर में खिलौने वाले”
राँची से डा. शिशिर सोमवंशी ने
“अरमान मेरे दिल का यूँ भी निकल रहा है
कोई फ़ासले बना कर मेरे साथ चल रहा है”
अबरार मोज़ीब- जमशेदपुर ने
“उसकी ठोकर में ताज पहले था
वह मेरा हम मिज़ाज पहले था”
सदफ़ इक़बाल- पटना ने
“दर्द मिट्टी है ,मेरी मिट्टी में
दर्द दुनिया का कितना कमतर है”
अनीता मौर्य- कानपुर ने
“ये जो आँखों में दर्द आया है
ज़िन्दगी ने सबक सिखाया है
वो जो बेहद ज़हीन है लड़का
मेरा दिल उसने ही चुराया है”
नेहाल हुसैन सरैयावी ने
“उनकी उल्फ़त से कुछ गिला तो नहीं
हैं वो मजबूर बे वफ़ा तो नहीं
तोड़ के दिल वो मुझसे पूछते हैं
आप कैसे हैं कुछ हुआ तो नहीं ।”
साथ ही पूर्व निदेशक दूरदर्शन डॉ शैलेश पंडित-दिल्ली, सुरिंदर कौर नीलम, सीमा चंद्रिका तिवारी, माधवी मेहर, प्रेम हरि ने अपनी रचनाओं से समा बाँध दिया।
डा. सुरिंदर कौर नीलम-
“गुलशन सा बदन हो गया रंगों की प्यास है,
खुशबू सी आ रही हमारी महकी सांस है,
इन धड़कनों पे कौन अपना नाम लिख गया,
लगता है आज कोई यहां आस -पास है”
सीमा चंद्रिका तिवारी-
“देखा नहीं तुम्हें पर यह फिर भी जानते हैं
पास ही मुझको सोचते ज़रूर तुम खड़े हो”
माधवी मेहर-
“ये कौन सी बला है जिसे इश्क़ कहते हैं
है दर्द या दवा है जिसे इश्क कहते है”
प्रेम हरि-
“अभी क्या जरूरत है तुमको मेरी
कल नाम मेरा पुकारा करोगे”

मुख्य अतिथि थे वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक संजय कुमार इस मौके पर उन्होंने कहा कि आज की व्यस्त जीवन में धीरे-धीरे साहित्य कला संस्कृति से दूर हो रहे हैं जिसके कारण हमारा जीवन तनावपूर्ण हो रहा है, उन्होंने सभी कलाकारों के प्रति आभार व्यक्त किया और इसे बड़ा आयोजन बताया।

समारोह में स्पिकम मैके के के राजीव रंजन, दूरदर्शन के पूर्व निदेशक प्रमोद झा, शायर नसीर अफसर, शिल्पकारी के अतुल कुमार सारिका भूषण, सदानंद सिंह यादव और अन्य लोग उपस्थित थे।

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