जानिए पँ रामदेव पाण्डेय से क्या है कार्तिक मास के वे सात नियम, जो देते हैं सुख-समृद्धि.
आलेख़

जानिए पँ रामदेव पाण्डेय से क्या है कार्तिक मास के वे सात नियम, जो देते हैं सुख-समृद्धि.

  • कार्तिक मास में 7 नियम प्रधान माने गए हैं

  • हिन्दू पौराणिक और प्राचीन ग्रंथों में कार्तिक मास का विशेष महत्व

  • जिन्हें करने से मिलते हैं शुभ फल

  • कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक

जानिए पँ रामदेव पाण्डेय से क्या है कार्तिक मास के वे सात नियम, जो देते हैं सुख-समृद्धि.

 

रांची, झारखण्ड । अक्टूबर | 09, 2017 :: हिन्दू पौराणिक और प्राचीन ग्रंथों में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस पूरे कार्तिक मास में व्रत व तप का विशेष महत्व बताया गया है। उसके अनुसार, जो मनुष्य कार्तिक मास में व्रत व तप करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पुराणों में कहा है कि भगवान नारायण ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के सर्वगुण संपन्न माहात्म्य के संदर्भ में बताया है। कार्तिक मास में 7 नियम प्रधान माने गए हैं, जिन्हें करने से शुभ फल मिलते हैं और हर मनोकामना पूरी होती है।
ये 7 नियम इस प्रकार हैं –

पहला नियम :-

दीपदान – धर्म शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास में सबसे प्रमुख काम दीपदान करना बताया गया है। इस महीने में नदी, पोखर, तालाब आदि में दीपदान किया जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

दूसरा नियम :-

तुलसी पूजा – इस महीने में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। वैसे तो हर मास में तुलसी का सेवन व आराधना करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है।

तीसरा नियम :-

भूमि पर शयन – भूमि पर सोना कार्तिक मास का तीसरा प्रमुख काम माना गया है। भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं।

चौथा नियम :-

तेल लगाना वर्जित – कार्तिक महीने में केवल एक बार नरक चतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) के दिन ही शरीर पर तेल लगाना चाहिए। कार्तिक मास में अन्य दिनों में तेल लगाना वर्जित है।

पांचवां नियम :-

दलहन (दालों) खाना निषेध – कार्तिक महीने में द्विदलन अर्थात उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई आदि नहीं
खाना चाहिए।

छठा नियम :-

ब्रह्मचर्य का पालन – कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है। इसका पालन नहीं करने पर पति-पत्नी को दोष लगता है और इसके अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं।

सातवां नियम :-

संयम रखें – कार्तिक मास का व्रत करने वालों को चाहिए कि वह तपस्वियों के समान व्यवहार करें अर्थात कम बोले, किसी की निंदा या विवाद न करें, मन पर संयम रखें आदि

कार्तिक मास का आध्यत्मिक एवं वैज्ञानिक पक्ष

आध्यत्मिक ऊर्जा एवं शारीरिक शक्ति संग्रह करनें में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। इसमें सूर्य एवं चन्द्र की किरणों का पृथ्वी पर पड़ने वाला प्रभाव मनुष्य के मन मस्तिक को स्वस्थ रखता है।

उत्सवों और त्यौहारों का मास -कार्तिक मास

हिन्दु पंचांग के अनुसार वर्ष का आठवां महीना ‘कार्तिक मास’ के नाम से जाना जाता है। पुरे माह में ब्रह्म मुहुर्त में स्नान, पाठ, तुलसी पूजन, व्रत कथा श्रवण दीपदान आदि का महात्मय बताया गया है। इसी मास में अधिकतम त्यौहार आते हैं जैसे:

शरद पूर्णिमा
करवा चौथ
अहोई अष्टमी
रमा एकादशी
गोवत्स द्वादशी
नरक चर्तुदशी
तुलसी विवाह
हनुमान जयंति
दीपावली पर्व
अन्नकूट महोत्सव
गोवर्धन पूजा
भैया दूज
कार्तिक छठ पूजा
देवोत्थान एकादशी

जहाँ स्कंद पुराण में इसे सबसे अच्छा महीना माना गया है वहीं पद्म पुराण में कार्तिक मास को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष एवं भक्ति देने वाला मास कहा गया है।

7 नियम

पुराणों में कहा गया है कि भगवान नारायण ने ब्रह्मा जी को, ब्रह्मा जी ने नारद जी को और नारद जी ने राजा पृथु को कार्तिक मास के सर्वगुण संपन्न माहात्म्य के संदर्भ में बताया है। कार्तिक मास में 7 नियम प्रधान माने गए हैं।

दीपदान

धर्म शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास में सबसे प्रमुख नियम दीप दान करना बताया गया है। इस महीने में नदी, पोखर, तालाब, मन्दिर एवं शयन कक्ष में दीपदान किया जाता है। ऐसा करने से जीवन से अज्ञानरूपी अंधकार दूर होता है एवं भक्ति, सुख,वैभव एवम् लक्ष्मी का शुभ आगमन होता है।

श्री तुलसी पूजा

श्री कृष्ण प्रेयसी के नाम से भी सम्बोधन किया जाता है तुलसी जी को। वैसे तो हर महीने तुलसी जी की पूजा करनी चाहिए। परन्तु विशेष रूप से इस महीने में तुलसी जी की वन्दना और पूजा करने से इसका फल कई गुणा हो जाता है एवं निश्चित ही श्री कृष्ण प्रेम की प्राप्ति होती है। श्री तुलसी वन्दन, श्री तुलसी परिक्रमा एवं श्री कृष्ण नाम संकीर्तन तुलसी जी के पास बैठ कर उच्च स्वर से गान करने से तुलसी मैया अति प्रसन्न होती है।

भूमि पर शयन

भूमि पर शयन-कार्तिक मास का तीसरा मुख्य नियम हैं। इससे मन में कोमलता आती है। अहम् का नाश होता है। विकार समाप्त होते हैं।

तेल और दालें वर्जित

कार्तिक महीनें में केवल एक बार नरक चतुर्थी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) के दिन ही तेल सेवन किया जाता है। कार्तिक मास में अन्यदिनों में तेल पकाना और लगाना दोनों नहीं किये जाते।

दलहन (दालों) खाना निषेध: कार्तिक महीने में द्विदलन अर्थात उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई, तथा बैंगन नहीं खाना चाहिए।

ब्रह्मचर्य का पालन

कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है। इसका पालन नही करने पर पति पत्नि को दोष लगता है और इसके अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं।

संयम रखें

कार्तिक मास का व्रत करने वालों को चाहिए कि वह तपस्वियों की भांति व्यवहार करें। कम बोलें, किसी की निंदा नहीं करें विवाद नहीं करें। मन पर संयम रखें।

इन सभी उपरोक्त नियमों से अलग नित्य से कम से कम दुगना भजन, कथा श्रवण एवं वे सभी क्रियाएँ जिससे ठाकुर जी के प्रति प्रीति बढ़े एवं उनका स्मरण सभी पहर बना रहें। करते रहना चाहिए। प्रिया लाल जी को इस मास में भजन अत्यधिक प्रिय है।

 

पँ रामदेव पाण्डेय 8877003232

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