छठ व्रत की शुरूवात मध्य विहार ( मगध) से मानी जाती है , जो कालान्तर मे विश्वव्यापी हो गया , इस पर्व मे सूर्य , षष्ठी देवी (छठ माई ),और गँगा जी की विशेष पूजन का विधान है , जबकी छठ की कथा के मुख्यपात्र राजा शर्याति की कन्या सुकन्या और इनके वृद्ध पति ऋषि च्यवन् और भगवान सूर्य के युगल पुत्र अश्विनी और कुमार है .नागकन्या , सुकन्या ( राजा शर्याति की इकलोती कन्या) इसके बाद द्रोपदी और विम्बसारपुर (पटना ) का एक राजा ने किया था,
मगध ने विश्व को दो महान सूर्योपासक और खगोल शास्त्र का जनक विश्व को दिया , आर्यभट्ट(476 ई ) और वाराहमिहिर (505 ई ) को दिया,दोनो ब्रह्मण थे, इसी काल मे देव ( औरँगाबाद- बिहार ) मे सूर्यमन्दिर की स्थापना काल मानी जाती है ,इसके प्रर्वतक वाराह मिहिर ही माने जाते है, वाराह के भाई भद्रबाहु( भद्रबाहु सँहिता के लेखक) ने जैन धर्म ग्रहण कर लिया था , वाराह के नवजात पुत्र की मृत्यु दोनो भाई दुखित थे,पुत्र की प्राप्ती और खगोल विद्या के उन्नति के लिए वाराह ने सुर्योपासना की थी, वाराह के ही समय देव मे छठ डाला प्रथा का प्रचलन हुआ, आज भी देव सूर्य मन्दिर परिसर मे किसी दिन भी डालाछठ की परम्परा कायम है,पर अन्यत्र क्षेत्रो मे कार्तिक, चैत्त और भादो मे षष्ठी तिथि को छठ होता है,अजन्ता एलोरा ( मध्यप्रदेश) कोणार्क ( उडिसा), कालपी के अलावा मिश्र, वेवीलोन
और हडप्पा के नदी घाटी सभ्यता मे सूर्य उपासना के सूत्र मिलते है,
इस तरह सूर्य उपासना का पर्व लोक सँस्कृति के साथ जूड गया ,
छठ के पारम्परिक गीत –
चार प्रहर राती जल थल सेवलू
सेवलू चरण तोहार छठ मैया
प्रात: दर्शन देहु गँगा मैया…..ऽऽ
सभवा बैठन को ससुर मागो
मचिया बठन के सास
प्रात: दरशन देहु गँगा मैया …ऽऽ
डलिया ढोवन को स्वामी मागिला
पोथिया पढन को बेटा माँगिला
भनसा बैठन को पूतोह छठ मैया
प्रात: दरशन देहु गँगा मैया …….ऽऽ
बैनवा बाटन को बेटी माँगिला
घोडवा चढन को दामाद छठ मैया
प्रात: दरशन देहु गँगा मैया …..ऽऽ
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इस पारम्परिक गीत मे एक व्रती अपने सम्पुर्ण परिवार की पूर्णता चाहती है ,इसके साथ गँगा मैया और छठ माई ( वच्चो के रक्षा करनेवाली षष्ठी देवी )के दर्शन की भी कामना करती है ।
भगवान सूर्य की वँश परम्परा
दुनिया मे तेज है तो तीन मे – सूर्य , चँद्र और अग्नि मे, क्षत्रिय कूल परम्परा मे यही तीन है, कालान्तर मे रक्त अशुद्धियाँ भी आई और इन जातियो मे दलित भी समा गई , जैसे कहा जाता है कि महाभारत का खलनायक दुर्योधन के बचे हुए वशँज दुसाध जाति के हो गये,इस तरह जातियो मे बदलाव आया , महाभारत का युद्ध रक्त अशुद्धि का भी एक कारण था।
अग्निपुराण के अनुसार-
भगवान विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा जी » मरीची» कश्यप+ अदिति( राजा दक्ष की कन्या) »
सूर्य की पाँच पत्नियाँ हुई 1 राज्ञी , 2 प्रभा . 3 सँज्ञा , 4 बडवा , 5 छाया ,
1-सँज्ञा ( त्वष्टा की वेटी) से – 1 – वैवस्वत् मनु ,2 – यमराज , 3 – यमुना नदी ,
2-छाया ( विश्वकर्मा की पुत्री )- 1- सावर्णि मनु, 2- शनिश्चर , 3 -ताप्ती नदी, 4- विष्टि ( भद्रा)
3- बडवा से – 1 – अश्विनी , 2 – कुमार – आयुर्वेद के जनक हुए ,
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वैवस्वत् मनु की छीक से राजा इक्ष्वाकु हुए,
इक्ष्वाकु के तीन पुत्र 1 – विकुक्षि – इस वँश मे लगभग 55 पिढी मे अयोध्या के राजा राम हुए,
2- राजा निमि – इस वँश मे राजा जनक सीरध्वज हुए , इनकी कथित/ पालित पुत्री सीता हुई,
3 – दण्डक
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कौन है छठ माई
छठ पूजा मे श्री सूर्य , गँगा माई और छठ माई का सँयुक्त पूजन होता है,
सूर्य की पूजा के कई कारण है, परन्तु छठ कथा के पात्र सुकन्या ( राजा यर्याति की वेटी ) सूर्य वँश की थी ,नाग कन्या के साथ सुकन्या ने ही व्रत शुरू किया, इस कारण भी सूर्य की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ,
गँगा माई – गँगा जीवन दायिनी है , सिर्फ गँगा नदी ही नही सभी जल और जल स्त्रोत को हिन्दु जन गँगा ही कहते है, बरसात के बाद जैसे हम नवरात्र और दीपावली मे घर द्वार की सफाई करते है , ठीक वैसे ही इसके बाद जल शुद्धिकरण का सामुहिक अभियान है छठ पूजन, क्योकि जल ही जीवन है,भगवान कृष्ण ने जल शुद्धि का काम कालियानाग दमन कर किया और गोपियो के चीर हरण कर किया था, सभी गोपियाँ श्री कृष्ण को पाने के लिए श्री कात्यायनी देवी का ही ब्रत कर रही थी ,
छठ माई – कात्यायनी देवी की पूजन षष्ठी तिथि को ही नवरात्र मे होता है , इस लिए एक मान्यता है कि यह कात्यायनी देवी ही छठ माई है , यह कात्यायनी जी माँ पार्वती का एक स्वरूप है ,यह पार्वती के पुत्र कार्तिक ( सुब्रह्मण्यम ) है, इनका छ: (6 )माथा है ,इसलिए इनके माँ को अर्थात पार्वती को षष्ठी देवी कहा जाता है, इनकी सवारी बिल्ली मानी जाती है , क्योकि बिल्ली की छ: ईन्द्रिया सदैव जागृत रहती है, षष्ठी देवी नवजात बालको की रक्षा करने वाली देवी है,
उगते और डुबते सूर्य को जल दान- सूर्य की किरणो मे सविता देवी का वास है , यह गायत्री है , गायत्री मँत्र मे 24 अक्षर होते है ,एक अहोरात्र ( सूर्योदय से सूर्योदय तक )मे 24 घन्टा ही होता है,इस पूजन मे सुर्य की प्रिय पत्नी उषा और सँध्या की भी पूजन होती है
छठ के अर्घ्य मे परहेज
श्री भगवान भुवन भास्कर को दुध, ईत्र, गन्ना का रस, जल, दुध , दही , घी , मधु , केला, नारियल , डेम्भा( बडा नीबु और गँगा जल का अर्घ्य देते है ,1 / 3 / 5 /7 / 12 बार यथा सम्भव देते है ,स्वयँ की श्रद्धा और भक्ति पर निर्भर है .लेकिन दुध, दही, मधु और घी का अर्घ्य ताँबा के पात्र से कभी भी न दे ,ताँबा पात्र मे दुध और मधु रखने से रासायनिक प्रतिक्रिया होती है और वह सामान जहरीला हो जाता है,
यह अर्घ्य सूर्य की रश्मि को देते है , जब किरण दिखाई दे उसी मे अर्घ्य दे ताकि सूर्य की किरण अर्घ्य को वेधते( पार कर) हुए हमारी शरीर को स्पर्श करे और इसे बनने वाली तासीर मेरे शरीर को मिले, यही अर्घ्य का विधान है ,
हाथो के दोनो अँजलि से भी अर्घ्य दे सकते है , जल मे लालफुल , रोरी, ईत्र ,हल्दी , और फल मिलाकर दे सकते है ,
अर्घ्य देने का मँत्र –
ॐ नमोऽस्तु सूर्य्याय नमोऽस्तु भानवे नमोऽस्तु वैश्वानर जातवेदसे।
त्वमेव चाऽअर्घ्य प्रतिगृह्णण् देवाधिदेवाय नमोऽस्तु तुभ्यम् ।।
नमो भगवते तुभ्यँ नमस्ते जातवेदसे ।
दत्तमर्घ्य मया भानो त्वँ गृहाण नमोऽस्तुते ।
एहि सूर्य्यसहस्त्राँशो तेजोराशे जगत्पते ।
अनुकम्पय मा भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर ।
प्रणाम मँत्र – ॐ नम: सवित्रे जगदेकचक्षुसे जगत्प्रसूति स्थितिनाश हेतवे।। त्रयी मयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरच्ञिनारायण शँकरात्मणे।।
सूर्य गायत्री मँत्र –
ॐ आदित्यादि विद्यहे सहस्त्र किरणाय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात् ।।
नोट – अर्घ्य का जल पैर मे न लगे , और इस जल को माथा और आँख मे लगा ले ,
छठ कार्यक्रम- मंगलवार -पँचमी – 24 /10/2017-सुबह नहाय खाय
बुधवार
बुधवार- 25/10/ 2017 – शाम को खरना , 5:30 बाद
गुरुवार- 26/10/2017 – शाम – सूर्यास्त- 5: 25 पहला अर्ध्य
शुक्रवार- 27/10/2017 – सुबह – सूर्योदय 6:09 दुसरा अर्घ्य, इसके बाद पारण –
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नोट अगले साल अधिक मास होगा जेठ मे इसलिऐ अगले साल नया तोर से छठ नही किया सकता है , जो अगले साल छठ करना चाहते है – वे इस साल ही करे या फिर 2019 मे छठ करे ,
2018 का छठ 11,12,13,14, नवम्बर
पँ रामदेव पाण्डेय 8877003232-