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विश्व टीकाकरण सप्ताह (24-30 अप्रैल) : टीका से बनता है जीवन सुरक्षित

अप्रैल | 24, 2018 ::   विश्व टीकाकरण सप्ताह (24-30 अप्रैल) एक महत्वपूर्ण वैश्विक अवसर है, जो कि बच्चों के लिए टीकाकरण के महत्व को रेखांकित करता है।

विश्व टीकाकरण सप्ताह, बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के साथ टीकाकरण के संबंधों की ओर ध्यान आकर्षित करता है। यह सप्ताह प्रत्येक वर्ष 24 से 30 अप्रैल तक मनाया जाता है। इस वर्ष के विश्व टीकाकरण सप्ताह का थीम है – ‘‘प्रोटेक्टेड टुकेदर, #VaccinesWork । यह थीम टीकाकरण के बारे में साझा जिम्मेवारी की ओर ध्यान खींचता है तथा टीकाकरण को बच्चों की सुरक्षा, परिवारों, समुदायों और खासकर नवजात बच्चों के लिए एक सुरक्षा कवच के तौर पर स्थापित करता है। टीकाकरण सप्ताह इस तथ्य पर भी बल देता है कि, हालांकि टीकाकरण के द्वारा बहुत सारे बच्चों के जीवन को सुरक्षित बनाया गया है, लेकिन फिर भी लगभग 1.5 मिलियन बच्चे टीका से बचाव योग्य बीमारियों के कारण प्रत्येक वर्ष मर रहे हैं। यह ऐसे विश्व में अस्वीकार है, जहां सुरक्षित एवं कम कीमत के टीके बच्चों के जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए उपलब्ध हैं।

वैश्विक रूप से 7 में से एक बच्चा – 19 मिलियन से अधिक नियमित टीकाकरण लेने से वंचित रह जाता है। इन बच्चों में सेे 13 मिलियन बच्चे ऐसे हैं, जिनको कभी टीका नहीं दिलाया गया, जिसके कारण उन बच्चों और उनके समुदाय पर बीमारी और मृत्यु का खतरा बना रहता है। टीकाकरण का कम कवरेज माता और बच्चे को स्वास्थ्य के अन्य क्षेत्रों से मिलने वाले लाभों को प्रभावित करता है। गरीब और वंचित बच्चों को जिन्हें टीकाकरण की अत्यधिक आवश्यकता है, उनका जरूर टीकाकरण कराया जाना चाहिए।

भारत में नियमित टीकाकरण कार्यक्रम
भारत में नियमित टीकाकरण कार्यक्रम, 1985 में राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किए जाने से लेकर अब तक लंबी यात्रा तय की है। शुरूआत में सिर्फ 6 टीका निरोधी बीमारियों (बीसीजी, डीपीटी, ओपीवी एवं खसरा) के लिए टीके जाते थे। आज, सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत 10 बीमारियों (डिप्थीरिया, कूकूर खांसी, टेटनस, पोलियो, टीबी, खसरा, हेपेटाइटिस बी, न्यूमोनिया, मेनिनजाइटिस और रोटावाइरस) के लिए टीके लगाए जाते हैं। राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम, टीके से बचाव योग्य बीमारियों और बच्चों की मृत्यु को कम करने के लिए कम लागत का सबसे प्रभावी उपाय है।

भारत एवं झारखंड में टीकाकरण की 10 महत्वूर्ण बातें

1. भारत में वर्ष 2010 से टीकाकृत बच्चों की संख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है, जो कि इस दशक में टीकाकरण कवरेज के मामले में एक बड़ी उपलब्धि है। इस दौरान भारत में टीकाकरण से वंचित बच्चों के मामले में 45 प्रतिशत की कमी आई है, 2010 में यह 5.3 मिलियन से कम होकर 2016 में 2.9 मिलियन पर पहुंच गया।

2. भारत 9 प्रतिशत के साथ उन 10 देशों में शामिल है, जिसके टीकाकरण कवरेज के प्रतिशत प्वाइंट्स, में 2010 से 2016 के बीच बढ़ोतरी हुई है।

3. वर्ष 2016 तक, 6 देशों के साथ, भारत में विश्व के 15 प्रतिशत टीकाकरण से वंचित बच्चे रहते हैं।

4. चेचक और पोलियो का भारत से उन्मूलन कर दिया गया ह,ै वहीं मातृ एवं नवजात टेटनस का देश से सफाया कर दिया गया है। डिप्थीरिया, खसरा एवं काली खांसी के मामले में भी 80 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

5. भारत में नियमित टीकाकरण के प्रायः 9 मिलियन सत्र आयोजित किए जाते हैं। प्रत्येक वर्ष 26 मिलियन बच्चे और 30 मिलियन गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण कराया जाता है। 27,000 कोल्ड चेन प्वाइंट नेटवर्क के सहयोग से इन टीकों को संरक्षित करके रखा जाता है।

6. टीका निरोधी बीमारियों के बोझ को कम करने के लिए टीकाकरण के उच्च कवरेज को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। पूर्ण टीकाकरण कवरेज के मामले में भारत ने महत्वूर्ण प्रगति हासिल की है। 2005-2006 (एनएफएचएस 3) में 43.5 प्रतिशत से बढ़कर यह 2015-2016 (एनएफएचएस 4) में 62 प्रतिशत पर पहुंच गया।

7. झारखंड में टीकाकरण कवरेज 2005-06 (एनएफएचएस 3) में 34.2 प्रतिशत से बढ़कर 2015-16 (एनएफएचएस 4) में 61.9 प्रतिशत पर पहुंच गया। शिशु मृत्यु के मामले में झारखंड ने बहुत अच्छी प्रगति दर्ज की है। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु, लगभग 40 प्रतिशत तक कम हो गई है (अनुमान के तौर पर 5 वर्ष से कम उम्र के 16,500 बच्चों के जीवन को सुरक्षित बनाया गया है) और शिशु मृत्यु में भी 25 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है (एसआरएस 2011-16)।

8. एक अनुमान के तौर पर झारखंड में 3,00,000 शिशु अभी भी बुनियादी टीकाकरण से वंचित हैं। वर्तमान मूल्यांकन इस बात की ओर इशारा करता है कि टीकाकरण न कराने या आंशिक टीकाकरण कराने का सबसे बड़ा कारण माता-पिता के अंदर टीकाकरण के लाभ के बारे में जागरूकता की कमी, टीकाकरण के बाद होने वाले प्रतिकूलताओं का डर और परिचालन संबंधी कारणों जैसे कि टीकाकरण सत्र के दौरान टीकों और टीका देने वालों की अनुपलब्धता आदि का होना है। 90 प्रतिशत से अधिक बच्चों तक टीकाकरण को पहुंचाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए ऐसे बच्चों तक पहुंचना आवश्यक है।

9. झारखंड में मिशन इंद्रधनुष के 4 चार चरण अप्रैल 2015 से जुलाई 2017 के बीच आयोजित किए जा चुके हैं, ताकि उन बच्चों का संपूर्ण टीकाकरण कराया जा सके, जो कि टीका लेने से वंचित रह गए हैं या फिर उन्होंने बीच में ही इसे छोड़ दिया है। सभी बच्चों तक इसे पहुंचाने के लिए इस अभियान के तहत शहरी बस्तियों, खानाबदोश आबादियों, ईंट भट्ठों, निर्माण स्थलों तथा दूसरे प्रवासी बस्तियों (मछुआरों की बस्ती, नदी किनारे रहने वाली प्रवासी आबादी, आदि ) तथा टीका से वंचित तथा सुदूर आबादी के बीच यह अभियान चलाया गया।

10. हालांकि इसमें महत्वपूर्ण सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। सांख्यिकीय रूप से, ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले बच्चों के पूर्ण टीकाकरण की संभावना काफी कम है। यह असमानता मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तरप्रदेश जैसे राज्य में बहुत स्पष्ट है (एनएफएचएस 4)।

नई पहल
ग्राम स्वराज अभियानः झारखंड सरकार का स्वास्थ्य विभाग, ग्राम स्वराज अभियान के एक भाग के रूप में, 21 जिलों के 252 गांवों में जहां टीकाकरण के संकेतक काफी खराब हैं, वहां 100 प्रतिशत टीकाकरण के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इन खराब प्रदर्शन वाले गांवों में मिशन इंद्रधनुष राउंड के तहत अभियान चलाएगा।

मिजेल्स एवं रूबेला (एमआर) अभियानः झारखंड सरकार का स्वास्थ्य विभाग जुन-जुलाई 2018 के महीने में राज्य में मिजेल्स एवं रूबेला के लिए टीकाकरण की शुरूआत करने जा रहा है। चार हफ्तों के इस अभियान में राज्य के 1.3 करोड़ बच्चों (9 महीने – 15 वर्ष) को चाहे वे स्कूल में हों या स्कूल से बाहर हों, एमआर टीका लगाया जाएगा।

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