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डिजिटल वर्ल्ड को बच्चों के लिए सुरक्षित बनाएं, वंचित बच्चों के लिए आॅनलाइन दायरे को बढ़ाएं : यूनिसेफ

राँची, झारखण्ड । दिसम्बर | 11, 2017 :: यूनिसेफ की वार्षिक रिपोर्ट डिजिटल डिवाइड्स को उजागर करता है और बच्चों की सुरक्षा और भलाई पर इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रभाव के बारे में मौजूदा बहस की पड़ताल करती है|

 

 

दुनिया भर में बच्चों की स्थिति को लेकर यूनिसेफ की वार्षिक रिपोर्ट को आज यहां राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में माननीय राज्यपाल ने जारी किया। इस वर्ष की रिपोर्ट का थीम है – ‘चिल्ड्रेन इन ए डिजिटल वल्र्ड’।

बच्चों की विशाल आॅनलाइन उपस्थिति के बावजूद – दुनिया भर में 3 इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से 1 बच्चा है – लेकिन इंटरनेट और डिजिटल वल्र्ड के खतरे से बच्चों को बचाने और सुरक्षित आॅनलाइन सामग्री तक उनकी पहुंच को बढ़ाने के लिए काफी कम उपाय किए गए हैं।

यह रिपोर्ट वंचित और गरीब बच्चों को डिजिटल टेक्नाॅलोजी से होने वाले लाभ की पड़ताल करता है, इसमें वे बच्चे भी शामिल हैं, जो गरीबी में पले बढ़े होते हैं या मानवीय आपातकाल से प्रभावित होते हैं। इसमें शामिल है – सूचना साधनों तक उनकी पहुंच को बढ़ाना, डिजिटल कार्यस्थलों के लिए कौशल का निर्माण करना, और उन्हें मंच प्रदान करना, जहां वे अपने को जोड़ सकें और अपने विचारों को व्यक्त कर सकें।

लेकिन यह रिपोर्ट बतलाता है कि लाखों बच्चे अभी भी डिजिटल सुविधा से वंचित हैं। दुनिया के लगभग एक तिहाई युवा – 346 मिलियन – आॅनलाइन नहीं हैं, जो कि असमानता को बढ़ा रहा है और बढ़ते डिजिटल इकोनाॅमी में बच्चों की भागीदारी की क्षमता को घटा रहा है।

झारखंड की माननीया राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि, ‘‘यदि सही तरीके से इसका लाभ उठाया जाए और सार्वभौमिक रूप से सुलभ बनाया जाए, तो डिजिटल टेक्नोलाॅजी पीछे छुट चुके बच्चों के लिए परिवर्तन कारक साबित हो सकता है। चाहे वे बच्चे गरीबी के कारण या जातीयता, लिंग, अक्षमता, विस्थापन और भौगोलिक अलगाव के कारण पीछे छुट गए हों – उन्हें अवसर की दुनिया से जोड़ा जा सकता है और उन्हें डिजिटल दुनिया में सफल होने के लिए जरूरी कौशल उपलब्ध कराया जा सकता है।’’

यूनिसेफ झारखंड की प्रमुख, डा. मधुलिका जोनाथन ने कहा कि, ‘‘यह रिपोर्ट विभिन्न स्तरों पर डिजिटल तकनीक का बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव तथा इसके खतरे के साथ-साथ इससे मिलने वाले लाभ और अवसरों के बारे में एक व्यापक तस्वीर प्रस्तुत करता है। यह रिपोर्ट स्पष्ट रूप से सरकारों, डिजिटल टेक्नाॅलोजी सेक्टर तथा टेलिकाॅम उद्योग का आह्वान करता है कि वे डिजिटल दुनिया में बच्चों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराएं। डिजिटल वल्र्ड में बच्चों के लिए ऐसी नीतियां, अभ्यास और उत्पाद का निर्माण किए जाएं, जो कि बच्चों को डिजिटल दुनियां के अवसरों का लाभ उठाने में मदद करे और उन्हें इसके नुकसान से बचाए।’’

उन्होंने कहा कि, ‘‘यह रिपोर्ट छह प्राथमिक कार्यवाहियों को चिन्हित करता है, ताकि वंचित बच्चों तक डिजिटलाइजेशन का लाभ पहुंचाया जा सके और इसके नुकसान से बच्चों को बचाया जा सके। ये प्राथमिक कार्यवाही हैं – सभी बच्चों को कम कीमत पर उच्च क्षमता का आॅनलाइन साधन उपलब्ध कराना। बच्चों को आॅनलाइन के नुकसान से सुरक्षित करना- जिसमें शामिल है, शोषण, दुव्र्यवहार, तस्करी, साइबर बदमाशी और अनुपयुक्त सामग्री का प्रकाशन; बच्चों की आॅनलाइन निजता और पहचान को सुरक्षित बनाना; बच्चों को आॅनलाइन सुरक्षित और सूचित रखने के लिए डिजिटल साक्षरता सिखाए जाएं। नैतिक मानकों और अभ्यासों को बढ़ावा देने के लिए प्राइवेट सेक्टर की शक्ति का लाभ उठाए जाएं, ताकि बच्चों को आॅनलाइन सुरक्षा प्रदान किए जा सके और इसके लाभ प्रदान किए जा सकें साथ ही बच्चों को डिजिटल नीति के केंद्र में रखा जाए।’’ ’’

महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव, विनय कुमार चौबे ने कहा, ‘‘430 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता के साथ भारत दुनिया में दुसरा सबसे बड़ा इंटरनेट का उपयोग करने वाला देश है। लेकिन इसके साथ ही भारत में इंटरनेट उपयोग के मामले में बड़े पैमाने पर लैंगिक असमानता है। वैश्विकरूप से 2017 में महिलाओं की तुलना में 12 प्रतिशत अधिक पुरूषों ने इंटरनेट का उपयोग किया। भारत में महिलाएं एक तिहाई से भी कम इंटरनेट का उपयोग करती हैं। इंटरनेट का सबसे अधिक उपयोग शहरी क्षेत्रों में होता है, इंटरनेट उपयोग के मामले में शहरी क्षेत्र का प्रतिशत 60 है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र का प्रतिशत 17 है, हालांकि इसमें वृद्धि की व्यापक क्षमता है। वर्तमान में इंटरनेट उपयोग की वृद्धि का सबसे बड़ा जरिया मोबाइल इंटरनेट का उपयोग है। शहरी क्षेत्र के 77 प्रतिशत उपयोगकर्ता और ग्रामीण क्षेत्र के 92 प्रतिशत उपयोगकर्ता इंटरनेट के उपयोग के लिए मोबाइल को प्राथमिक साधन के रूप में उपयोग करते हैं, जो कि मोटे तौर पर स्मार्ट फोन की उपलब्धता और खरीदने की क्षमता पर निर्भर करता है। सभी बच्चों तक डिजिटल वल्र्ड के मिलने वाले अवसर और लाभ को सुनिश्चित करने के साथ-साथ बच्चों को डिजिटल वल्र्ड के नुकसान से सुरक्षित करने के लिए अधिक तेज कार्यवाही, केंद्रित निवेश और व्यापक सामंजस्य और सहयोग की आवश्यकता है।’’

बाल संरक्षण आयोग की चेयरपर्सन, श्रीमती आरती कुजूर ने कहा कि,‘‘ डिजिटल टेक्नोलाॅजी से बच्चों को आॅनलाइन और आॅफलाइन नुकसान का खतरा रहता है। सूचना संचार प्रौद्योगिकी (आइसीटी) बच्चों के लिए नए तरीके के शोषण और दुव्र्यवहार को बढ़ावा दे रहा है, जैसे कि – मेड टू आर्डर’ जैसे बाल यौन शोषण सामग्री और बाल यौन शोषण की लाइव स्ट्रीमिंग। बच्चों का शोषण करने वाले आसानी से बच्चों को गुमनाम और असुरक्षित सोशल मीडिया प्रोफाइल और गेम फोरम के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं। यह कानून प्रवर्तन की शक्ति को चुनौती दे रहा है। सभी हितधारकों को एक साथ आने की आवश्यकता है, ताकि बच्चों को वहन योग्य उच्च क्षमता का आॅनलाइन साधन उपलब्ध कराया जा सके और उन्हें आॅनलाइन के नुकसान से सुरक्षा प्रदान किया जा सके।’’

कार्यक्रम में राज्यपाल के प्रधान सचिव एस के सत्पथी; एडीजी सीआइडी, एम वी राव; यूनिसेफ के पदाधिकारीगण और सरकारी स्कूल के बच्चों ने हिस्सा लिया।

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