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शिक्षक बच्चों में गैर-संचारी रोगों के खतरों को कम करने में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं : डॉ. कनीनिका मित्र

राची, झारखण्ड  | अप्रैल |  03, 2025 ::

यूनीसेफ झारखंड ने नव भारत जागृति केंद्र के सहयोग से शिक्षकों के लिए ‘बच्चों में बढ़ते गैर-संचारी रोग तथा स्वस्थ खानपान के द्वारा इसके रोकथाम एवं नियंत्रण विषय पर एक कार्यशाला आयोजित की। इस कार्यशाला का उद्देश्य शिक्षकों को बच्चों को प्रभावित करने वाले गैर संचारी रोगों जैसे मधुमेह, मोटापा तथा उच्च रक्तचाप के प्रति जागरूक करना तथा बच्चों में स्वस्थ खानपान की आदतों को विकसित करने में शिक्षकों की भूमिका के बारे में उन्हें प्रशिक्षित करना था, ताकि बच्चों में बढ़ रहे गैर-संचारी रोगों के खतरों से उन्हें बचाया जा सके।
इस कार्यशाला में रांची जिले के सात प्रखंडों के 70 से अधिक सरकारी स्कूलों के शिक्षकों, प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारियों तथा प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। कार्यशाला में यूनीसेफ झारखंड के विशेषज्ञों ने तकनीकी सत्र के माध्यम से शिक्षकों को गैर-संचारी रोगों के कारण, निदान तथा इसके रोकथाम में शिक्षकों की भूमिका से उन्हें अवगत कराया।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए यूनीसेफ झारखंड की प्रमुख डॉ. कनीनिका मित्र ने बच्चों को गैर-संचारी रोगों के खतरों से बचाने में स्वस्थ खानपान तथा बेहतर जीवनशैली के महत्व तथा शिक्षकों की भूमिका पर बल देते हुए कहा कि बच्चों में स्वस्थ खानपान की आदतों को विकसित करने में शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। उन्होंने कहा, “स्वस्थ आहार की आदतें बचपन में ही विकसित होती हैं। बच्चांे में इन आदतों के विकास में माता-पिता के साथ-साथ शिक्षकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। शिक्षकों की जिम्मेदारी केवल कक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की भी है कि बच्चे सही जीवन शैली के साथ बड़े हों, ताकि वे स्वस्थ जीवन जी सकें।”
उन्होंने आगे कहा, “स्कूल केवल पढ़ाई का केंद्र भर नहीं है, बल्कि वहां उन्हें जो वातावरण और सीख मिलती है, जो आदतें और व्यवहार वे सीखते हैं, वह उनके जीवन भर काम आती हैं। स्वस्थ खानपान, नियमित व्यायाम तथा समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देकर शिक्षक बच्चों में गैर-संचारी रोगों के खतरों को कम करने में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।”
यूनिसेफ झारखंड की संचार विशेषज्ञ आस्था अलंग ने कार्यशाला के उद्देश्य के बारे बताते हुए कहा कि बच्चों की स्वास्थ्य चुनौतियों को हल करने में समाज और शिक्षकों की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा, “इस कार्यशाला का उद्देश्य शिक्षकों को बचपन के गैर-संचारी रोगों, उनके कारणों तथा रोकथाम की रणनीतियों के साथ-साथ बच्चों के पोषण एवं जीवनशैली की भूमिका पर उन्हें प्रशिक्षित करना है, ताकि इन जानकारियों के माध्यम से न केवल शिक्षक बच्चों में गैर-संचारी बीमारियों के लक्षणों को पहचानने में सक्षम बनेंगे, बल्कि इसके रोकथाम में भी अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करेंगे।”
उन्होंने कहा, “जब शिक्षक स्वास्थ्य शिक्षा को अपने रोजमर्रा के पाठों में सहज रूप से शामिल करेंगे तो छात्र पोषण के बारे में अधिक रोचक और व्यावहारिक तरीके से सीखेंगे। यह कार्यशाला शिक्षकों को जागरूकता और प्रारंभिक हस्तक्षेप के माध्यम से बचपन की गैर-संचारी बीमारियों को रोकने हेतु उन्हें जानकारियों के माध्यम से सशक्त बनाएगा, जिससे बच्चों को इन बीमारियों से सुरक्षित बनाने और स्वस्थ बचपन को सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी।”
यूनीसेफ झारखंड के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. वनेश माथुर तथा पोषण विशेषज्ञ प्रीतीश नायक ने तकनीकी प्रस्तुतिकरण के माध्यम से शिक्षकों को बच्चों में बढ़ रहे गैर-संचारी रोगों के बढ़ते खतरे और उसके रोकथाम की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बच्चों को गैर-संचारी रोगों से बचाने हेतु समय पूर्व इसकी पहचान एवं उपचार के साथ-साथ बच्चों की जीवनशैली में सुधार और संतुलित आहार के समावेश के साथ-साथ शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया।
कार्यशाला के दौरान शिक्षकों ने भी अपने विचार और छात्रों के बीच स्वस्थ आहार की आदतों को बढ़ावा देने के अपने अनुभवों एवं चुनौतियों को साझा किया। उन्होंने स्कूल गतिविधियों में स्वास्थ्य शिक्षा के महत्व और इसके व्यावहारिक पहलुओं पर चर्चा की तथा बच्चों में बेहतर पोषण के लिए स्थानीय खाद्य विकल्पों के उपयोग पर विचार-विमर्श किया। इस कार्यशाला ने बच्चों में सही खानपान को विकसित करने में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करने के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर उपलब्ध खाद्य विकल्पों के उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्कता को भी रेखांकित किया, ताकि बच्चों के लिए पोषक आहार को सुनिश्चित कर उन्हें गैर-संचारी रोगों के खतरों से बचाया जा सके।

 

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