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सरहुल पर्व से हम सभी को भ्रातृत्व भाव “वसुघैव कटुम्बकम” की प्रेरणा मिलती है : ब्रह्माकुमारी निर्मला

राची, झारखण्ड | अप्रैल | 10, 2024 ::

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के स्थानीय सेवा केन्द्र चौधरी बगान, हरमू रोड में सरहुल पर्व जिसे फूलों का त्योहार कहा जाता है, मनाया गया। इस अवसर
पर ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन ने कहा “नव वर्ष के आगमन’ पर यह त्यौहार मनाया जाता है। जहाँ चारो और प्रकृति अपने नये कोपलों से दुल्हन जैसा सजकर परमपुरूष परमात्मा का आवाहन करती है। रंग-बिरंगी फूलों, कलियों, कोपलों से स्वर्ग जैसा नजारा छा जाता है। चिड़ियो की मीठी आवाज से हर मानव का मन प्रफूल्लत हो जाता है।

वास्तव में यह उत्सव भी अतीत की यादगार को तरोताजा करने का प्रतीक है। यह सृष्टि आदि में स्व पदार्थों व मानव में दिव्यता से सम्पन्न व सदाबहार थी। धीरे -धीरे मानवता में विकृत भावनाओं व व्यवहार ने अपना स्थान बना लिया जिससे मानव जीवन गिरती कला में आ गया और कटुता का व्यवहार होने लगा। समय सदा एक समान नहीं होता यह परिवर्तनशील है। समय के अनुसार जब मानव अपने में परिवर्तन करता है तभी वह उन्नति की ओर अग्रसर होता है। उसमें आध्यात्मिक ज्ञान का श्रोत सर्वोच्च परम सत्ता परमात्मा द्वारा मिलता है और अभी वर्तमान में वही समय चल रहा है। कहा जाता है -‘ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अंधेर विनाश’। जब धरा पर अज्ञानता छा जाती है और मानवता में दानवता आ जाती है तब वैसे समय पर परमात्मा सभी मानव आत्माओं में उनके ओरीजनल गुण, शांति, दया, प्रेम, क्षमा, शक्ति, आनन्द आदि गुणों को भरते हैं। जिसकी तुलना फूलों के साथ की गई है। परमात्मा प्रत्येक मानव
को फूलो के समान बनाकर सभी को खूशबू फैलाने के लायक बनाते है। सरहुल पर्व इसी का यादगार है। इस पर्व से हम सभी को भ्रातृत्व भाव “वसुघैव कटुम्बकम’ की प्रेरणा मिलती है।

 

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