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कब्ज केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक अवस्था भी : संतोषी कुमारी ( असिस्टेंट प्रोफेसर )

 

भारत में लगभग 20% लोग इस अवस्था से गुजरते ही है।

ऐसा व्यक्ति जिसकी विचारधारा और जीवनशैली निरुत्सा,अस्त-व्यस्त और निष्क्रिय है, उसका काम ही दुसरो को नीचा दिखाना, हमेशा क्रोध, इर्ष्या, द्वेष , लोभ, अनैतिक कार्यों में लिप्त रहते है वह अवश्य ही धीमी पाचन क्रिया एवं कब्ज से पीड़ित होता है। इसी तरह निश्चित विचार और अपरिवर्तनीय मतों वाले जिद्दी और परिवर्तनों को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार न करने वाले व्यक्तियों को कब्ज होता है और ये लोग उसे जीवन की एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार कर लेते हैं।
जिन व्यक्तियों को जीवन की अनिश्चितता और परिवर्तनों की अनिश्चितता के प्रति हमेशा मानसिक भय बना रहता है उनमें कॉन्स्टिपेशन न्यूरोसिस अथवा कब्ज के प्रति भय अवश्य पाया जाता है। यदि एक बार हम अपने संबंधों एवं अनुभव को,सदैव परिवर्तनशील अस्थाई प्रकृति को स्वीकार कर ले तो पेट सहजता से ही साफ हो जाएगा।
बौद्धिक स्वभाव एवं व्यायाम वाले व्यक्तियों तथा विद्यार्थियों को प्रायः जीर्ण कब्ज या आंतों की क्रियाशीलता में कमी की तकलीफे होती हैं।ऐसा होना स्वाभाविक ही है, क्योंकि वे शरीर की अपेक्षा मानसिक रूप से अधिक क्रियाशील रहते हैं। इसके परिणाम स्वरूप उनके मनस शक्ति के (मानसिक ऊर्जा) एवं प्राण शक्ति (शारीरिक ऊर्जा) में असंतुलन आ जाता है इस कारण उन्हें कब्ज जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है।यदि अपने दैनिक जीवनचर्या में सुबह आसन एवं शाम को टहलने या दौड़ने का कार्यक्रम भी सम्मिलित कर लिया जाए तो इस समस्या से छुटकारा पाने में सहायता मिल सकती है।

Ref.book रोग और योग

संतोषी कुमारी
असिस्टेंट प्रोफेसर
स्कूल ऑफ योग रांची विश्वविद्यालय

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