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सुरक्षित आदतों को बरकरार रखने से ही कोरोना से सुरक्षा : प्रसांता दास, प्रमुख, यूनिसेफ झारखंड

रांची, झारखण्ड | जून | 03, 2020 :: कोविड-19 महामारी के कारण हमारी जिंदगी पिछले दो महीने से अधिक समय से ठहरी हुई है। स्कूलों एवं कार्यालयों में ताला लगा है तथा बाजारें बंद हैं। इसने हमारे जीवन के लगभग सभी पहलुओं पर गहरा प्रभाव डाला है। यह हम सबके लिए एक चुनौतीपूर्ण समय रहा है, जिसने हमें शारीरिक एवं मानसिक दोनों स्तरों पर प्रभावित किया हैै। हम ऐसे समाज में रहते हैं, जहां लोगों का एक साथ उठना-बैठना, बातें करना तथा उत्सव मनाना हमारी जीवनशैली का हिस्सा रहा है, लेकिन लाॅकडाउन की पाबंदियों के कारण हमें इन सबसे भी वंचित रहना पड़ा, जो कि हमारे लिए काफी चुनौती भरा रहा है। बच्चों को तो खासकर असुरक्षा के माहौल में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्हें अपने स्कूल तथा दोस्तों से भी दूर रहने को मजबूर होना पड़ा है। कई बच्चों को तो इस दौरान हिंसा, भूखमरी तथा बीमारी जैसी स्थितियों का भी सामना करना पड़ा, जो उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा है।

इस वैश्विक महामारी ने हमारी दिनचर्या पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा है। सोशल डिस्टेंसिंग जैसे शब्द अब पूरी दुनिया में प्रचलित हो गए हैं। इसी प्रकार साबुन से नियमित तौर पर हाथ धोना तथा श्वसन प्रणाली को स्वच्छ रखना भी अब काफी महत्वपूर्ण हो गया है। मैं नियमित रूप से साबुन से हाथ धोने तथा स्वच्छता अभ्यास को व्यापक पैमाने पर अपनाए जाने का स्वागत करता हूं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देश के मुताबिक भी साबुन से हाथ धोना, सेनेटाइजर से हाथ को स्वच्छ रखना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना तथा मास्क पहनना जैसी आदतें हमें संक्रमण से बचाती है।

समय बीतने के साथ ही हमने देखा कि एहतियात के साथ लाॅकडाउन में ढील देकर कई गतिविधियों को मंजूरी दी गई है, जैसे कि कम उपस्थिति के साथ आॅफिसों को खोलना; रोड, रेल तथा हवाई यात्रा को मंजूरी देना तथा बाजारों को खोलना आदि। इस संदर्भ में, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि हालांकि प्रतिबंधों में कमी की गई है, लेकिन कोविड-19 से सुरक्षा के लिए नियमों का पालन करना अभी भी उतना ही महत्वपूर्ण है। लाॅकडाउन में दी गई ढ़ील का यह मतलब नहीं होना चाहिए कि हम इस तरह व्यवहार करने लग जाएं जैसे कि पुराना ‘सामान्य’ दिन वापस लौट आया हो! कोविड-19 अभी भी एक खतरा है और जब तक इसका कोई इलाज या वैक्सीन विकसित नहीं कर लिया जाता, हमें पूरी सावधानी के साथ नियमों का पालन करना होगा। हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे डाॅक्टर और स्वास्थ्य कर्मी पूरी मुस्तैदी के साथ दिन-रात एक कर संक्रमित लोगों को स्वस्थ्य करने में लगे हैं, ऐसे में हमारे द्वारा बरती गई लापरवाही और खतरे की अनदेखी करना, उनकी समस्या और परेशानी को बढ़ा सकता है।
मैं इस बात पर बल देना चाहता हूं कि हमें उन सावधानियों और एहतियातों का पालन करना जारी रखना चाहिए, जिसे हम शुरूआत से कर रहे हैं। जब तक अति आवश्यक न हो हमें सार्वजनिक स्थलों पर जाने से परहेज करना चाहिए। जरूरी सामानों के लिए बार-बार बाहर जाने के बजाए पूरे सप्ताह, पखवाड़ा या इससे भी अधिक के लिए एक बार खरीदारी कर लेनी चाहिए। बाजार जाते समय हमें भीड़-भाड़ से दूर रहना चाहिए तथा दूसरों के साथ 6 फीट की दूरी रखने के नियम का पालन करना चाहिए। हमें फेस मास्क पहनना जारी रखना चाहिए तथा यदि हम दुबारा से आॅफिस जा रहे हैं तो हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उचित दूरी बनाई रखी जाए तथा सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन किया जाए। सार्वजनिक स्थलों पर थूकने से बचना चाहिए तथा यदि कोई ऐसा करता है तो उसे हतोत्साहित करना चाहिए। आम जनता की सक्रिय भागीदारी से ही कोरोना संक्रमण को रोकने में सरकार और प्रशासन को मदद मिलेगी।
एक और महत्वपूर्ण बात जिस पर चर्चा जरूरी है, वह है बीमारी को लेकर सामाजिक भेदभाव। इस महामारी के कारण उत्पन्न आपदा में भय, घबराहट तथा नकारात्मकता पैदा होना स्वाभाविक है। अक्सर ये भावनाएं कुछ समुदायों, क्षेत्रों, अप्रवासी मजदूरों यहां तक कि स्वास्थ्य कर्मियों तथा वोलेंटियर्य, जो इस समय समाज के सच्चे हीरो हैं, उनके खिलाफ भी भेदभाव और अनादर के रूप में प्रकट होती हंै। हमें याद रखना चाहिए कि कोरोनावायरस लोगों को संक्रमित करने में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करता। पहचान के आधार पर भेदभाव तथा हिंसा करना अस्वीकार्य है, विशेषकर उन स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ, जो हमारी जान बचाने के लिए खुद की जान दांव पर लगाए हुए हैं।
यह महत्वपूर्ण है कि लोगों को सहायता और सुरक्षा प्रदान किया जाए, खासकर उन्हें जो बीमारी से संक्रमित हैं तथा वे प्रवासी भी जो इस तपती गर्मी में लंबी दूरी तय कर अपने घर सुरक्षा की आस लिए आए हैं। इससे भी अधिक, हम डाॅक्टरों, नर्सों, आशा कार्यकर्ताओं, सफाई कर्मियों तथा सामाजिक स्वयंसेवकों का सम्मान करें तथा उन्हें अपना समर्थन और सहयोग दें, जो खुद की जान खतरे में डालकर लोगों का उपचार कर रहे हैं तथा सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं। जब हम अपनी सुरक्षा करते हैं, तब हम वास्तव में उनके कामों को ही आसान बनाते हैं। बीते कुछ हफ्तों ने हमें नई चुनौतियों के साथ एक नए तरह का जीवन जीना सिखाया है। यह समय की मांग है कि हम सुरक्षित रहें, ताकि जीवन के दूसरे फलक पर हम सुरक्षित उभर सकें।

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