राँची, झारखण्ड | सितम्बर | 01, 2018 :: वैश्विक स्तर पर, कुपोषण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 5 वर्ष से कम उम्र के प्रायः आधे बच्चे की मृत्यु का कारण है। बच्चे के जन्म के प्रथम 1000 दिन (बच्चे के गर्भ में आने से लेकर दूसरे वर्ष के जन्म दिन तक) बच्चे को मिलने वाला समुचित पोषण, न केवल बच्चे के जीवन की रक्षा करता है, बल्कि उसे स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन प्रदान करता है, जो कि उसके पूर्ण शारीरिक और मानसिक विकास में मदद करता है और जिसका प्रभाव बच्चे की पठन क्षमता और भविष्य की शैक्षणिक उपलब्धियों के रूप में सामने आता है और अंततः इससे भारत के व्यापक आर्थिक विकास को बेहतर बनाने में मदद मिलती है।
पोषण में निवेश क्यों ?
ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2017 के अनुसार, न्यूट्रिशन में किया गया 1 डॉलर का निवेष 16 डॉलर की वापसी दिलाता है।
भारत में दो तिहाई कामकाजी जनसंख्या बचपन में नाटेपन (उम्र की तुलना में लंबाई का न बढ़ना) का शिकार होने के कारण 13 प्रतिशत कम कमाई कर पाता है।
2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण के कारण भारत को प्रतिवर्ष 2-3 प्रतिशत जीडीपी का नुकसान होता है।
सभी प्रकार के कुपोषण (अल्प पोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और अधिक वजन) के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 500 अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है।
झारखंड में स्थिति
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के अनुसार झारखंड के मुख्य आंकड़े नीचे दिए गए हैं –
5 साल से कम उम्र का हर दूसरा बच्चा अपनी उम्र की तुलना में छोटा हैः नाटापन (प्रसार-45 प्रतिशत)
पांच वर्ष से कम उम्र के 10 में से 3 बच्चे अपनी लंबाई की तुलना में दुबले-पतले हैंः सूखापन (प्रसार-29 प्रतिशत)
पांच वर्ष से कम उम्र के 10 में से 7 बच्चे एनीमियाग्रस्त हैं (प्रसार-69.9 प्रतिशत)
प्रजनन आयु वाली 10 में से 7 महिलाएं एनीमिया ग्रस्त हैं (प्रसार-65.2 प्रतिशत)
5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 5.8 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं (प्रसार-11.4 प्रतिशत)
झारखंड में 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 2 मिलियन बच्चे (45.3 प्रतिशत) बौनेपन के शिकार हैं। लंबे समय में इसके प्रभाव के रूप में बच्चों में घटती पठन-पाठन क्षमता तथा स्कूल उपस्थिति में कमी के रूप में सामने आता है। इसके अलावा, वयस्क होने पर आय क्षमता में कमी तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में कुपोषण तथा गरीबी का हस्तांतरण भी इसके कारण देखने में मिलता है।
हालांकि, झारखंड में 62 प्रतिशत बच्चों का संस्थागत प्रसव होता है, लेकिन दुर्भाग्य से तीन में से केवल एक बच्चे को ही स्तनपान कराया जाता है। लगभग एक-तिहाई नवजातों को छह माह तक विशेष स्तनपान यानि सिर्फ मां का दूध नहीं मिल पाता है।
झारखंड में पूरक आहार प्राप्त करने वाले 6-8 महीने के बच्चों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। वर्ष 2005-06 के दौरान यह 60 प्रतिशत था, जो कि 2015-16 में घटकर 47 प्रतिशत पर पहुंच गया। 6-23 माह के केवल 7 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त पोषण युक्त आहार मिल पाता है। (पर्याप्त पोषण का अर्थ है, उम्र के हिसाब से प्रति दिन दिए जाने वाले पोषण युक्त आहार, जिसमें कम से कम 4 से अधिक तरह के विविध खाद्य समूहों को सम्मिलित किया जाता है, साथ ही स्तनपान को जारी रखा जाता है)।
गर्भधारण से लेकर पहले 2 साल के दौरान बच्चों का विकास अपने चरम पर होता है। गर्भधारण के पहले से लेकर पहले दो वर्ष तक का बच्चे का जीवन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरित होने वाली कुपोषण और गरीबी के चक्र को तोड़ने की एक महत्वपूर्ण अवधि है।
यूनिसेफ झारखंड की प्रमुख, डा. मधुलिका जोनाथन का कहना है, ‘‘यूनिसेफ, महिला एवं बाल विकास; स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण; शिक्षा; पेयजल एवं स्वच्छता विभाग तथा राज्य पोषण मिशन के साथ संयुक्त तत्वावधान में पोषण माह के दौरान जन आंदोलन के तहत विभिन्न प्रकार की गतिविधियों का आयोजन कर रहा है। यूनिसेफ, पोषण माह के दौरान आयोजित होने वाली गतिविधियों एवं इसकी रिपोर्टिंग हेतु 10 पोषण अभियान जिलों में अपना सहयोग दे रहा है।’’
क्या करने की जरूरत है ?
हमें मातृ और शिशु स्वास्थ्य और पोषण पर अधिक प्रभाव के लिए आवश्यक पोषण हस्तक्षेपों की व्यापकता, निरंतरता, तीव्रता और गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
महत्वूर्ण क्षेत्र जिस पर ध्यान देना जरूरी हैः
प्रत्येक नवजात को जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कराया जाए
प्रत्येक नवजात को पहले छह माह के दौरान विशेष स्तनपान कराया जाए, यानि कि सिर्फ और सिर्फ मां का दूध दिया जाए
प्रत्येक नवजात को छह महीने पूरे होने के पश्चात उपरी आहार देना शुरू करना चाहिए साथ ही कम से कम दो साल और उससे अधिक समय तक मां का दूध देना जारी रखना चाहिए।
6-24 महीने के प्रत्येक बच्चे को उम्र के हिसाब से उपयुक्त पोषक आहार देना चाहिए। उम्र बढ़ने के साथ-साथ मात्रा, धनत्व तथा बारंबरता में भी वृद्धि की जानी चाहिए।
6-24 महीने के प्रत्येक बच्चे को स्वच्छता के सुरक्षित अभ्यासों को अपनाकर खिलाना चाहिए, जिसमें खाने से पहले और शौच के बाद साबुन से हाथ धोना तथा बोतल से दूध नहीं पिलाना शामिल है।
प्रत्येक बच्चे का पूर्ण टीकाकरण होना चाहिए। इसके अलावा साल में दो बार विटामिन-ए की खुराक तथा कृमिनाशक की गोली दी जानी चाहिए।
इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को समय पर गुणवत्तापूर्ण चिकित्सीय आहार दिया जाना चाहिए तथा उनकी देखभाल करनी चाहिए। यह बच्चों में किसी प्रकार के स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों के उत्पन्न होने से पहले करना चाहिए।
प्रत्येक बच्चे को बीमारी के दौरान और उसके बाद जरूर खिलाना चाहिए, साथ में स्तनपान भी जारी रखनी चाहिए। डायरिया ग्रस्त बच्चे को रिहाइड्रेशन थेरेपी (पुर्नजलीकरण चिकित्सा) तथा जिंक की खुराक देनी चाहिए।
प्रत्येक किशोरियों को एनीमिया से बचाने के लिए समुचित पोषक आहार, साप्ताहिक आयरन एवं फॉलिक एसिड की खुराक तथा साल में दो बार कृमिनाशक की गोली देना चाहिए। साथ ही बाल विवाह एवं समय पूर्व गर्भ धारण से बचाव के लिए उन्हें इसके बारे जागरूक किया जाना चाहिए।
प्रत्येक गर्भवती तथा धात्री माता को समुचित मात्रा में गुणवत्तापूर्ण आहार, सूक्ष्म पोषक तत्व (आयरन, कैल्सियम, कृमिनाशक गोली), आयोडिन युक्त नमक तथा स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन सेवा उपलब्ध कराना चाहिए।
पोषण अभियान क्या है?
पोषण अभियान का शुभारंभ भारत के माननीय प्रधानमंत्री के द्वारा 8 मार्च 2018 को झुंझुनु, राजस्थान में इसका शुभारंभ किया गया था। इसका उद्देश्य 6 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं तथा धात्री माताओं के पोषण स्तर को बेहतर बनाना है। इसके अलावा, नाटेपन, अल्प वजन तथा जन्म के समय कम वजन (प्रति वर्ष 2 प्रतिशत की कमी) तथा एनीमिया ग्रस्त (प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत तक की कमी) बच्चों को लक्षित करके भी इस अभियान को प्रारंभ किया गया है।
राष्ट्रीय पोषण माह क्या है?
सितंबर महीने को राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में मनाया जाता है। इसके बारे में भारत की पोषण चुनौतियों को लेकर आयोजित नेशनल काउंसिल की दूसरी बैठक में निर्णय लिया गया था। इसका उद्देश्य इस अभियान को जन आंदोलन के रूप में बदलना है, ताकि इसका प्रभावी तरीके से कार्यान्वयन किया जा सके तथा कार्यक्रम के पहुंच को बेहतर बनाया जा सके। सितंबर महीने में एक श्रृंखला के रूप में पोषण को लेकर कई कार्यक्रम विभिन्न विभागों – महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, पेयजल एवं स्वच्छता, पंचायती राज, शिक्षा एवं खाद्य विभाग के द्वारा आयोजित किए जाएंगे। इस दौरान विभिन्न स्तर पर विभिन्न गतिविधियां के द्वारा प्रसवपूर्व देखभाल, बेहतर स्तनपान, पूरक आहार, एनीमिया, वृद्धि की निगरानी, लड़कियों की शिक्षा, आहार, विवाह का सही उम्र, स्वच्छता एवं सफाई, स्वस्थ भोजन तथा फूड फोर्टिफिकेशन के बारे में लोगों को जागरूक किया जाएगा।