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‘ माँ ‘ यह वो अलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है : तुषार विजयवर्गीय

रांची , झारखण्ड | मई | 10, 2020 ::  माँ ‘ यह वो अलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है, हृदय में भावनाओं का अनहद ज्वार स्वतः उमड़ पड़ता है और मनो मस्तिष्क स्मृतियों के अथाह समुद्र में डूब जाता है। ‘ माँ ‘ वो अमोघ मंत्र है, जिसके उच्चारण मात्र से ही हर पीड़ा का नाश हो जाता है। ‘ माँ ‘ की ममता और उसके आंचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है, जिसने हमे और हमारे परिवार को आदर्श संस्कार दिए।

‘ माँ ‘ के द्वारा दिए गए संस्कार ही हमारी दृष्टि में हम सबकी मूल धरोहर है। जो हर मां की मूल पहचान होती है। हर संतान अपनी मां से ही संस्कार पाता है। लेकिन मेरी दृष्टि में संस्कार के साथ-साथ, शक्ति भी माँ ही देती है। इसलिए हमारे देश में माँ को शक्ति का रूप माना गया है और वेदों में मां को सर्वप्रथम पूजनीय कहा गया है।

श्रीमद् भगवद् पुराण में उल्लेख मिलता है कि माता की सेवा से मिला आशीष सात जन्मों के कष्टों व पापों को दूर करता है और उसकी भावनात्मक शक्ति संतान के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है।

ऐसी ही हमारी ‘ माँ ‘ है गीता विजयवर्गीय जिन्होंने हमारे पिता के मृत्यु के बाद परिवार और व्यापार को संभाला बल्कि अपने परिवार और बेटों को ऐसे आदर्श संस्कार दिए की वो आज व्यापार और समाजसेवा के क्षेत्र में मिशाल पेश कर रहे है। नमन है हमारी मातृ शक्ति को।

कोकर निवासी विनोद विजयवर्गीय, विकास विजयवर्गीय, मनीष विजयवर्गीय एवं तुषार विजयवर्गीय के पिता की 1980 में एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी। जब पिता की मृत्यु हुई थी तब सभी भाई काफी छोटे थे और मैं माँ के गर्भ में पल रहा था | पिता सोहन लाल विजयवर्गीय का मृत्यु होने के बाद माँ को काफी सदमा पहुँचा, माँ अंदर से बिल्कुल टूट चुकी थी चूंकि पति के असमय मृत्यु के कारण तीनो बेटों एवं गर्भ में पल रहे बच्चें की भी जिम्मेदारी माँ के कंधों पर ही आ गयी। उस हालात में माँ को समझ नही आ रहा था कि वो क्या करें।

कुछ ही दिनों बाद मेरा जन्म हुआ। माँ को अपने बच्चों के भरण पोषण की चिंता सताने लगी। उस दौर में समाज और शहर इतना विकसित नही हुआ था की महिला घर से बाहर निकल कर काम कर सके।

अपने बच्चों के सही परवरिश और भरण पोषण के लिए माँ ने यह निर्णय लिया की वो पिताजी का शुरू किया हुआ व्यापार को संभालेंगी एवं उसी व्यापार के आय से बच्चों की परवरिश करेंगी। एक तरफ माँ को बच्चों की फिक्र थी तो एक तरफ बहू के नाते परिवार की नैतिक जिम्मेदारी भी। माँ रोज दुकान जाती अपने व्यापार करती, अपने बच्चों को पढ़ाती एवं परिवार का हाथ बंटाती |

माँ ने काफी परिश्रम और संयम के साथ परिवार की जिम्मेदारी के साथ अपने चारो पुत्र को अच्छे संस्कार के साथ बड़ा किया एवं शहर के प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ाया लिखाया, उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने की शिक्षा दी। व्यापार का गुण सिखाया। चारों बेटो की शादी की। आज हमलोग माँ के बताए आदर्शों का पालन करते हुए अपना – अपना व्यापार संचालन कर रहे है उसके साथ ही समाज सेवा कर रहे है |

64 वर्षीय माँ अपने किये संघर्षो को याद कर मुस्कुराती और कहती है मैं तो अब दादी बन गयी हूँ। मुझसे प्रेम करने वाले काफी लोग है। जो समय बीत गया, वो स्मृति है। हमे हमेशा आगे की ओर देखना चाहिए। पीछे को ओर देखने से हमेशा दुख होता है।

आज माँ खुश है। कोकर इंडस्ट्रियल एरिया में अपने पति सोहन लाल विजयवर्गीय के द्वारा बनाये हुए घर को सँवार रही है। लगभग 40 वर्ष पहले घर में लगा हुआ पौधा का देखभाल आजतक कर रही है और साथ में टमाटर, मिर्चा, निम्बू आदि सब्जी का रोपण कर रही है। माँ रामायण और महाभारत देखकर अक्सर भावुक होती है | माँ हम सभी को अपने हांथो से तरह तरह के व्यंजन बनाकर खिलाती है | व्यंजन में मसाला नान और मलाई कोफ्ता बहुत ही स्वादिष्ट बनाती है | माँ को भजन सुनने का बहुत ज्यादा शौक है| हमलोग आज तक अपनी माँ के आँखों में आँशु नहीं देखे है बल्कि आज तक हमलोगो का आँशु माँ ही पोंछ रही है |

तुषार विजयवर्गीय

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