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भारत के मेट्रो शहर कोरोना वायरस की मार के साथ साथ वायु प्रदूषण से भी परेशान 

पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस की मार झेल रही है लेकिन भारत के मेट्रो शहरों में रह रहे लोग वायु प्रदूषण से भी परेशान हैं. वायु प्रदू‍षण की वजह से हवा इतनी खराब हो चुकी है कि इसमें सांस लेना भी दूभर हो गया है. प्रदूषित हवा में सांस लेने से वयस्कों और बुजुर्गों की सेहत तो बिगड़ ही रही है लेकिन बच्चों का प्रदूषण से और बुरा हाल हो गया है, उनकी सेहत पर और ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ रहा है. इसको लेकर कई सारी रिपोर्ट भी हम सबके सामने आ चुकी है.
अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों को देखें तो दुनियाभर में 15 साल से कम उम्र के 93 फीसदी बच्चे प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं जिसकी वजह से उनमें कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं देखने को मिल रही है.
शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि जहरीली हवा गर्भ में पल रहे शिशु को भी नुकसान पहुंचा रही है. स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2020 रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में प्रदूषित हवा से दुनिया भर में तकरीबन पांच लाख नवजात बच्चों की मौत हो गई. इनमें से हर चार में से करीब एक मौत हमारे देश भारत में हुई. वायु प्रदूषण से संबंधित खतरों पर आई ये रिपोर्ट यूएस के हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट की ओर से जारी की गई थी. रिपोर्ट में दावा किया गया कि साल 2019 में 1.16 लाख से अधिक नवजात बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई है. मरने वाले इन सभी बच्चों ने जन्म के एक महीने के भीतर ही अपनी जान गंवाई है.
एक अन्य रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई है कि प्रेगनेन्सी के दौरान वायु प्रदूषण का सामना करने वाली महिलाओं के बच्चों में अस्थमा विकसित होने का बहुत ज्यादा खतरा होता है. माउंट सिनाई, न्यूयॉर्क में आईकन स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं के मुताबिक, “बचपन का अस्थमा दुनिया में बड़ी समस्या है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की वजह से वैश्विक वायु प्रदूषण के कण में वृद्धि होने की संभावना है.”
बच्चों में प्रदूषण के खराब प्रभाव को लेकर एक और रिपोर्ट सामने आई है जिसमें कहा गया है कि अगर बाहरी वातावरण में प्रदूषण कम होता है, तो बच्चों के याददाश्त में बढ़ोतरी देखी जा सकती है. इंग्लैंड की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के मुताबिक, वाहनों से होने वाले प्रदूषण खासकर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (जो मुख्य रूप से इंडस्ट्री या गाड़ियों के धुएं से उत्पन्न होती है) में कटौती करना जरूरी है. ऐसा करने से स्कूली छात्रों की याददाश्त में 6.1 फीसदी की वृद्धि हो सकती है.
ये सारी रिपोर्ट हमें ये समझाने के लिए काफी है कि बच्चों में प्रदूषण का खतरा कितना ज्यादा है और ये कितना खतरनाक है. ऐसे में बच्चों की सेहत सुधारने के लिए जो उपाय हम निजी स्तर पर कर सकते हैं, वो करने की कोशिश जरूर होती है लेकिन जब बात प्रदूषण के कंट्रोल की हो तो इसके लिए एक बड़ी जनसंख्या की भागीदारी की जरूरत है.
प्रदुषण को कम करने में वृक्ष महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इसीलिए जितना अधिक हो सके पेड़ लगाएं, बच्चों को भी पेड़ लगाने और उसके फायदे के बारे में बताएं…क्योंकि ये प्रदुषण की समस्या पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती ही जाएगी!
लेखक पर्यावरण संरक्षण मंच के संस्थापक डा. राकेश भास्कर है

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