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जगदीश से जानिए क्या है सूर्य नमस्कार का प्रारंभ और समापन मंत्र

रांची, झारखण्ड | नवम्बर | 02, 2019 :: सूर्य नमस्कार में बारह मंत्र उचारे जाते हैं। प्रत्येक मंत्र में सूर्य का भिन्न नाम लिया जाता है। हर मंत्र का एक ही सरल अर्थ है- सूर्य को (मेरा) नमस्कार है। सूर्य नमस्कार के बारह स्थितियों या चरणों में इन बारह मंत्रों का उचारण जाता है।

सबसे पहले सूर्य के लिए प्रार्थना और सबसे अंत में नमस्कार पूर्वक इसका महत्व बताता हुआ एक श्लोक बोलते हैं –

ध्येयः सदा सवितृमण्डलमध्यवर्ती नारायणः सरसिजासनसन्निविष्टः।

केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटी हारी हिरण्मयवपर्धृतशंखचक्रः।।

सवितृमण्डल के भीतर रहने वाले, पद्मासन में बैठे हुए, केयूर, मकर कुण्डल किरीटधारी तथा हार पहने हुए, शंख-चक्रधारी, स्वर्ण के सदृश देदीप्यमान शरीर वाले भगवान नारायण का सदा ध्यान करना चाहिए। – (आदित्य हृदयः 938)

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोsस्तु ते।।

हे आदिदेव सूर्यनारायण! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हे प्रकाश प्रदान करने वाले देव! आप मुझ पर प्रसन्न हों। हे दिवाकर देव! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हे तेजोमय देव! आपको मेरा नमस्कार है।

यह प्रार्थना करने के बाद सूर्य के मंत्रों में से प्रथम मंत्र ॐ मित्राय नमः। के स्पष्ट उच्चारण के साथ हाथ जोड़ कर, सिर झुका कर सूर्य को नमस्कार करें।
इस मंत्र द्वारा प्रार्थना करने के बाद निम्नांकित मंत्र में से एक-एक मंत्र का स्पष्ट उच्चारण करते हुए सूर्यनमस्कार की स्थितियों का क्रमबद्ध अनुसरण करें।

1. प्रणाम आसन
उच्चारण : ॐ मित्राय नमः
अर्थ:  सबके साथ मैत्रीभाव बनाए रखता है।
विधि :: दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ‘सूर्य भगवान’ का आह्वान ‘ॐ मित्राय नमः’ मंत्र के द्वारा करें।
ध्यान अनाहत चक्र पर

2 हस्तउत्थान आसन।
उच्चारण: ॐ रवये नमः।
अर्थ: जो प्रकाशमान और सदा उज्जवलित है।
विधि :: श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को ‘विशुद्धि चक्र’ पर केन्द्रित करें।

3. पाद हस्तासन
उच्चारण: ॐ सूर्याय नम:।
अर्थ: अंधकार को मिटाने वाला व जो जीवन को गतिशील बनाता है।
विधि :: तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें।
कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।

4. अश्व संचालन आसन
उच्चारण: ॐ भानवे नमः।
अर्थ: जो सदैव प्रकाशमान है।
विधि :: इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को ‘आज्ञा चक्र’ पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

5..पर्वत आसन।
उच्चारण: ॐ खगाय नमः।
अर्थ: वह जो सर्वव्यापी है और आकाश में घूमता रहता है।
विधि :: श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान ‘विशुद्धि चक्र’ पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

6. अष्टांग नमस्कार।
उच्चारण: ॐ पूष्णे  नमः।
अर्थ: वह जो पोषण करता है और जीवन में पूर्ति लाता है।
विधि :: श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को मणिपुर चक्र’ पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।

7..भुजंग आसन।
उच्चारण: ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
अर्थ: जिसका स्वर्ण के भांति प्रतिभा / रंग है।
विधि :: इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर

8. पर्वत आसन।
उच्चारण: ॐ मरीचये नमः।
अर्थ: वह जो अनेक किरणों द्वारा प्रकाश देता है।
विधि :: श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान ‘विशुद्धि चक्र’ पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

9. अश्वसंचालन आसन।
उच्चारण: ॐ आदित्याय नम:।
अर्थ: अदिति (जो पूरे ब्रम्हांड की माता है) का पुत्र
विधि :: इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को ‘पाद हस्तासन ‘ अथवा ‘आज्ञा चक्र’ पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

10. पाद हस्तासन
उच्चारण: ॐ सवित्रे नमः।
अर्थ: जो इस धरती पर जीवन के लिए ज़िम्मेदार है।
विधि :: तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।

11. हस्तउत्थान आसन।
उच्चारण: ॐ अर्काय नमः।
अर्थ: जो प्रशंसा व महिमा के योग्य है।
विधि :: श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे ‘विशुद्धि चक्र’ पर केन्द्रित करें।

12. प्रणाम आसन।
उच्चारण: ॐ भास्कराय नमः।
अर्थ: जो ज्ञान व ब्रह्माण्ड के प्रकाश को प्रदान करने वाला है।
विधि :: यह स्थिति – पहली स्थिति की भाँति रहेगी।
ध्यान अनाहत चक्र पर

सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियाँ हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं। यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है।

सूर्य नमस्कार के द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं अथवा इनके होने की संभावना समाप्त हो जाती है। इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। इस अभ्यास के द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं, इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं। सूर्य नमस्कार की तीसरी व पांचवीं स्थितियां सर्वाइकल एवं स्लिप डिस्क वाले रोगियों के लिए वर्जित हैं।

सूर्य नमस्कार समापन मंत्र

सूर्य नमस्कार के अंत में जिस मंत्र (संस्कृत के श्लोक) का उच्चारण किया जाता है उसमें सूर्य भगवान को नमस्कार करते हुए सूर्य नमस्कार योग व उपरोक्त अंकित मत्रों का महत्व बताया जाता हैं।
सूर्य मंत्र के अन्तिम श्लोक के अर्थ में बताया गया है कि, जो व्यक्ति नित्य-प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, उनकी आयु में, प्रज्ञा में, बल में, वीर्य (वीरता) में तथा उनके तेज में वृद्धि होती है।

सूर्य नमस्कार का अन्तिम मंत्र निम्न प्रकार हैं:-

आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥

Jagdish Singh
Author is student to University department of Yoga, Ranchi University, Ranchi.

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