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गुड़िया झा से जाने कैसे करें ठंड में नवजात शिशु और मां की देखभाल

राँची, झारखण्ड । दिसम्बर | 04, 2017 ::  ठंड नें अपना रूप दिखाना शुरू कर दिया है। इससे बचनें के लिए हमें काफी सावधनी बरतनी होगी। वैसे तो ठंड से बचनें और इस मौसम में होनें वाली बीमारियों से सुरक्षा के लिए हम अपना ख्याल तो रखते ही हैं। लेकिन नवजात शिशुओं और उनकी मां की देखभाल की विशेष जरूरत होती है।
नवजात शिशु की देखभाल- नवजात शिशुओं को जन्म लेनें के बाद वातावरण में सामंजस्य स्थापित करनें में काफी समय लगता है। उसका नाजुक शरीर रोगों से लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं रहता है। इसलिए उसे पूरी तरह से गर्म कपड़ों से ढ़ंक कर रखना चाहिए। कमरे में कोशिश करनी चाहिए कि हिटर या ब्लोअर से कमरे को गर्म रखें। दिन में ध्ूप खत्म होनें के बाद दरवाजे और खिड़कियां भी बंद कर देनी चाहिए। बच्चे के कमरे में ध्ूप का आना भी बेहद जरूरी है। इससे सूर्य की किरणों से मिलनें वाली प्राकृतिक गर्मी तो मिलेगी ही साथ ही बिस्तर में ध्ूप लगनें से संक्रमण का खतरा भी कम बना रहता है।

शिशु

 

नवजात बच्चे ठंड के मौसम में और भी ज्यादा बिस्तर गीला करते हैं। इसलिए हर आध्े घंटे पर बच्चे की नैपकिन चेक करते रहें और गीला होनें पर तुरंत बदल दें। बच्चा अगर अध्कि समय तक गीले कपड़ों में रहेगा तो उसे ठंड लग जानें का डर बना रहता है।
आजकल बाजारों में बच्चों की मालिश के लिए कई तरह के तेल उपलब्ध् हैं। लेकिन ठंड के दिनों में बच्चों की मालिश के लिए सरसो तेल से अच्छा और कोई विकल्प नहीं है। जायफल को घिसकर सरसो तेल में मिलाकर मालिश करनें से बच्चें के शरीर को गर्माहट मिलेगी। कोशिश करनी चाहिए कि बच्चे को ध्ूप में मालिश की जाए। मालिश करनें के बाद थोड़ी देर उसे ध्ूप में ही रहनें दें। इससे सूर्य की किरणों से प्राप्त विटामिन डी से उसकी मांसपेशियां मजबूत होंगी।
रात को अगर बच्चा जल्दी नहीं सो रहा हो तो उसे हल्के हाथों से मालिश कर दें। इससे उसे अच्छी नींद आएगी। ध्यान रहे कि बच्चे को दूध् पिलानें के तुरंत बाद मालिश नहीं देनी चाहिए। मालिश और दूध् पिलानें के बीच में कम से कम एक घंटे का अंतर जरूर रखना चाहिए। जन्म से लेकर छह महीनें तक बच्चे को अपना दूध् ही दें। इससे उसके शरीर की रोग प्रतिरोध्क क्षमता मजबूत होती है।
मां की देखभाल- बच्चे के साथ-साथ मां के स्वास्थ का भी ख्याल रखना जरूरी है। मां को भी ठंड से बचकर रहना चाहिए। साथ ही खानें-पीनें में भी विशेष सावधनी बरतनें की जरूरत है। क्यों कि इस समय मां जो भी खाएगी उसका असर बच्चे के स्वास्थ पर देखनें को मिलेगा। इसलिए मां को ज्यादा मिर्च मसालेदार खानें से बचना चाहिए। अपनें खानें में प्रोटीन युक्त खानें को प्राथमिकता दें। दाल, दूध्, पनीर, साबूदाना की पतली खीर, हरी साग-सब्जियों का अध्कि सेवन करना चाहिए। क्यों कि प्रसव के बाद मां का शरीर भी कमजोर हो जाता है। उसे पहले जैसी स्थिति में आनें में समय लगता है। इस समय बाजारों में तिल से बनें लड्डू भी आसानी से मिल जाते हैं। तिल की तासीर भी गर्म होती है। इसके सेवन से शरीर को गर्माहट मिलेगी।
बच्चे की तरह मां को भी थोड़ी मालिश की जरूरत होती है। इस मौसम में ठंडे पानी की जगह गुनगुना पानी ही पीनें की कोशिश करनी चाहिए।

  • गुड़िया झा

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