आलेख़

इस बरसात में न जाने क्या क्या हो रहा है : डॉ. परिणिता सिंह

 

इस बरसात में न जाने क्या क्या हो रहा है
वह बीज जो सांसों से पढ़ा था, अंकुरित हो रहा है।

वह मस्त हवाएं जो डरी थी, खुलकर बह रही है
चमन पे भंवरे भी गुनगुनाने लगे हैं।

हैरान ! हूँ क्या-क्या हो रहा है ।
प्रकृति बदल रही है
मौसम बदल रहे हैं ।

किसी ने धीरे से कहा कि तुम आए हो
ओ हो अब जमाना बदल रहा है ।

तेरे पांव की दस्तक ही है, शायद
जो मेरे भाव की भावनाएं बदल रही है।

इस बरसात में न जाने क्या क्या हो रहा है।

रचयिता : डॉ. परिणिता सिंह

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