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अब झारखंड में भी पिलाया जाएगा रोटावाइरस का टीका

रांची, झारखण्ड ।  अप्रैल | 03, 2018 ::  राष्ट्रीय नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बच्चों को 10 जानलेवा बीमारियों, जैसे कि गल घोंटू, काली खांसी, टेटनस, पोलियो, टीबी, खसरा, हेपेटाइटिस बी, न्यूमोनिया, मेनिनजाइटिस और रोटावाइरस के विरुद्ध टीका दिया जाता है। राष्ट्रीय नियमित टीकाकरण कार्यक्रम बच्चों को जानलेवा बीमारियों से बचाने और उनकी मृत्यु को रोकने का प्रभावी उपाय है। बचपन में होने वाली डायरिया तथा इसके कारण शरीर में पानी की कमी, बच्चों की मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है।

वर्ष 2016 में भारत सरकार ने बच्चों को रोटावाइरस के कारण होने वाले डायरिया से बचाने के लिए चरणबद्ध तरीके से नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत रोटावाइरस टीके की शुरूआत की थी। अब तक, रोटावाइरस टीके की शुरूआत देश के 9 राज्यों – हरियाणाा, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, असम, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और त्रिपुरा में सफलतापूर्वक हो चुकी है। झारखंड देश का 10वां राज्य है, जहां राष्ट्रीय नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के तहत रोटावाइरस टीके की शुरूआत 7 अप्रैल 2018 को की जाएगी।

दुनिया भर में संयुक्त रूप से एड्स, मलेरिया और खसरा की तुलना में डायरिया से अधिक बच्चों की मृत्यु होती है। वैश्विक रूप से 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की डायरिया से होने वाली मृत्यु का 10 प्रतिशत यानि लगभग 78,000 बच्चों की मृत्यु भारत में होती है। इनमें से 5 वर्ष से कम उम्र के 3,000 बच्चों की मृत्यु झारखंड में होती है (एसआरएस 2015)।

भारत में रोटावाइरस डायरिया, हल्के से लेकर गंभीर डायरिया के 40 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेवार है। कुपोषित बच्चे और वैसे बच्चे जिनके पास बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का अभाव है, उनको डायरिया होने की संभावना ज्यादा रहती है। डायरिया, बच्चों में कुपोषण, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता और बीमारी के चक्र का निर्माण करता है।

रोटावाइरस क्या है?

 रोटावाइरस संक्रामक है और इसका प्रसार मल-मुख मार्ग से होता है। यह बच्चे द्वारा संक्रमित जल एवं भोजन के संपर्क में आने से होता है।
 रोटावाइरस हाथों और सतहों पर काफी लंबे समय तक जीवित रह सकता है।
 सभी बच्चों में रोटावाइरस का खतरा रहता है, चाहे वे किसी भी सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति के क्यों न हों।
 संक्रमण प्रायः काफी छोटे बच्चों में होता है, उनमें निर्जलीकरण का भी काफी खतरा रहता है।
 रोटावाइरस संक्रमण के उपचार के लिए वर्तमान में कोई दवा उपलब्ध नहीं है। सामान्यतया इसका उपचार 14 दिनों तक ओआरएस और जिंक की गोली देकर की जाती है।
 स्वच्छता, साफ-सफाई और पेयजल के अलावा, रोटावाइरस डायरिया से प्रभावी बचाव रोटावाइरस टीके के द्वारा किया जा सकता है।

भारत में रोटावाइरस डायरिया का आर्थिक बोझ
 रोटावाइरस डायरिया के प्रत्येक एपिसोड में भारतीय परिवारों को औसतन अपनी वार्षिक आय का 7 प्रतिशत तक इलाज में खर्च करना पड़ता है। इसके कारण कम आय वाले परिवार गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं।
 प्रत्येक वर्ष भारत में तकरीबन 4,700 करोड़ रूपया अस्पताल में बीमारी के उपर खर्च होता है, जबकि 500 करोड़ रूपया अकेले रोटावाइरस डायरिया के इलाज में खर्च होता है। ।
 एक अनुमान के अनुसार भारत प्रत्येक वर्ष 1,000 करोड़ रूपए से अधिक धन रोटावाइरस डायरिया के प्रबंधन पर खर्च करता है।
(स्रोतः तवजंबवनदबपसण्वतह)

रोटावाइरस टीके की खुराक एवं समय सारिणी
2.5 मि.ली. की रोटावाइरस टीके की खुराक एक सिरिंज के द्वारा मुंह में दी जाएगी । रोटावाइरस टीके की तीन खुराकें बच्चों को दूसरे अन्य नियत टीकों के साथ 1.5 महीने, 2.5 महीने और 3.5 महीने के होने पर दिए जाएंगे। रोटावाइरस का टीका एक घुलनशील टीका है, जो टीके के साथ दिए गए घोल में ही बनाया जाता है। रोटावाइरस टीके का कोई बुस्टर डोज नहीं लगाया जाता। यह टीका सभी सरकारी स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों – मेडिकल काॅलेजों, शहरी दवाखानों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, उपकेंद्रों, ंनियमित टीकाकरण सत्र के दौरान तथा ग्राम स्वास्थ्य पोषण दिवस सत्र के दौरान निःशुल्क दिए जाएंगे।

टीकाकरण के बाद की प्रतिकूलताएं
रोटावाइरस टीका एक सुरक्षित टीका है। हालांकि, रोटावाइरस टीका लगाने के बाद उल्टी, डायरिया, सर्दी, खांसी, बुखार, चिड़चिड़ापन और लाल चकत्ते का हल्का और तात्कालिक लक्षण दिखाई पड़ सकता है। आमतौर पर या तो यह खुद ही ठीक हो जाते हैं या फिर इनका आसानी से इलाज किया जा सकता है।

भारत में गंभीर रोटावाइरस डायरिया के खिलाफ रोटावाइरस टीके का प्रभाव 40-60 प्रतिशत है। डायरिया से बचाव और प्रबंधन के प्रति एकीकृत दृष्टिकोण, जिसमें, जन्म के एक घंटे के अंदर बच्चे को स्तनपान कराना, छह माह तक सिर्फ मां का दूध देना, उपयुक्त पूरक आहार, बिटामिन ए की खुराक, रोटावाइस के लिए टीकाकरण, ओआरएस और जिंक का उपयोग, स्वच्छता और साफ-सफाई आदि को शामिल कर डायरिया से होने वाली मृत्यु को प्रभावी तरीके से रोका जा सकता है।

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