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प्रतिभा को सलाम :: विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉक्टर सुशील कुमार अंकन

रांची , झारखण्ड | जुलाई | 29, 2019 :: सन 12 जुलाई 1954 में राँची में ही जन्में, पले-बढ़े, खेले-कूदे डाॅ॰ सुशील कुमार की स्कूली शिक्षा रांची के पहाडी़टोला मिडिल स्कूल गाड़ीखाना से, मारवाड़ी स्कूल से हायर सेकेन्डरी और इटंर तक की शिक्षा हुई।
जमशेदपूर के करीमसीटी काॅलेज से इन्होंने 1975 में ग्रेजुएशन किया।
राँची विश्वविद्यालय के पी.जी. दर्शनशास्त्र विभाग में 1976-78 बैच के छात्र रहे।
रात्रिकालीन छोटानागपुर लाॅ काॅलेज से 1980 में एलएल.बी. की भी पढ़ाई पूरी कर लाॅ ग्रेजुएट बने।
1981 में युनिवर्सिटी सलेक्शन कमीशन के द्वारा व्याख्याता के पद पर बिरसा काॅलेज खूँटी में इनकी नियुक्ति हो गई।
8 दिसंबर 1981 में इन्होंने सर्विस ज्वाइन किया और नौ साल तक बिरसा काॅलेज में दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष रहे।
जिस वक्त ये बिरसा काॅलेज ज्वाइन किए उस वक्त वहां लाॅजिक के सिर्फ 4 विद्यार्थी थे।
किन्तु एक साल के भीतर लाॅजिक पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या बढ़कर 400 हो हो गई।
13 अप्रैल 1990 में इनका स्थानान्तरण बिरसा काॅलेज खूँटी से मारवाड़ी महाविद्यालय राँची कर दिया गया।
मारवाड़ी काॅलेज में दर्शनशास्त्र की कक्षाएँ संभालते हुए मारवाड़ी महाविद्यालय के प्रेस प्रवक्ता नियुक्त किए गये।
इसी महाविद्यालय में स्थित इग्नू अध्ययन केन्द्र 0513 में 1995 में सहायक काॅर्डिनेटर बनाये गये और इग्नू में 2005 तक काम किया।
मारवाड़ी काॅलेज के सांस्कृतिक परिषद् के भी सदस्य रहे।

पीजी दर्शनशास्त्र विभाग में योगदान
8 दिसंबर 2011 को मारवाड़ी काॅलेज से पी.जी. दर्शनशास्त्र विभाग में स्थानान्तरण कर दिया गया।
पीजी में पढ़ाये जाने वाले सभी विषयों को रोचक तरीके से पढ़ाने के कारण विद्यार्थियों के बीच ये अत्यंत ही लोकप्रिय शिक्षक बने रहे।

इन्होंने पीजी दर्शनशास्त्र विभाग में आते ही इन्टरनल परीक्षा संभाल ली और परीक्षा को इतना व्यवस्थित कर दिया कि अन्य किसी भी शिक्षक को इन्टरनल परीक्षा की परेशानी महसूस नहीं हुई।
समय पर अपनी कक्षा लेना इनकी आदत रही है। इसलिए ये हमेशा कहते हैं कि जो इंसान वक़्त का पाबंद है वह हर चीज का पाबंद होगा।
एक ख़ास बात है कि अपने 38 साल के कैरियर में ये कभी भी कक्षा में बैठकर नहीं पढ़ाये हैं। हमेशा खड़े होकर ही पढ़ाते रहे हैं।
दर्शनशास्त्र विभाग में कई सेमिनार के आयोजन के साथ साथ विद्यार्थियों को आॅडियो विजुअल माध्यम से पढ़ाई का महत्व भी इन्होंने बताया। इन्होंने कई बार हाई टेक क्लास का भी आयोजन किया और विद्यार्थियों को कंप्युटर की उपयोगिता के बारे में बताया।

पीएच.डी. शोध प्रबंध एवं शोध मार्गदर्शन
इन्होंने डाॅ॰ राजकुमारी सिन्हा अब रिटायर्ड प्रोफेसर के मार्गदर्शन में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है।
इनके शोध का विषय था ‘‘झारखंड की जनजातियों एवं सदानों का जीवन दर्शन’’ इनके कई स्तरीय शोध-पत्र विभिन्न शोध पत्रिकाओं में छप चुके हैं।
अब इनके मार्गदर्शन में शोध करने वाले 10 विद्यार्थियों में से 07 शोधार्थियों को विषय की नवीनता के लिये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेल्लोशिप, और राष्ट्रीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली की ओर से फेल्लोशिप मिल चुका है।
इनके मार्गदर्शन में मीडिया एथिक्स पर पोस्ट डाॅक्टोरल शोध भी हो रहा है।

पत्रकारिता विभाग के निदेशक
पीजी विभाग से ही पुनः 30 अप्रैल 2012 को राँची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में निदेशक के पद पर प्रतिनियुक्त किये गए।
जहाँ इन्होंने विद्यार्थियों को व्यावहारिक पत्रकारिता का पाठ पढ़ाया और सभी विद्यार्थियों को कैमरे के सामने न्यूज पढ़ने की ट्रेनिंग, शुद्ध उच्चारण की ट्रेनिंग, आउटडोर कैमरा हैंडलिंग ट्रेनिंग, विडियो एडिटिंग ट्रेनिंग देकर उन्हीं विद्यार्थियों से ‘आँखन देखी’ नामक मासिक विडियो न्यूज मैगज़ीन बनवाने की शुरूआत की। इस न्यूज मैंगज़ीन में पूरे विश्वविद्यालय की गतिविधियाँ कैद की जाती थी।
आधे घंटे का विडियो न्यूज मैगज़ीन ‘आँखन देखी’ अपने समय का अत्यंत ही लोकप्रिय न्यूज मैगज़ीन बन गया था।
पत्रकारिता विभाग में इन्होंने पाँच कैंपस करवाये जिसमें दर्जनों विद्यार्थियों को मीडिया हाउसेज में नौकरियाँ मिलीं।
इन व्यावहारिक पाठ्यक्रम और गतिविधियों के कारण ही टाईम्स नाउ मीडिया हाउस की ओर से मुंबई के होटल ताज लैंड्स इन में रांची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग को दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले।
इन्हंे पुनः अप्रैल 2013 में पत्रकारिता विभाग से पीजी दर्शनशास्त्र विभाग भेज दिया गया।

रूपसी की स्थापना
2015 में सभी पीजी विभाग के विद्यार्थियों में फोटोग्राफी कौशल विकास के लिए राँची युनिवर्सिटी फोटोग्राफिक क्लब ‘रूपसी’ की स्थापना इन्होंने 7 जुलाई 2015 में की।
इस फोटोग्राफी क्लब में पीजी के विद्यार्थियों को निःशुल्क फोटोग्राफी एवं फिल्म निर्माण का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। यहाँ से सीखे कई विद्यार्थियों ने फोटोग्राफी को अपनी रोजी रोटी का जरिया बना लिया है।
2015 में ही रूपसी के तत्वावधान में दो महीने तक एक राज्यस्तरीय फोटो प्रदर्शनी राँची के आॅड्रे हाउस में लगाई गई।
रूपसी के द्वारा राँची विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए समय समय पर फोटोवाक, फिल्म निर्माण प्रशिक्षण कार्यशाला और फोटो प्रदर्शनी लगाई जाती रही है।
रूपसी में फोटोग्राफी और फिल्म का प्रशिक्षण लेकर विद्यार्थियों ने ‘‘द सन राइजिंग आॅफ रूपसी’’ नामक एक फिल्म भी बनाई।
तीन युवा महोत्सव में मीडिया प्रभारी
राँची विश्वविद्यालय में होने वाले राष्ट्रीय युवा महोत्सव और दो इस्टर्न जोन इन्टर युनिवर्सिटी युवा महोत्सव का मीडिया इन्चार्ज का दायित्व भी इन्होंने निभाया और अपनी विद्यार्थी टीम के साथ पूरे महोत्सव की रिपोर्टिंग स्थानीय अखबारों के साथ साथ भारतवर्ष के 300 से अधिक अखबारों तक पहुँचाई।

गेस्ट फैक्लटी
जमशेदपुर करीमसीटी काॅलेज और संत जेवियर काॅलेज राँची के मास कम्युनिकेशन एंड विडियो प्रोडक्शन विभाग में बतौर रेगुलर गेस्ट फैकल्टी हैं। इन्होंने इन विभागों में आरंभ से ही कक्षाएँ़ और परीक्षाएँ लिया है। एमीटी युनिवर्सिटी के सिलेबस कमिटी के भी सदस्य रह चुके हैं।

विभागीय योगदान
विभागीय सांस्कृतिक आयोजनों में भी इनकी महत्वपूर्ण भागीदारी होती रही है। दर्शनशास्त्र विभाग में इन्होंने ही पिकनिक जाने की शुरूआत की। इन्होंने ही ‘होली मिलन’ और ‘होली कार्टूनिंग’ की शुरूआत इस विभाग में की।
विद्यार्थियों में कला की परख कर उन विद्यार्थियों को प्रोत्साहन देने का काम भी इन्होनें खूब किया है। इसका ताजा उदाहरण है ‘स्वरदर्शन’ नामक आॅडियो सीडी। विभाग में विद्यार्थियों को अभिनय की ट्रेनिंग देकर उनसे नाटक और शिक्षाप्रद फ़िल्मों में अभिनय भी करवाया।

फिल्म निर्माण
यू.जी.सी. के निर्देश पर राँची विश्वविद्यालय के लिये बनाई गई एंटी रैगिंग फिल्म ‘ना और हाँ’ में विद्यार्थियों ने ही अभिनय किया। इस फिल्म की डीवीडी विश्वविद्यालय ने सभी पीजी विभागों में विद्यार्थियों को दिखाने के लिये भेजा था।
‘मैं हूँ राँची विश्वविद्यालय’ नाम से इन्होंने एक डाॅक्यूमेंट्री का निर्माण किया था जिसमें राँची विश्वविद्यालय की बनने की कहानी है और जिसे नैक की टीम को भी दिखाया गया था।
दर्शनशास्त्र विभाग पर भी इन्होंने ‘ज्ञानामृतम दर्शनम्’ नाम की फिल्म बनाई जो राँची विश्वविद्यालय के किसी भी विभाग पर बनने वाली पहली फिल्म है। मारवाड़ी काॅलेज पर इन्होंने दो डाॅक्युमेन्ट्र फिल्म ‘गुरूकुल झारखंड’ नाम से बनाई। इन्होंने मनरखन बी.एड. काॅलेज पर फिल्म बनाई।
27वें दीक्षांत समारोह में प्रदर्शन के लिए भी इन्होंने लगभग 14 मिनट की एक लघु फिल्म बनाई थी जिसका प्रदर्शन 2013 में दीक्षांत समारोह आरंभ होने से पहले अतिथियों के लिये किया गया था।
इन्होंने युनिसेफ के लिए भी तीन फिल्में बनाई हैं। विटामिन ए डेफिसियेन्सी पर ‘छउआ कर ढाल’, आयरन डेफिसियेन्सी पर ‘फुलो कर बहुरिया’ और अर्ली मैरिज प्रीवेन्सन पर ‘बोझ’ नामक शाॅट फिल्म।
पिछले वर्ष पुणे, महाराष्ट्र में ‘बहुरंग’ द्वारा आयोजित आयोजित ‘‘आदिवासी लघु चित्रपट महोत्सव’ में इनकी फिल्म ‘पडहा जतरा – एक सांस्कृतिक धरोहर’ को भी पुरस्कार मिला।
इन्होंने ‘माय कर दुलारा’, ‘प्यार कर मेंहंदी’, ‘मोर गाँव मोर देस’, ‘दादागिरी’ आदि क्षेत्रीय भाषा की बड़ी फिल्मों में भी अभिनय किया है।
झारखंड में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में इनका बहुत योगदान है। झारखंड की फिल्मी दुनिया के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द ‘जाॅलीवुड’ शब्द की रचना इन्होंने ही की। जिसका प्रथम प्रयोग अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाईम्स में दिनांक 23 अप्रैल 2001 के अंक में हुआ।

विडियो बुक लेखन
इन्होंने ‘‘अपने शहर का आदमी’’ नाम से एक विडियो धारावाहिक की परिकल्पना की और इन्होंने इन फिल्मों को ‘‘विडियो बुक लेखन’’ की संज्ञा दी। राँची के वैसे वरिष्ठ नागरिक जो कला, संस्कृति, साहित्य, समाजसेवा आदि से जुड़े हैं और निरंतर कार्यरत रहे हैं वैसे वरिष्ठ नागरिकों के जीवन एवं कार्यशैली पर ‘अपने शहर का आदमी’ धारावाहिक के रूप में अभी तक छः विडियो बुक लेखन का कार्य संपन्न हो चुका है और सातवें-आठवें की तैयारी चल रही है। सेवानिवृत्ति के बाद इस दिशा में तेजी से काम करने का इरादा है।
इन्होंने रोहिणी परा-विद्या पर 10 एपिसोड टेलिविजन धारावाहिक का लेखन भी किया है जिसपर धारावाहिक का निर्माण मुंबई में हुआ। इन्होंने फादर कामिल बुल्के पर बनी दूरदर्शन टेलिफिल्म का भी पटकथा लेखन किया है।

रंगमंचीय उपलब्धियाँ
आरंभ से ही नाटक के प्रति गहरी रूची के कारण मंच पर इनके द्वारा किए गये नाटकों की लम्बी फेहरिस्त है। 1970 से लेकर अबतक इनके द्वारा अभिनित नाटकों में ‘वह एक ज़िन्दा आदमी था’, ‘तमसो माँ ज्योतिर्गमय’, ‘अमीबा’, आषाढ़ का एक दिन, कामायनी, एक और द्रोणाचार्य, स्कदंगुप्त, महाभोज, आला अफसर, गोदान, अंधायुग सहित अन्य कई नाटक शामिल हैं। हाल के दिनों में ‘दुलारी बाई’, ‘अरे ! शरीफ़ लोग’, ‘अपनी डफली अपना राग’, ‘नहले पे दहला’ आदि नाटक काफी लोकप्रिय रहे। इनका लिखा नाटक ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस’ और ‘गुड माॅर्निंग झारखंड’ का मंचन दिल्ली में भी हो चुका है। गुड माॅर्निंग झारखंड के लिए इन्हें झारखंड के राज्यपाल ने सम्मनित भी किया है। नाटकों के लिए भी इन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं।

दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में बी-हाई नाट्य कलाकार
दूरदर्शन और आकाशवाणी दोनों संस्थानों से ये बी-हाई ग्रेड मान्यताप्राप्त नाट्य कलाकार के रूप में स्थापित हैं। अब तक ये दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले 21 टेलिफिल्मों में बतौर नायक अभिनय कर चुके हैं। लगभग 100 से ज्यादा आकाशवाणी के नाटकों एवं धारावाहिकों की कड़ियों में स्वराभिनय किया है। इनकी आवाज़ का इस्तेमाल आकाशवाणी बहुधा राष्ट्रीय प्रसारण के लिये करता है। आकाशवाणी का प्रेस्टीजियस नेशनल प्रोग्राम ‘राष्ट्रीय संगीत सम्मेलन’ का भी ये संचालन कर चुके हैं।

व्यक्तिगत उपलब्धियाँ
इस्ट जोन कल्चरल सेन्टर, कोलकाता (मर््ब्ब्ए ज्ञवसांजं) जो मिनिस्ट्री आॅफ कल्चर, भारत सरकार, नई दिल्ली के अन्तर्गत कार्य करता है उसमें दो टर्म यानि 6 वर्षों तक इन्होंने झारखंड प्रदेश के सांस्कृतिक प्रतिनिधि सदस्य के रूप में प्रतिनिधित्व किया। इसकी सभी बैठकें कोलकाता राजभवन में पश्चिम बंगाल के गवर्नर की अध्यक्षता में होती हैं। वहाँ इन्होंने पूरे झारखंड में लोककला और सांस्कृतिक आयोजनों के उत्थान के लिये काम किया।
राँची के प्रसिद्ध गुरूनानक हायर सेकेण्ड्री स्कूल में 3 वर्षांे तक गवर्निंग बाॅडी के वरिष्ठ सदस्य रह चुके हैं।
झारखंड फोटोग्राफी एसोशियेशन के प्रथम लाईफ मेंबर होने का सौभाग्य इन्हें प्राप्त है।

भास्कर चित्रकथा लेखन
इनके लिखे लेख प्रायः दैनिक अखबारों और पत्र पत्रिकाओं में छपते रहेे हैं। दैनिक भास्कर अखबार जब राँची से निकलना शुरू हुआ तो इनकी लिखी हुई ‘भास्कर चित्रकथा’ प्रतिदिन उस अखबार में छपा करती थी। यह क्रम कई महिनों तक चला।

आॅडियो सीडी निर्माण
इन्होंने कई आॅडियो सीडी का भी निर्माण किया है। जिसमें ‘मसीही नगमें’, ‘पठार को सुनो’, ‘चितबदला’, ‘प्रभात ठाकुर का सितार वादन’, ‘सूचना का अधिकार आपका हथियार’ ‘स्वरदर्शन’ सहित अन्य कई आॅडियो सीडी हैं।
इन्होंने कई आॅडियो फीचर का निर्माण किया जिनमें ‘क्रांतिवीर पाण्डेय गणपत राय’, ‘परमपावनी गंगाजी’, ‘तत्वार्थसूत्र’ ‘भक्तामर स्तोत्र’ आदि मुख्य हैं।

पुरस्कार एवं सम्मान
इन्हें अपने कार्यों के लिए ढेर सारे पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। दो बार झारखंड कला गौरव और दो बार अउटस्टैंडिंग कला सम्मान मिला है। इन्हें फोटोग्राफी और अभिनय के लिए कई पुरस्कार और अध्यापन के लिये बेस्ट टीचर अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है। सांस्कृतिक आयोजनों में इन्हें प्रायः सम्मानित किया जाता रहा है।

भविष्य की योजनाएँ
इनकी इच्छा है कि अवकाश ग्रहण करने के बाद भी विद्यार्थियों की उचित समस्याओं का समाधान करते रहेंगे।
इनके मार्गदर्शन में जितने भी विद्यार्थी पीएच.डी./डी.लिट्/पीडीएफ के लिए रजिस्टर्ड हैं उनका जल्दी से जल्दी शोध कार्य पूरा कराने की दिशा में प्रयत्नशील रहेंगे।
इन्होंने झारखंड की जनजातियों पर जो पुस्तक लिखी है उसके प्रकाशन के लिए कोशिश करेंगे।
फ़िल्म निर्माण, फोटोग्राफी और नाटक के क्षेत्र में विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर उनका मार्गदर्शन करते रहेंगे।
जीवन के बचे समय में ‘व्यस्त रहो मस्त रहो’ के मंत्र को समाज में फैलाने का कार्य भी करते रहेेंगे।

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