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देहरादून : ऑनलाइन दुनिया में बच्चों की सुरक्षा विषय पर परिचर्चा

देहरादून | जुलाई | 10, 2023 ::

ऑनलाइन दुनिया में बच्चों की सुरक्षा के मुद्दे पर इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) ने सोमवार को देहरादून में उत्तराखंड राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) के साथ परिचर्चा की।
इस दौरान बच्चों को ऑनलाइन खतरों से बचाने के उपायों को सशक्त बनाने और साइबर अपराधियों पर लगाम कसने के लिए उन पर निगरानी को मजबूत बनाने के लिए बेहतर रणनीतियां विकसित करने पर विस्तार से चर्चा हुई।
बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के मुद्दे पर दिन भर चले इस मंथन के दौरान अन्य लोगों के अलावा
राज्य की महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य,
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक व आईसीपीएफ के सीईओ ओ. पी. सिंह,
एससीपीसीआर की अध्यक्ष डा. गीता खन्ना और
उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार
भी मौजूद थे।

आईसीपीएफ बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा और खास तौर से ऑनलाइन बाल यौन शोषण के खतरों से निपटने के लिए अर्से से काम कर रहा है।
इस मुद्दे पर जागरूकता पैदा करने के लिए वह खास तौर से बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों के बीच काम कर रहा है।
साथ ही बच्चों को ऑनलाइन यौन शोषण के खतरे से बचाने के लिए वह देश की तमाम कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिल कर भी काम कर रहा है।

बच्चों के खिलाफ बढ़ते ऑनलाइन खतरों के प्रति परिवारों के बदलते माहौल को जिम्मेदार ठहराते हुए कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य ने कहा कि इस मशविरे के दौरान बनी सहमतियों को सख्त दिशानिर्देशों, कार्रवाइयों और प्रभावी अमल में तब्दील किया जाएगा।
उन्होंने कहा, “यह मौजूदा हालात की मांग है ताकि बच्चों के लिए एक निरापद और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।”

मौजूदा हालात के मद्देनजर इन खतरों से निपटने में सभी पक्षों से राय मशविरे की अहमियत पर जोर देते हुए आईसीपीएफ के सीईओ व उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ.पी. सिंह ने कहा, “ऑनलाइन दुनिया में चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मैटीरियल (सीसैम) की उपलब्धता और मांग विकराल रूप लेती जा रही है जो बच्चों की सुरक्षा के लिए खतरा है।
लिहाजा यह समय की मांग है कि हम इन खतरों पर मंथन करें, नई रणनीतियां बनाएं और उन पर प्रभावी अमल सुनिश्चित करें।
बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए नीतिगत कदम उठाए जाएं और साइबर अपराधियों की एक तय समयसीमा में धरपकड़ के लिए फोरेंसिक जांच और अत्याधुनिक तकनीकों की मदद ली जाए।”

बच्चों को चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मैटीरियल (सीसैम) सहित तमाम ऑनलाइन खतरों के बारे में जागरूक कर पाने में समाज की विफलता पर चिंता जताते हुए एससीपीसीआर की अध्यक्ष डा. गीता खन्ना ने कहा,
“बच्चों के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के मामले मुश्किल चुनौती पेश कर रहे हैं।
हमारे पास बच्चों को ऑनलाइन यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए कानूनी प्रावधान तो हैं लेकिन जागरूकता की कमी है।
इसलिए हमें अपनी कानून प्रवर्तन एजेंसियों को आक्रामक रूप से प्रशिक्षित करने की जरूरत है ताकि वे अपनी भूमिका प्रभावी तरीके से निभा सकें।”
उन्होंने आगे कहा कि हम बच्चों को ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के खतरों के बाबत आगाह कर पाने में सफल नहीं हो पाए हैं।
हम अभी तक उन्हें इनके बारे में न ठीक से बता पाए हैं और न समझा पाए हैं।

कोराना महामारी के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं के कारण बच्चों की मोबाइल फोन व लैपटाप तक पहुंच तो हो गई लेकिन साथ ही इससे नए खतरे पैदा हुए हैं।
हालिया वर्षों में बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण की घटनाओं में तेजी से इजाफा देखने को मिला है।
नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लाएटेड चिल्ड्रेन (एनसीएमईसी) के आंकड़ों के अनुसार पिछले 15 वर्षों में सीसैम की ऑनलाइन उपलब्धता में 15 हजार फीसद का इजाफा हुआ है।

उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने कहा कि बच्चों के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न की प्रभावी रोकथाम के लिए दो काम जरूरी हैं।
पहला, हमें आम जनता और पुलिस महकमे को इसके खिलाफ जागरूक करने की जरूरत है क्योंकि यह एक नया और उभरता हुआ खतरा है जिसके बारे में लोगों को ठीक से समझना जरूरी है।
दूसरा जरूरी कदम है कानून का पालन।
इस समस्या से निपटने के लिए सिर्फ ये दो कदम काफी कारगर होंगे।”

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