आलेख़

कोरोना और करुणा

रांची, झारखण्ड  | जून  | 15, 2021 ::  आज पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी के दूसरी लहर की बुरे दौर से गुजर रहा है। भारत में भी इसके बढ़ते हुए प्रकोप से हर कोई परेशान है। हर तरफ तबाही का मंजर है।

पर इस बीच मदद में आगे आये हाथों ने ये साबित कर दिया है कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों न हो मानवता अभी भी जिंदा है।

एक ओर जहां कोरोना महामारी में संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने से दूसरे को संक्रमित होने का खतरा बना है और कई लोग घर पर दुबके बैठे है वहीं दूसरी ओर मानवता का परिचय देते हुए बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जो बिना अपनी जान की परवाह किये संक्रमित और बगैर संक्रमित व्यक्ति के अलावा उनके परिवारों की हर तरह से मदद करने के लिए लगे हुए हैं।

डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की लगातार दिन-रात की मेहनत और लगन ने लोगों के मन में जो आशा की किरण पैदा की और उन्हें जीवनदान देने में जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उनके सम्मान में जितने भी शब्द कहे जायें वो बहुत कम हैं। परिवार, परिचित आदि सभी ने साथ मिल कर संक्रमण के खिलाफ लड़ने का जो कदम उठाया वो भी काफी सराहनीय है।

ये इस बात का प्रतीक है कि समस्या चाहे कितनी भी बड़ी हो, हमारी एकता और अखंडता के सामने छोटी ही रहेगी।
इन सबके अतिरिक्त इसके बचाव के लिए उचित जानकारी और सावधानी का भी महत्वपूर्ण योगदान है। कुल मिलाकर कहा जाये तो मानव जीवन को बचाने में हर छोटी-बड़ी जानकारी अहम भूमिका निभाती है।

कुछ ऐसी भी बातें हैं जिनसे हमें इस महामारी का मुकाबला के दौरान देखने को मिली है।

1.धैर्य और सहनशीलता

ये ईश्वर द्वारा दिया गया वो उपहार है जिसकी मदद से हमने बड़ी से बड़ी विषम परिस्थितियों का सामना किया और संघर्षों के मैदान को छोड़कर भागे नहीं। किसी ने सच ही कहा है कि सोना जितना आग में तपता है उतना ही ज्यादा निखरता भी है। हम मनुष्यों के साथ भी यही बात लागू होती है। आज हमने साथ मिलकर जिस दृढ इच्छाशक्ति की बदौलत कोरोना जैसी महामारी से मुकाबला कर जो सफलता प्राप्त की है, उसमें हमारी एकता और अखंडता का महत्वपूर्ण स्थान है।

जब हम अकेले किसी भी दर्द को झेलते हैं, तो हमारी पीड़ा हमें काफी बड़ी लगती है। वहीं जब हम दूसरों का साथ पाते हैं, तो अपना दर्द भी काफी कम महसूस होता है। ठीक उसी प्रकार से हम दूसरों की तकलीफों में भी मदद का हाथ बढ़ाकर उनकी तकलीफों को कम कर सकते हैं। हमारी मानवता की परिभाषा भी यही है।

2. ईश्वर के दूसरे रूप में डॉक्टरों की भूमिका।

यूं ही नहीं डॉक्टरों को इस धरती का दूसरा भगवान कहा गया है। जिन्होंने अपनी जान की परवाह किये बिना तन-मन से लोगों की सेवा में लगे रहे। उनकी मेहनत, ईमानदारी, सेवा भावना और विनयशीलता की जितनी भी तारीफ की जाये वो बहुत कम है।

स्वास्थ्य कर्मियों ने यह साबित कर दिया कि यदि हम सब मिल कर यह ठान लें कि किसी भी महामारी के खिलाफ जंग लड़नी है और जीतनी है, तो कुछ भी असंभव नहीं है।

 

गुड़िया झा

 

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