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भक्ति, आस्था और समर्पण से परिपूर्ण लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा : गुड़िया झा

भक्ति, आस्था और समर्पण से परिपूर्ण लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा : गुड़िया झा

लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का नाम आते ही मन में एक अजीब सी शक्ति का आभास होता है। चार दिनों तक चलने वाले इस अनुष्ठान में ना जाने कितनी पवित्रता, धैर्य और शक्ति की अद्भुत संगम का संयोग समाहित है। मानसिक और शारीरिक रूप से समर्पित छठि मईया के भक्ति के प्रति जितनी संवेदनायें हमारी होती हैं उससे कहीं ज्यादा मन को शांति देने वाली उनके प्रति लगाव की एक अलग ही पहचान है।
यही तो है हम भक्तों की असली पहचान कि यहां तो भगवान को किसी विशेष भोग की नहीं बल्कि शुद्ध और सादगी से की गई पूजा विधि ही सबसे ज्यादा मन को भाती है। यहां भावनाओं का विशेष महत्त्व है।
यहां सबकुछ बदला। रहन-सहन का स्तर, महंगी गाड़ियां, आधुनिक चीजें आदि। लेकिन पूजा विधि में बिल्कुल पारंपरिक चीजें जैसे- बांस से बना सूप, टोकरियां, मिट्टी के दीये, ईख, मौसमी फलों, सब्जियों, गुड़ से बने पकवान आदि का ही विधिवत उपयोग किया जाता है। हर वर्ग के लोगों के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार छठि मईया ने ऐसा संयोग बनाया है जिसे कोई भी भक्त निर्मल मन से इसे स्वीकार करता है।
छठ के गीतों में भी एक अजीब सी भावनाओं का समावेश मिलता है।
1, “मांगीला हम वरदान हे गंगा मैया मांगीला हम वरदान,
राजा दशरथ ससुर दिह, सासु कौशल्या समान।
राम जैसन बेटा तू दिह, बेटी सीता समान।”
अर्थ- भक्त मां गंगा से मांगती हैं कि ससुर जी उन्हें राजा दशरथ के जैसे और सासु मां कौशल्या के जैसी मिले। संतान के रूप में उन्हें राम जैसा पुत्र हो और पुत्री उन्हें सीता के जैसी संस्कारी मिले।
2, “रूनकी झुनकी बेटी मांगीला, पढलो पण्डितवा दामाद, हे छठि मईया दर्शन दिहीन अपार।”
अर्थ- भक्त छठि मईया से विनती करती हैं कि उन्हें एक चंचल पुत्री मिले साथ ही पढ़ा लिखा दामाद भी।
कुल मिलाकर कहा जाये तो छठ महापर्व में प्रकृति से जुड़ी चीजों का ही समावेश है। यूं ही नहीं लोगों की आस्था ईश्वर से जुड़ी हुई है। कोई न कोई अदृश्य शक्ति तो जरूर है जो इस सृष्टि को संचालित करती है। जब कभी भी हमारे देश में आपदा, महामारी आदि का प्रकोप होता है तो ये अदृश्य शक्तियां ही इस सृष्टि की सुरक्षा का कमान संभालती हैं। अध्यात्म में वो शक्ति है जिसके सहारे हम बड़ी से बड़ी प्रतिकूल परिस्थितियों पर भी विजयी प्राप्त कर सकते हैं।
3, कर्तव्य निष्ठा की सीख।
भगवान भास्कर से हमें अपने जीवन पथ पर निरंतर चलने की सीख मिलती है। प्रतिदिन अपने निर्धारित समय पर सूर्योदय और सूर्यास्त से यह प्रेरणा मिलती है कि कैसे सूर्य देव भी अपनी रौशनी से पूरी दुनिया को प्रकाशित करते हैं। जब सभी देवताओं ने भी सृष्टि की सुरक्षा की कमान खुद ही संभाल ली है तो कहीं न कहीं हमारी भी यह जिम्मेदारी बनती है कि हम सब एक साथ मिलकर देश को निरंतर प्रगति की राह पर ले चलें।

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