आलेख़

आधुनिक परिपेक्ष्य में मातृत्व के बदलते स्वरूप

आधुनिक परिपेक्ष्य में मातृत्व के बदलते स्वरूप
विद्या:—गद्य

बदलते वक्त के साथ
मातृत्व का सुख सिर्फ माँ को ही मिले
विज्ञान ने इस भ्रम को तोड़ा है
पिता को भी दे मातृत्व का सुख
समाज के संकीर्ण रिवाजों को झकझोरा है!
ना है तु-तु,मै-मै की चिक-चिक
ना ही समाज का बंधन है
आपसी सहयोग से
स्त्री-पुरूष को समान मातृत्व का
सुखद अनुभव उठाने का मिला
अनोखा सुअवसर है!
नहीं करती है माँ नौकरी का त्याग
बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए
मातृत्व का गला घोट देती है
जिसे न चिन्ता लोगों के सोचो की
ना ही परवाह समाज के कटु बातों की
है दृढ विश्वास अपने मातृत्व पर
बच्चों को
सफलता के शिखर पर पहुंचाने की
निभाते है कर्तव्य जनक व जननी का
हर अवरोधों से लड़ते हैं
जूझते हुए जीवन के जटिल भंवर से
बच्चों में सकारात्मक उर्जा भरते हैं
है लाख परेशानियाँ उसके दामन में
पर बच्चों का भविष्य उज्जवल बनाते हैं !

अर्पणा सिंह,

रांची, झारखंड
स्वयं के अनुभव पर स्वरचित रचना ।

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