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वर्तमान समय मे प्रकृति और अध्यात्म का समन्वय विगड़ गया है : एन.के. सिंह

राची, झारखण्ड | जून | 02, 2024 ::

पर्यावरण और अध्यात्म का बहुत गहरा संबंध है। आध्यात्मिकता हमें वास्तविकता की ओर ले जा कर प्रकृति और पुरूष (आत्मा) के गहरे संबंध का अनुभव कराती है। भारतीय संस्कृति
पर्यावरण के साथ बहुत नजदीक से जुड़ी है। हमारी जीवन शैली सदा ही पर्यावरणमित्र शैली रही है। परंतु वर्तमान समय प्रकृति और अध्यात्म का समन्वय विगड़ गया है। ये उद्गार आज
ब्रह्माकुमारी संस्थान चौधरी बगान, हरमू रोड में विश्व पर्यावरण दिवस के पूर्व सप्ताह में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित एन.के. सिंह पी०सी०सी०एफ० ने दीप प्रज्वलन करने के उपरांत व्यक्त किये।

कार्यक्रम में उपस्थित अशोक कुमार एoपीoसीoसी०एफ० ने कहा हम प्रकृति का उपयोग उसका शोषण करने के लिए नहीं बल्कि विकास की मशाल को जलाकर रखने के लिए करें। साथ
ही उसकी पवित्रता को भंग होने से भी बचायें जिससे मानव को आध्यात्मिक शक्ति का बल मिले ।

कार्यक्रम में उपस्थित डा० अविनाश ने कहा कि प्रदूषण के फलस्वरूप प्रकृति के पांचों तत्वों का विघ्वंसक रूप देखने को मिल रहा है। प्रकृति यह संदेश दे रही है कि अब यह जागने का समय है। अब प्रकृति के साथ जुड़कर उसे देवतुल्य मानने की परंपरा को जीवित रखने की आवश्यकता है। हमें आध्यात्मिक जीवन को अपनाकर अपने हृदय में प्रकृति के प्रति निच्छल प्रेम जगाने की आवश्यकता है। अब हम सभी आदतों को परिवतन करें और प्रकृति की रक्षा के लिए कुछ संकल्प करें।

कार्यक्रम में उपरि्थित तनूजा अधिकारी, इनर व्हील क्लब की पूर्व अध्यक्षा ने कहा आधुनिक जीवन शैली के कारण बढ़ते प्रदूषण को रोक लगाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्त यह संकल्प ले कि अपने जीवन काल में कम से कम 10 पेड अवश्य लगाये एवं उसका संरक्षण करें । इससे पर्यावरण संतुलित रहेगा।

कार्यक्रम में उपस्थित मीरा कुमारी गुप्ता, उप आयुक्त स्टेट टेक्स विभाग ने कहा पर्यावरण को नजर अन्दाज करना ही मानव जीवन के लिए विपत्तियों का कारण बन गया है। पांचों तत्वचों
की सुरक्षा के लिए भारत की अहम भूमिका रही है। तभी तो पांचों तत्वों की पूजा की जाती है।

केन्द्र संचालिका ब्रह्माकूमारी निर्मला बहन ने कहा कि आईये इस विश्व पर्यावरण दिवस पर शांति और सदभाव का वातावरण बनाने का लक्ष्य रखें। भौतिक पर्यावरण को बचाते हुए इस बार सूक्ष्म पर्यावरण पर भी नजर डाली जाय। उन्होंने कहा मॉल या मंदिर में एक ही लोग आते हैं। हालांकि हर जगह की ऊर्जा अलग-अलग होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक ही लोग अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग विचार और भावनाएं पैदा करते हैं।

एक ही लोग रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं और आश्रमों, गुरूद्धवारों में ब्रह्माभोजन व लगंर भी। लेकिन खाना खाते समय उनके मन में उठने वाले विचार अलग अलग होते है। कारण जिस भावना के साथ खाया जाता है। इस प्रकार किसी विशेष क्षेत्र में सामूहिक विचारों और भावनाओं द्वारा एक सूक्ष्म वातावरण या ऊर्जा का क्षेत्र बन जाता हैं जिसे देखा या सुना नहीं जा सकता है।
बल्कि केवल महसूस किया जा सकता है। अप चर्च या मंदिर में बहुत शांति का अनुभव करते हैं और श्मशान में उदास हो जाते हैं। इस प्रकार एक ही व्यक्त अलग-अलग विचारों के कारण
अलग-अलग स्थानों पर अलग-अगल ऊर्जाएं पैदा कर रहा है। हमारे द्वारा निर्मित प्रत्येक विचार एक उर्जा है जो वातावरण में कंपन कर रही है। विचार
हमारे दिमाग में आने वाली सूचनाओं के आधार पर बनते हैं। इसलिए सुबह-सुबह अपने दिमाग को आध्यात्मिक विचारों से भरना आवश्यक है। ऐसी जानकारी जो आपको प्रेरित करती है, आपको अच्छाई की दिशा दिखाती है अपको धर्यवान बनाती हैं। आप वही बन जाते हैं जो आप देखते हैं। अगर आप मीडिया के द्वारा क्रोध, वासना और लालच देखते हैं तो आप खुद को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे है। इसलिए अपने आसपास की सूक्षम उर्जा को बदलें और अपने घर और दप्तर को सकारात्मक उर्जा से भरपूर जगह बनायें। इससे आपके आस -पास के लोगों की भी ऊर्जा बढ़ेगी। इस तरह संघर्ष कम होंगे और वातावरण में सामंजस्य पैदा होगा। वैचारिक प्रदूषण
को कम करने की दिशा में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

कार्यक्रम में डा० अनुराधा प्रचार्या पटेल बीएड कॉलेज एवं गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया एवं बाल कलाकारों के द्वारा पर्यावरण थीम पर आधारित नृत्य नाटिका भी प्रस्तुत की गई ।

 

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