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होलिका दहन की राख है प्राकृतिक चिकित्सा का हिस्सा : आर्य प्रहलाद भगत

रांची, झारखण्ड | मार्च | 25, 2021 :: प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी का बहुत महत्व होता है।
प्राकृतिक चिकित्सा में माटी का प्रयोग कई रोगों के निवारण में प्राचीन काल से ही होता आया है।
नई वैज्ञानिक शोध में यह प्रमाणित हो चुका है कि माटी चिकित्सा की शरीर को तरो ताजा करने जीवंत और उर्जावान बनाने में महती उपयोगिता है।
चर्म विकृति और घावों को ठीक करने में मिट्टी चिकित्सा अपना महत्व साबित कर चुकी है।
माना जाता रहा है कि शरीर माटी का पुतला है और माटी के प्रयोग से ही शरीर की बीमारियां दूर की जा सकती हैं।
हमारे पूर्वज यही सोचकर होली के दिन  सुबह में धुरहेड कहकर एक दूसरे ऊपर  होलिकादहन का राख एवं मिट्टी का लेप  डालने का परम्परा बताया जिसे हमलोग नाली के कीचड़ डालना,कपड़ा फाड़ना उदंडता करना शुरू किया जो झगड़ा का कारण बन जाता है।
मेरा प्रार्थना है कि इस बार की होली में  प्रातः 7-8 बजे मिट्टी का लेप स्वयं अपने शरीर के  सभी अंगो में बाल सहित लगाकर एक घंटा धूप में बैठ कर  ध्यान लगाएं,आसन करे, स्थिर चुपचाप बैठ कर शरीर के मिट्टी को सूखने दे।
इसके बाद स्नान कर ले आपके शरीर के सभी बिनासक तत्व बाहर हो जाएंगे।
आप स्वस्थ्य ही जायेंगे।
यह कार्यक्रम की  प्रचार प्रसार अभी से शुरू कर दे उस दिन परिवर साथ/ मुहल्ले साथ सामुहिक करे तो अति आनंद के साथ होगा।

सावधानियां-
तालाब  की  मिट्टी, खेत के एक फिट नीचे कि मिट्टी, मुल्तानी मिट्टी या दीमक की मिट्टी ब्यवस्था कर उसे चूर कर कंकड़ हटा लेना है।
वर्तन में पानी रख कर मिट्ठू का गाढ़ा घोल बनाना है।
माथे में लगाने समय आंखे बंद कर लेना है बाद में आंख खोल ले।
पुरुष तौलिया लपट कर पूरा शरीर खुला रखे।
महिलाएं अपनी सुविधानुसार कपड़े पर ही मिट्टी का लेप लगाएंगे।
आप निरोग हो जाएंगे और पुरानी परंपरा पुनः सुब्यवस्थित होगी।

योगाचार्य:- आर्य प्रहलाद भगत
(स्नातकोत्तर –  योग साइंस एवं नेट क्वालीफाईट)

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