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पशुओं में भी होती है मानवीय संवेदनाएं :: गुड़िया झा

राँची, झारखण्ड । दिसम्बर | 02, 2017 :: गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर का यह कथन कि जानवरों में भी मानवीय संवेदनाएं होती हैं। यह कथन बिल्कुल सही है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मेरे कॅालोनी में रहनें वाले कुत्ते शेरू में देखनें को मिलता है।
मेरी शादी को बारह साल हो चुके हैं। इन बारह सालों में मेरे जीवन में काफी उतार-चढ़ाव आए। शेरू सभी परिस्थितियों में मेरे साथ रहा। मौसम बदलता गया। समय अपनी रफ्रतार से आगे बढ़ता गया। प्रत्येक आदमी की अपनी-अपनीं जरूरतें बढ़ती गयीं। मनुष्य अत्याध्ुनिक सुविधओं से लैस जीवन जीते हुए अपनें अतीत को भूलते गये और सुखी जीवन जीनें के लिए दिन-रात भागदौड़ करनें को मजबूर हुए। लेकिन शेरू की न तो कभी अपनीं आवश्यकताएं बढ़ीं और न ही वह मेरे हाथों की रोटी खाकर एहसान फरामौश हुआ। सच में अमीर वो नहीं होते जिनके पास बहुत दौलत होती है, बल्कि अमीर वो होते हैं जिनकी अपनीं आवश्यकताएं कम होती हैं। मैनें उसे व्यक्तिगत रूप से पाला नहीं है। वह यूं ही कॅालोनी में घूमता फिरता रहता था। आज भी वह स्वतंत्रा होकर घूमता फिरता है। एक बार उसे नगर-निगम वाले उठा के ले गये। सभी को लगा कि पता नहीं वह कहंा चला गया। जैसे कोई परिवार का सदस्य कहीं बिना बताए चला गया हो। दो-तीन दिनों के बाद शेरू वापस इसी कॅालोनी में घूमनें लगा।

हम इंसानों की तरह इन जानवरों में भी मान-सम्मान की भावना होती है। तभी तो जब मैं रोटी उसके सामनें रख देती हूं, तो वह नहीं खाता है। लेकिन जब मैं रोटी अपनें हाथों से उसें मुंह के पास जाकर देती हूं तो वह अपनें दंातों से पकड़ कर रोटी को अपनीं ओर खींच लेता है। जब वह रोटी को मेरे हाथों से पकड़ कर लेता है तो पूरी सावधनी से कि कहीं उसके दंात मेरे हाथों को लगे ना। कुछ दिन पहले मेर घर में पेंटिग का काम हो रहा था। काम करनें वाले मजदूरों नें शेरू के पानी पीनें वाले मग का उपयोग किया। जिससे पेंट मग के कुछ हिस्सों पर जा गिरा। घर के काम में व्यस्त होनें के कारण मैनें भी उसे उसी मग में पानी पीनें के लिए दे दिया। तो उसनें अपना चेहरा घूमा लिया और बाहर चला गया। दूसरे दिन मैनें उसे नये मग में पानी पीनें के लिए दिया, तो वह खुशी से पानी पीनें लगा।

ठंड के दिनों में वह मेरे घर के कैंपस में आकर पूरा दिन ध्ूप में सोया रहेगा। सुबह बच्चों को स्कूल भेजते समय जब मैं उन्हे गेट से बाहर छोड़नें जाती हूं तो वह भी बाहर निकलेगा। मेरे अंदर आनें पर वह भी अंदर आ जाएगा। उसके बाद शेरू के नास्ते का समय होता है। उसमें जरा सी भी देरी होनें पर वो खानें को थोड़ी देर छूएगा भी नहीं। मेरी तरफ गौर से देखता है जैसे कहा रहा हो कि मैं भी तुम्हीं पर निर्भर हूं। रात को नौ बजे के बाद वह खाना नहीं चाहेगा।

मेरे दोनों बच्चो की आवाज को वह अच्छी तरह पहचानता है। जब वह रात को कहीं दूसरें के घर में चला जाता है तो बच्चे उसे खानें के लिए आवाज लगाते हैं। वह तुरंत दौड़ा हुआ मेरे घर की ओर चला आता है। बच्चों के जन्म दिन पर मैं उसे खीर भी खिलाती हूं। जिसे वह बड़ी खुशी से खाता है। उसे पकौड़ियंा भी बहुत पसंद हैं। जब मैं उसे रोटी के साथ पकौड़ियंा खानें को देती हूं, तो वह सबसे पहले पकौड़ियों को खाएगा फिर बाद में वह रोटी खाता है।

इन बेजुबानों की तरफ हम अगर गौर से देखें तो लगता है कि जैसे ये अपना दर्द किसे और किस रूप में बताऐंगे। ये भी हमारे प्यार और गुस्से को अच्छी तरह समझते हैं। ये बोल नहीं सकते। सिर्फ महसूस करते हैं। इन्हें अगर किसी चीज की जरूरत है तो हमारे स्नेंह और इनके प्रति हमारे दिल मंे थोड़ी सी जगह की।

– गुड़िया झा

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