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जीवन के आनंद में “अपनापन” का महत्वपूर्ण योगदान : गुड़िया झा

रांची , झारखण्ड | मई | 05, 2020 :: कई बार अक्सर ऐसा होता है कि कुछ चीजें जो हमारी इच्छा के अनुसार नहीं होती, तो हमें परेशानी का अनुभव होता है।
उन परेशानियों से तंग आकर हम उन चीजों या उन स्थितियों को बदलना चाहते हैं।
जब ये चीजें हमारे मन के अनुकूल नहीं होती हैं, तो हमारा मानसिक तनाव बढ़ता है।
जिसके कारण हमें अपने जीवन में आनंद की कमी दिखती है।
कई बार हमारा सामना ऐसे लोगों से होता है, जो हमें पसंद नहीं होते और हम उनसे दूरी बनाना चाहते हैं।

अपनी पुस्तक “जन्मजात विजेता” में श्री नवीन चौधरी जी नें बहुत ही खूबसूरत तरीके से इस पर विस्तार से चर्चा की है कि जीवन का आनंद और उसकी गुणवत्ता का अनुभव तब किया जाता है जब लोगों से हमारे सम्बन्ध अच्छे हों।
अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जरूरी है कि हम लोगों को उसी रूप में स्वीकारें जिस रूप में वे वास्तव में हैं, ना कि उस रूप में जैसा कि हम चाहते हैं।

कुछ बातों पर ध्यान देकर हम अपने जीवन को और भी आनंदमय बना सकते हैं।
1, अपनापन का जवाब नहीं।
ये वो व्यवहार है जिसे अपनाकर हर किसी में परिवर्तन लाया जा सकता है।
हमारे आसपास कई ऐसे लोग भी होते हैं जिनके व्यवहार को हम बदलना चाहते हैं।
ये तभी संभव है जब हम उन्हें वास्तविक रूप में स्वीकार कर तथा अपनापन का रास्ता अपना कर उस पर आगे बढ़ें।
अपनापन से ही हम हर स्थिति को अपने अनुकूल बना सकते हैं।

मैंने खुद ही इसे अपने जीवन में महसूस किया है और बहुत सी परिस्थितियों को बदलते हुए भी देखा है कि किस तरह शांति के मार्ग पर चलते हुए हम प्रत्येक उन चीजों पर विजयी पा सकते हैं, जो हमारे मन के अनुकूल नहीं होते। इससे हमारे अंदर नई ऊर्जा का संचार तो होता ही है, साथ जी हमारे आगे बढ़ने का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

2, प्रतिरोध से बचें
ये बात भी सच है कि प्रतिरोध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।
हम कहां और किस-किस से प्रतिरोध करेंगे।
इससे हमारा बहुमूल्य समय तो बर्बाद होता है साथ ही हमारे सम्बन्धों में भी बिखराव की संभावना बढ़ जाती है।
इतना ही नहीं हमारे सोचने,समझने की क्षमता पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
हमें अपने सम्बन्धों को नया आयाम और मजबूती प्रदान करने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि प्रतिरोध की भावना से ऊपर उठ कर आगे बढ़ें।
किसी भी परिस्थिति पर हमारा नियंत्रण नहीं होता है।
क्यों ना हम उन परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल कर कुछ ऐसा करें जो हमारे और दूसरों के लिए भी अच्छा हो।

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