दबाव से नहीं बल्कि प्यार से पढ़ायें बच्चों को :: गुड़िया झा
जैसा कि हम सभी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि अभी का यह समय बच्चों की परीक्षाओं की तैयारियों का समय है।
ऐसे में यह स्वाभाविक है कि बच्चों के साथ-साथ माता-पिता भी काफी तनाव में रहते हैं ।
बच्चों में तनाव का एक प्रमुख कारण उन्हें स्कूलों में शिक्षकों और घर में माता-पिता द्वारा दिया गया दबाव काफी महसूस होता है।
बच्चों के कोमल मन पर इसका बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह बात अलग है कि बच्चे अपनी सहनशीलता और आचरण का परिचय देते हुए हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते हैं ।
बच्चे तो जन्म से ही विजेता हैं।
प्रत्येक बच्चों में जन्म से ही कुछ न कुछ ईश्वरीय गुण भी होते हैं।
माता-पिता या शिक्षक बनकर हम उनके लिए एक अच्छे मार्ग दर्शक जरूर बन सकते हैं।
हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी अपने एक भाषण में कहा था कि आज बचपन तेजी से समाप्त हो रहा है।
इसे बचाते हुए बच्चे को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
बच्चे भी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि परीक्षाओं में वह काफी अच्छे नंबर लाकर आगे बढ़ें। ऐसे में हमारे लिए यह आवश्यक हो जाता है कि उनपर किसी भी तरह का दबाव न बनाकर प्यार से उन्हें प्रोत्साहित करें। हमारी थोड़ी सी कोशिश से उन्हें आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
1, दोस्त के समान व्यवहार करें।
कई बार हम बच्चों के साथ काफी सख्ती से पेश आते हैं।
हमारे मन में यह भावना हमेशा रहती है कि बच्चे अच्छा करें और हमारा नाम रौशन करें। इन सब बातों के पीछे हम यह भूल जाते हैं कि उनमें भी इंसानियत है, वो बचपन है जिसे दबाने का अधिकार हमें भी नहीं है।
इन सबके अनुकूल यदि हम माता-पिता होने के साथ-साथ दोस्ती का व्यवहार बनाकर पेश आये, तो निश्चित ही बच्चे हमारी भावनाओं को समझेंगे और अपनी काबिलियत के बल पर जरूर आगे बढ़ेंगे।
इतना ही नहीं वे अपनी किसी भी समस्या को हमसे छुपायेंगे भी नहीं। कई बार ऐसा होता है कि हमारे सख्त व्यवहार के कारण बच्चे अपनी समस्याएं नहीं बता पाते हैं, जिसे वो अपने दोस्तों के साथ या फिर किसी दूसरे व्यक्ति को बताते हैं।
इससे उनके भ्रमित होने की सम्भावना बनी रहती है।
हमारा एक छोटा सा प्रयास बच्चों में बदलाव के व्यवहार को प्रेरित करता है।
कुल मिलाकर माता-पिता होने के नाते हमारा मकसद एक ही होता है कि बच्चे बेहतर करें और आगे बढ़ें। तो क्यों न हम स्वयं में थोड़ा सा बदलाव लाकर बच्चों की भावनाओं को समझते हुए उन्हें प्रेरित करेंगे, तो इसके अच्छे परिणाम भी हमें देखने को मिलेंगे।
2, तुलना करने से बचें।
ये बात भी सच है कि अच्छे संस्थाओं में नामांकन के लिए अच्छे नम्बरों का होना भी आवश्यक है।
लेकिन कई बार हम बच्चों के सामने किसी दूसरे बच्चे से तुलना कर उनके मन को आहत करते हैं। इस प्रकार की आदतों से बच्चे अपने आपको कमजोर महसूस करते हैं।
हमें भी अपनी इन आदतों पर अंकुश लगाना होगा। क्योंकि जब हमारे हाथों की सभी उंगलियां भी एक जैसी नहीं होती हैं, तो फिर सभी बच्चों की योग्ताएं और क्षमताएं एक जैसी कैसे हो सकती हैं?
हमारे लिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम बच्चों के साथ छोटी- छोटी बातों पर सख्ती से पेश आने की जगह यदि हम उनके साथ प्यार, धैर्य और सहनशीलता से पेश आयेंगे, तो बच्चे भी हमारा सम्मान बढ़ाने में कभी पीछे नहीं हटेंगे।
क्योंकि कई बार बच्चे गलतियों से भी सीखते हैं। किसी भी तरह का दबाव या तुलना उनमें पढ़ाई के प्रति प्रोत्साहन को कम करता है।
इसके लिए हम सबको मिलकर आगे आना होगा।
बच्चे केवल हमारी या आपकी नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र की संपत्ति हैं।