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स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग रांची विश्वविद्यालय रांची के द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं संस्कृत भाषा विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन 

 

रांची,  झारखण्ड  | मार्च  | 26, 2022 :: आज दिनांक 26/03/2018 को स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग रांची विश्वविद्यालय रांची के द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं संस्कृत भाषा विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका विधिवत शुभारंभ विभागीय प्राध्यापकों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। मंच संचालन जगदम्बा प्रसाद सिंह, धन्यवाद ज्ञापन जगन्मय विश्वास तथा मंगलाचरण पूर्वा राय चौधरी ने किया।डा.चन्द्रशेखर मिश्र ने कहा शिक्षा ऐसी हो जो रोजगार परक हो, राष्ट्र व समाज के लिए हितकर हो , इसमें तकनीक का प्रयोग हो, शिक्षित लोगों को रोजगार में जोड़ सके, और यह सभी संभावनाएं राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दिखायी देती हैं। डॉक्टर श्री प्रकाश सिंह ने कहा संस्कृत भाषा निश्चित रूप से वर्तमान शिक्षा नीति के निर्धारित सोपान ओं के आधार पर अपने विकास पत्र की ओर अग्रसर होगी। भाषा के विकास के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति त्रिभाषा के मजबूत विकल्प के रूप में पुष्पित पल्लवित होगी और भारत पुनः विश्वगुरु पद को प्राप्त होगा। डा.उषा टोप्पो ने कहा कि नवीन शिक्षा नीति में भारतीय संस्कृति को संरक्षित करने का सराहनीय प्रयास किया गया है, जिससे विद्यार्थियों में सामाजिक व सांस्कृतिक संस्कार पल्लवित होंगे। डॉ मधुलिका वर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के माध्यम से संस्कृत भाषा का सकारात्मक प्रभाव समाज में परिलक्षित होगा। संस्कृत अध्ययन अध्यापन की सरल पद्धति विकसित होगी जिसके परिणाम स्वरूप लोग भारती ज्ञान परम्परा से परिचित हो सकेंगे।नवीन शिक्षा नीति का विजन भारतीय मूल्यों से विकसित शिक्षा प्रणाली है। डा.भारती द्विवेदी ने कहा कि वर्तमान शिक्षा नीति के परिचय में ही बताया गया है कि प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान परम्परा और विचार के आलोक में यह नीति तैयार की गई है। ज्ञान , प्रज्ञानऔर सत्य की खोज को भारतीय परम्परा और दर्शन में सदा सर्वोच्च मानवीय लक्ष्य माना जाता था। और इसी को आधार में रखकर ही नवीन शिक्षा नीति का निर्माण किया गया है।डा.नीलिमा पाठक ने कहा कि अधिकतर भाषा का अध्ययन विद्यार्थियों को करना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संस्कृत भाषा की अपार सम्भावनाएं हैं लेकिन उसके सफल क्रियान्वयन का दायित्व हम शिक्षकों के साथ-साथ छात्रों पर भी है। उपाधियां हासिल करने के साथ- साथ सकारात्मक गुणों का विकास बहुत आवश्यक है। विभागाध्यक्ष प्रो.अर्चना कुमारी दुबे ने कहा कि वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रमुख आधार भारतीय जड़ों एवं गौरव से बंधे रहना, जहां प्रासंगिक लगे वहां भारत की समृद्ध और विविध प्राचीन और आधुनिक संस्कृत ज्ञान प्रणालियों और परम्पराओं को शामिल करना व उससे प्रेरणा पाना है। नवीन शिक्षा नीति बहुत ही जीवनोपयोगी व मूल्यपरक है।
इस अवसर पर सुरजीत घोषाल,आस्तिक हजाम और संस्कृत व ज्योतिर्विज्ञान के सभी प्रतिभागी उपस्थित रहे।

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