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मिट्टी में छिपे भाई-बहन का प्यार- सामा चकेवा

मिट्टी में छिपे भाई-बहन का प्यार- सामा चकेवा
गुड़िया झा
हमारे देश भारत में विभिन्न प्रकार के समुदाय के लोग रहते हैं। सभी की अपनी-अपनी संस्कृति होती है। प्रत्येक संस्कृति की अपनी एक विशेष विशेषता भी होती है, जिसके माध्यम से हमें यह पता चलता है कि हमारा देश भारत अपनी संस्कृतियों के लिए ही पूरी दुनिया में मशहूर है। बिहार के मिथिलांचल में कार्तिक पूर्णिमा के दिन भाई-बहन के परस्पर प्रेम को दर्शाता सामा चकेवा बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। कहने को तो सामा चकेवा मिट्टी से बनाया जाता है, लेकिन इसमें भाई-बहन के प्यार की खुशबू वर्षों से महकती चली आ रही है।

1, छठ पूजा के खरना से शुरू होती है तैयारी।
सामा चकेवा बनाने की तैयारी छठ में खरना के दिन से शुरू हो जाती है। उसी दिन मिट्टी को गूंथ कर उससे हर तरह की आकृतियां जैसे- रंग-बिरंगी चिड़ियां, सिरी सामा, चुगला, छोटी-छोटी टोकरियां आदि बनाने का काम शुरू हो जाता है। रोज शाम को इसे आसमान से गिरने वाली ओस की बूंदों में थोड़ी देर रखा जाता है। उसके बाद सभी को धूप में सुखाने के बाद देवोत्थान एकादशी के दिन उन पर चावल के आंटे से सफेद रंग में रंग कर हर तरह के रंगों से सजाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहनें रात्रि में कुल देवी-देवता के समक्ष प्रणाम कर नई फसल का चूरा, गुड़ और दही सामा को भोग लगाती हैं। उसके बाद बहनें पान के पत्तों को आंचल में रख कर सिरी सामा का एक दूसरे से आदान-प्रदान करती हैं। फिर जोते हुए खेत में चुगला को जलाने के बाद सभी मिलकर वहां सामा खेलती हैं तथा भाइयों को भी तोड़ने के लिए देती हैं।
इसमें सिरी सामा जहां पूजनीय हैं, वहीं चुगला विभाजनकारी शक्तियों का प्रतीक है। इसमें चुगला को जलाने का तात्पर्य यह है कि भाई-बहन के आपसी प्रेम में तीसरा कोई अड़चन ना आए।

2, सामा के गीतों में स्नेह की खुश्बू आती है।
” गाम के अधिकारी हमर भैया हो,
भैया हाथ दस पोखरी खुनाय दिअ,
चम्पा फूल लगायब हो”।
बहनें आज भी भाई से किसी कीमती चीज की मांग नहीं करती हैं। वे बस इतना कहती हैं कि आप गांव घर के अधिकारी हैं। आप मुझे दस हाथ की पोखरी यानी एक छोटा सा तालाब ही बनवा दीजिए। मैं उसमें चम्पा फूल लगाउंगी।
” भैया लोढ़ायब भौजो हार गाथब हे,
सेहो हार पहिनत बहिनों, साम चकेवा खेलब”।
बहन को अपने भाई-भाभी से इतना प्यार है कि भैया इस फूल को एकत्रित करेंगे और भाभी उनका हार यानी माला बनाएंगी। जिसे बहनें पहन कर सामा चकेवा खेलेंगी।

3, पौराणिक मान्यता।
सामा भगवान श्री कृष्ण की बेटी थीं। वे मुनि के आश्रम में रहती थीं। एक दिन वे बिना किसी को कुछ बताये आश्रम से चली गईं।शरद ऋतु के प्रारंभ होते ही बहुत सी रंग-बिरंगी चिड़ियां मिथिलांचल की तरफ चली जाती हैं। सामा भी उन्हीं रंग-बिरंगी चिड़ियों को देखने के लिए मिथिलांचल चली गईं। मुनि ने उन पर आरोप लगाया कि वे अच्छी आचरण की नहीं हैं, इसलिए बिना बताये चली गईं। मुनि ने उन्हें शाप दे दिया कि वे भी उन चिड़ियों के जैसी हो जाएंगी। मुनि के शाप से सामा चिड़ियां बन गईं। सामा के भाई ने मुनि के शाप से उन्हें मुक्त कराया। तभी तो महिलाएं जब सामा खेलती हैं तो कुछ सामा को तोड़ने के लिए अपने भाईयों को देती हैं ।

4, रिश्तों को बांधने का देता है संदेश।
यह त्योहार हमें यह संदेश देता है कि हम कितने ही व्यस्त क्यों न हों, हमें अपने रिश्तों की बागडोर को मजबूती से थामे रखना है।रिश्तों में अगर आपसी सामंजस्य हो तो कोई भी अड़चन आपसी प्रेम को कम नहीं कर सकता है।आज जब सांसारिक कारणों से भाई-बहन दूर रहते हैं, तो यह पर्व उन्हें एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करना सिखाता है।

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