राची, झारखण्ड | मई | 26, 2024 ::
कलियुग और सतयुग के इस पुरूषोत्तम संगम समय साधना में लगे साधक को
भोजन पर बहुत ध्यान रखना चाहिए। इसमें शुद्ध ब्रह्मा भोजन सहायक है। ये विचार आज यहाँ चौधरी बागान हरमू रोड, रॉँची ब्रह्माकुमारी संस्थान में आयोजित ब्रह्मा भोजन के अवसर पर ब्रह्माकमारी निर्मला बहन ने अभिव्यक्त किये। उन्होंने कहा भोजन बनाने वाले
के विचार शुद्ध, पवित्र और समर्थ होने चाहिए। भोजन ग्रहण करते समय शिव परमात्मा की याद में भोग लगाकर खाये तो भोजन ब्रह्मा भोजन बन जाता है। जिसके लिए देवताएं तरसते हैं। ऐसे ब्रह्मा भोजन करने वाले का मन परमात्मा की मधुर स्मृति में स्थिर होकर
परमानन्द का अनुभव करेगा और तन एवं आन्तरिक अंग सदा स्वस्थ्य रहेंगे। भोजन से भावनाएं पैदा होती है और भावनाएं हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का निर्माण करती है। इसलिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि हम क्या खाते हैं चूंकि अवचेतन मन हमारे संस्कारों को धारण करता है इसलिए कहा जाता है कि हम वही बन जाते हैं जो हम खाते हैं। वैज्ञानिक भी इस अवधारणा का समर्थन करते हैं कि सभी पदार्थ हमारे विचारों की उर्जा पर प्रतिक्रिया करते हैं। तो क्यों न हम अपने भोजन को चार्ज कर दे उच्च
आध्यात्मिक उर्जा से भर दें। शिव पिता की याद में बनाया गया भोजन ब्रह्मा भोजन कहलाता है।
इस अवसर पर सहज राजयोग तथा सप्तरंगों के प्रकाश द्वारा सभी ने मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य डायबिटिज, किडनी व गैस आदि बीमारियों में लाभ का अनुभव किया।
विभिन्न गीतों द्वारा भी मेडिटेशन किया गया।
अन्त में सभी ने ब्रह्मा भोजन स्वीकार किया और झारखंड प्रदेश, देश व विश्व में शांति व समृद्धि की कामना के प्रकम्पन वायुमण्डल में प्रेषित किये।