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प्रहलाद का अर्थ है वह पहला व्यक्ति जिसको माध्यम बनाकर परमात्मा पिता सबको अल्हादित करते हैं : ब्रह्माकुमारी निर्मला

राची, झारखण्ड | मार्च | 24, 2024 ::

भारत त्योहारों की भूमि है, जिसमें होली के त्योहार का विशेष महत्व है| होली का त्योहार हम सभी बडी खुशी के साथ मनाते हैं, होलिका दहन करते हैं, एक दूसरे को बड़े प्यार से रंग लगाते हैं। ये त्योहार ऐसे ही नहीं मनाते हैं बल्कि इसके पीछे आध्यात्मिक महीन रहस्य
छिपे हुए हैं। ये उदगार होली के अवसर पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के स्थानीय सेवा केन्द्र चौधरी बगान, हरमू रोड़ में राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी निर्मला ने अभिव्यक्त
किए।
उन्होंने कहा वास्तव में परमात्मा का धरती पर अवतरित होना और हिरण्यकश्यप (विकारों का प्रतीक) का वध कर प्रहलाद (पवित्रता का प्रतीक) की रक्षा करना ही वह महाघटना
है जिसकी याद में यह त्योहार मनाया जाता है। कल्प के अंतिम युग कलियुग और कलियुग के भी अंतिम चरण में धर्म की अति ग्लानि हो जाती है और हिरण्यकश्यप जैसे लोगों का ही
बहुमत हो जाता है। राज्य कारोबार भी उनके हाथों में ही आ जाता है। वे लोग परमात्मा से बेमुख होकर उनकी मत के विपरीत आचरण करते हुए मनमानी करते हैं। परमात्मा के मार्ग पर चलने वालों पर अत्याचार होते हैं, कलंक लगते हैं, उन्हें सहयोग नहीं मिलता है। ये अल्पमत में होते हैं। प्रहलाद ऐसे ही लोगों का प्रतिनिधित्वच करता है। प्रहलाद का अर्थ है वह पहला व्यक्ति
जिसको माध्यम बनाकर परमात्मा पिता सबको अल्हादित करते हैं। इस कर्तव्य की पूर्ति के लिए परमात्मा पिता गुप्त रूप में धरती पर अवतरित होते हैं। होलिका रूपी विकारों की अग्नि से
बचाने के लिए योग अर्थात ईश्वरीय स्मृति रूपी चादर (कवच) देते हैं। ईश्वरीय याद के बल से विकारों की अग्नि शीतल हो जाती है। ईश्वर से प्रेम करने वालों की जीत हो जाती है और
उनसे बेमूख करने वाली भावना का नाश हो जाता है। इसी की याद में पहले दिन होलिका जलाई जाती है और अगले दिन एक दो से गले मिलकर एक दो को रंग लगाकर स्नेह मिलन
किया जाता है। इस अवसर पर नृत्य द्वारा खुशी व्यक्त किया गया।

 

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