राची, झारखण्ड | जून | 09, 2024 ::
* बिरसा मुंडा अकाल में गरीबों असहायों के लिए भगवान की तरह उनकी देखभाल और मदद किए थे – अर्जुन राम
आज वनवासी कल्याण आश्रम के सभागार में जनजाति सुरक्षा मंच एवं सेवाधाम पुरातन छात्र परिषद के संयुक्त तत्वावधान में भगवान बिरसा मुंडा जी के शहादत दिवस के उपलक्ष्य में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।
सभा को सम्बोधित करते हुए जनजाति सुरक्षा मंच के क्षेत्रीय संयोजक (झारखंड-बिहार) संदीप उरांव ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा मात्र 25 साल की उम्र में देश के लिए शहीद होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को प्रेरित किया। जिसके चलते देश आजाद हुआ। मुंडा आदिवासियों एवं अन्य सभी के द्वारा बिरसा को आज भी धरती बाबा के नाम से पूजा जाता है। बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई के लिए उलगुलान की शुरुआत की।
19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने लगे। हालाँकि आदिवासी विद्रोह करते थें, लेकिन संख्या बल में कम होने एवं आधुनिक हत्यारों की अनुपलब्धता के कारण उनके विद्रोह को कुछ ही दिनों में दबा दिया जाता था। यह सब देखकर बिरसा मुंडा विचलित हो गए, और अंततः 1895 में अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई ने छेड़ दी। यह मात्र विद्रोह नहीं था। यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था। पिछले सभी विद्रोह से सीखते हुए, बिरसा मुंडा ने पहले सभी आदिवासियों को संगठित किया फिर छेड़ दिया अंग्रेजों के ख़िलाफ़ महाविद्रोह ‘उलगुलान’।
भाजपा नेता सह समाजसेवी अर्जुन राम ने कहा कि बिरसा मुंडा का ध्यान मुंडा समुदाय की गरीबी की ओर गया। आदिवासियों का जीवन अभावों से भरा हुआ था। इस स्थिति का फायदा मिशनरी उठाने लगे थे और आदिवासियों को ईसाईयत का पाठ पढ़ाते थे। गरीब आदिवासियों को यह कहकर बरगलाया जाता था कि तुम्हारे ऊपर जो गरीबी का प्रकोप है वो ईश्वर का है। हमारे साथ आओ हमें तुम्हें भात देंगे कपड़े भी देंगे। उस समय बीमारी को भी ईश्वरी प्रकोप से जोड़ा जाता था।
20 वर्ष के होते होते बिरसा मुंडा वैष्णव धर्म की ओर मुड़ गए जो आदिवासी किसी महामारी को दैवीय प्रकोप मानते थे उनको वे महामारी से बचने के उपाय समझाते और लोग बड़े ध्यान से उन्हें सुनते और उनकी बात मानते थें। आदिवासी हैजा, चेचक, साँप के काटने, बाघ के खाए जाने को ईश्वर की मर्जी मानते, लेकिन बिरसा उन्हें सिखाते कि चेचक-हैजा से कैसे लड़ा जाता है। वो आदिवासियों को धर्म एवं संस्कृति से जुड़े रहने के लिए कहते और साथ ही साथ मिशनरियों के कुचक्र से बचने की सलाह भी देते। धीरे धीरे लोग बिरसा मुंडा की कही बातों पर विश्वास करने लगे और मिशनरी की बातों को नकारने लगे। बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान हो गए और उन्हें ‘धरती आबा’ कहा जाने लगा। लेकिन आदिवासी पुनरुत्थान के नायक बिरसा मुंडा, अंग्रेजों के साथ साथ अब मिशनरियों की आँखों में भी खटकने लगे थे। अंग्रेजों एवं मिशनरियों को अपने मकसद में बिरसा मुंडा सबसे बड़े बाधक लगने लगे।
इस सभा में युवाओं को संबोधित करते हुए डॉ एच. पी. नारायण ने कहा कि बिरसा मुंडा एक ऐसे युवा थे जो मात्र 25 वर्ष की आयु में ही अपनी अमिट छाप छोड़ दिए। आप सबको भी उनकी जीवनी से प्रेरणा लेकर समाज के निचले स्तर तक जाकर लोगों की मदद करनी चाहिए और धर्म की रक्षा करनी चाहिए।
इस कार्यक्रम में सेवाधाम दिल्ली के चमन सिंह एवं अर्जुन कुमार ने भी सम्बोधित किया।
उन्होंने कहा की आज बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर हमें युवाओं एवं छात्रों की सेवा एवं शिक्षा व्यवस्था के लिए प्रण लेनी चाहिए। सेवाधाम दिल्ली के पुराने छात्रों से झारखंड में भी एक सेवाधाम खोलने की पहल करने की बात रखी।
आज इस सभा में तुलसी गुप्ता, डॉ अटल पाण्डेय, पिंकी खोया, सन्नी उरांव, हिन्दुआ उरांव, अमन साहु, किशुन उरांव, प्रकाश लोहरा, बसंत उरांव, विपुल कुमार महतो, सौरभ कुमार सिंह, राकेश कुमार, किशुन पाहन, अमन कुमार साहू, सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।