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ईकॉनोमी की जानकारी आज की तारीख में सबसे महत्वपूर्ण: डॉ मेरी ग्रेस

रांची, झारखण्ड  | अक्टूबर  | 08, 2022 :: देश में बढ़ती आर्थिक गतिविधियां और आर्थिक घटनाक्रम की समझ बढ़ाने, आर्थिक विषयों पर गंभीरता को समझने के उदेश्य से उर्सूलाइन इंटर कॉलेज रांची में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्राचार्या डॉ मेरी ग्रेस ने कहा कि ईकोनॉमी आज की तारीख में सबसे महत्वपूर्ण विषय होकर उभरा है। साइंस के छात्र भी आज ईकोनॉमी पढ़ रहें हैं। इस कारण विशेष रुप से हमारे संस्थान ने इकोनॉमी के छात्राओं के लिये विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया है जिसमें इस कार्यक्रम में आर्ट संकाय की कक्षा 11 और 12वी के 1100 छात्राओं ने हिस्सा लिया। शनिवार को आयोजित इस कार्यक्रम में इस आयोजित कार्यक्रम में विशेषज्ञ पत्रकार एनके मुरलीधर ने छात्राओं को बताया कि किस प्रकार देश में आर्थिक गतिविधियां और आर्थिक नीतियों में बदलाव से परिवर्तन हो रहें हैं। उन्होंने वैश्चिक स्तर पर हो रहे परिवर्तन की जानकारी देते हुए बताया कि दुनिया की औद्यागिक क्रांति और पहले और दूसरे विश्व युद्ध के आई आर्थिक मंदी से जिस प्रकार विश्व में समस्या पैदा हुई उससे लड़ने के लिये विश्व स्तर पर प्रयास किये गये। विकसित और धनी देश के साथ भारत जैसे विकासशील देशों ने भी दुनिया के आर्थिक विकास के साथ कदम ताल बनाना आंरभ किया। लेकिन यह काम उतना सरल भी नहीं था। आजादी के बाद मात्र दौ सो करोड़ की बजट से आज 34 लाख करोड़ तक के बजट की कहानी में सब कुछ सुखद नहीं है। आजादी के बाद पड़ोसी देशों से युद्ध, महामारी और निर्धनता के कारण कर्ज से डूबे देश की आर्थिक नीतियों में देश के हुक्मरानों के द्धारा किये गये प्रयोगों की असफलता का खामियाजा देश को भुगतना पड़ा। हमारी मिश्रित आर्थिक नीति एक सरकारी करण की नीति बन गयी जिसके बाद लाभकारी संस्थानों के कम होने और सरकारी विभागों के धीमें काम का असर पड़ा। हमारे कानून भय से प्रेरित थे हमारी अर्थव्यवस्था एक बंद अर्थव्यवस्था थी। लेकिन 1990 में देश की दशा खराब हो गयी और 1991 में नयी आर्थिक नीति घोषित की गयी। एलपीजी यानी लिबरेलाइजेशन, प्राइवेटलाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन के आधार पर बनी नीति का देश को बड़ा लाभ हुआ।
कर कानूनों में सुधार, भूमि और आधार भूत संरचना के नियमों को व्यापार और संस्थान के अनुकूल बनाये जाने, सरकारी नीतियों में बदलाव की आशंका को कम करने से पूरे दुनिया से कार, बाईक, मोबाइल, सहित आइटी कंपनियों ने भारत में निवेश आंरभ किया। साथ ही हमारे बजट में बढ़ोत्तरी होने लगी। बजट का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा था इस पर नियंत्रण हुआ और विदेशी निवेश लगातार बढ़ता गया। कार्यक्रम में कई सवालों पर भी विमर्श किया गया जैसे बजट क्या है? घाटे का बजट क्या होता है? विकासशील देशों के लिये घाटा का बजट क्यों आवश्यक माना जाता है? देश का बजट का सबसे बड़ा हिस्सा 20 प्रतिशत ब्याज चुकाने में चला जाता है। साथ ही विकसित देशों की विकासशील और गरीब देशों की मदद की प्रकिया के साथ विश्व बैंक और आइएम एफ सहित अन्य सभी वित्तीय संगठनों संस्थानों की भूमिका पर विमर्श किया गया। देश और राज्य के बजट और बचत के साथ ही देश की वित्तिय समस्याओं को चिन्हित करने के साथ उनके समाधान पर भी विमर्श किया गया।
देश की उदारीकरण की नीतियों इसक निजीकरण का असर और वैश्विक होने के लाभ पर विस्तार से चर्चा की गयी। कार्यक्रम में देश की सबसे बड़ी आर्थिक कठिनाई पूंजी के केन्द्रीयकरण और असमान वितरण को लेकर छात्राओं ने गंभीर सवाल पूछे। दो घंटे चले इस कार्यक्रम में ईकोनॉमी के महत्व और देश में कई विषयों पर उठ रहे विवाद पर भी विचार किया गया। निजीकरण के औचित्य पर भी सवाल उठे और इसके उपयोगिता पर भी चर्चा की गयी।

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