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इतिहास में आज :: पत्रकार, नाटककार, निर्देशक, कवि और अदाकार हबीब तनवीर, दुनिया के रंगमंच से विदा हो गए [ 08 जून 2009 ]

जून | 08, 2017 :: मशहूर पत्रकार, भारतीय नाटककार, निर्देशक, कवि और अदाकार हबीब तनवीर साहब 08 जून 2009 दुनिया के रंगमंच से विदा हो गए। तनवीर के मशहूर नाटकों में आगरा बाजार और चरणदास चोर शामिल हैं।

एक सितंबर 1923 को हबीब तनवीर का जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुआ था। तनवीर हिन्दुस्तानी रंगमंच के नामचीन और बेहद महत्वपूर्ण स्तंभ थे। उनके पिता हफीज अहमद खान पेशावर के रहने वाले थे। स्कूली शिक्षा रायपुर से करने के बाद उन्होंने नागपुर से कॉलेज की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद एमए करने वे अलीगढ़ गए। जवानी के दिनों से ही तनवीर को कविताएं लिखने का शौक था। उसी दौरान उपनाम तनवीर उनके नाम के साथ जुड़ गया।
तनवीर ने पत्रकारिता से अपने करियर की शुरुआत की। बाद में उन्होंने रंगमंच की दुनिया में कदम रखा। 1945 में वे मुंबई चले गए और ऑल इंडिया रेडियो में काम करने लगे। मुंबई में रहने के दौरान उन्होंने फिल्मों के लिए गीत भी लिखे। इसके अलावा उन्हें कुछ फिल्मों में अभिनय का भी मौका मिला। मुंबई में ही तनवीर प्रगतिशील लेखक संघ और बाद में इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन यानि इप्टा से भी जुड़े।
1954 में हबीब तनवीर दिल्ली आ गए और हिन्दुस्तान थिएटर से जुड़े और कई नाटक लिखे। इसी साल उन्होंने अपने मशहूर नाटक आगरा बाजार का मंचन किया। समय बीतने के साथ हबीब तनवीर भारतीय रंगमंच के अहम किरदार बनते गए। कला के क्षेत्र में हबीब तनवीर के योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म भूषण, पद्म श्री और संगीत नाटक अकादमी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
हबीब तनवीर साहब को संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड (1969), पद्मश्री अवार्ड (1983) संगीत नाटक एकादमी फेलोशीप (1996), पद्म विभूषण(2002) जैसे सम्मान मिले। वे 1972 से 1978 तक संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी रहे। उनका नाटक चरणदास चोर एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल (1982) में पुरस्कृत होने वाला ये पहला भारतीय नाटक बन गया।
50 वर्षों की लंबी रंग यात्रा में हबीब तनवीर ने 100 से अधिक नाटकों का मंचन किया। शतरंज के मोहरे, लाला शोहरत राय, मिट्टी की गाड़ी, गांव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद, पोंगा पंडित, द ब्रोकन ब्रिज, जहरीली हवा और राज रक्त उनके मशहूरों नाटकों में शुमार हैं। 8 जून 2009 को भोपाल में लंबी बीमारी के बाद उन्होंने 85 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए।

आलेख: कयूम खान, लोहरदगा।

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