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इतिहास में आज :: भारतीय क्रिकेट टीम की नेटवेस्ट त्रिकोणीय सीरीज 2002 पर शानदार जीत [ 13 जुलाई 2002 ]

जुलाई | 13, 2017 :: भारतीय क्रिकेट के इतिहास का वह यादगार लम्हा, जो हर भारतीय के दिल में आज भी बस्ता है। 13 जुलाई 2002 को दो भारतीय युवाओं, युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ ने लॉर्ड्स में नेटवेस्ट त्रिकोणीय सीरीज के फाइनल में मेजबान टीम इंग्लैंड पर शानदार जीत दर्ज कर आने वाली कई पीढ़ियों के लिए एक गौरवशाली पटकथा लिखी। यह कहा जाता था कि भारतीय टीम रनों का पीछा नहीं कर सकती। वे हमेशा बड़े दिन पर विफल रही है। लेकिन किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उस दिन इतिहास बनने है। गांगुली लॉर्ड्स के मैदान में अपने खिलाड़िओं का नेतृत्व कर रहे थे। शाम में एक विद्रोही बंगाली सभी के गुमानो को गलत साबित करके इसे एक इतिहासिक मैच में तब्दील करने वाला था।

इंग्लैंड ने टॉस जीता और थोड़ी औवरकास्ट परिस्थितियों में बल्लेबाजी करने का चयन किया। मार्कस ट्रेस्कोथिक पहले नंबर पर बल्लेबाज़ी करने उतरे और उन्होंने भारत के तेज़ गेंदबाज़ों को मैदान में हर तरफ चौकों और छक्कों के लिए मारा। सभी तेज़ गेंदबाज़ों के पीटने पर गांगुली ने भारतीय स्पिनर अनिल कुंबले और हरभजन सिंह को गेंदबाज़ी का छोर सँभालने को कहा। लेकिन ट्रेस्कोथिक के रनों की रफ़्तार यहीं नहीं रुकी और उन्होंने रनों की बारिश चालू रखी। दूसरे छोर पर इंग्लैंड के कप्तान, नासिर हुसैन ने भी एक शतक जड़ा। हालांकि, यह एक पारी ऐसी थी जिसमे गेंद बल्ले की प्यारी जगह से नहीं बल्कि किनारों से लग कर सीमा रेखा तक पहुंची। मैच के अंत में ट्रेस्कोथिक और नासिर के शतकों की बदौलत इंग्लैंड की पारी 5 विकेट के नुकसान पर 325 रनों पर सिमटी।
325 रनों के विशाल लक्ष्य का पीछे करने के लिए भारत के सलामी बल्लेबाज़ – गांगुली और सहवाग मैदान में उतरे। दोनों ही बल्लेबाज़ों ने आक्रामक तरीके से बल्लेबाज़ी कर भारत की जीत की सम्भावना बनाई। सौ रन 15 वें ओवर से पहले बन चुके थे। लेकिन तभी परंपरा ने पदभार संभाल लिया। गांगुली, सहवाग, मोंगिया और यहां तक कि मुश्किल मौकों पर टीम के लिए खड़े होने वाले राहुल द्रविड़ सिर्फ छह ओवर के भीतर मैदान छोड़ पवेलियन की ओर लौट गए। सचिन तेंदुलकर, भारतीय लाइन अप के अव्वल दर्जे के बल्लेबाज़ नंबर 4 के रूप में एशले जाइल्स की नकारात्मक लाइन द्वारा गेंदबाजी पर अपना विकेट गवा बैठे। जब तेंदुलकर पवेलियन लौटे तो भारतीय दर्शकों की निराशा इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि टीम इंडिया के हाथों से ये मैच अब निकल चुका था। स्कोर 24 वें ओवर में 5 विकेट के नुकसान पर146 था और आवश्यक रन रेट 7 था।
कैफ और युवराज क्रीज पर अभी भी मौजूद थे और यहाँ से इन दोनों युवाओं ने अपनी टीम को जीत की राह पर ले जाना का जिम्मा उठाया। परिणामसवरूप, दोनों ने इंग्लैंड शिविर पर जवाबी हमला करने का फैसला किया। जब युवराज ने 38 वें ऑवर में एंड्रयू फ्लिंटॉफ की 3 गेंदों पर लगातार तीन चौकें लगाए, तब दर्शकों को इस बात की उम्मीद जगी कि भारत ये जीत सकता है। लेकिन अचानक ही कॉलिंगवुड की गेंद पर युवराज 63 गेंदों पर 69 रनों की महत्वपूर्ण पारी खेल कर पवेलियन की ओर लौट चले। लेकिन मोहम्मद कैफ अभी भी क्रीज पर बने थे। उनका साथ देने आए हरभजन सिंह और उन्होंने कुछ गेंदबाजों को शर्मिंदा किया। उनके आउट होते ही कुंबले आए लेकिन 2 गेंद बाद ही फ्लिंटॉफ को वो अपनी विकेट दे बैठे।
इस परिस्तिथि तक मैच इतिहास की पुस्तकों में जाने के लिए तैयार था। खेल के अंतिम ओवर में जहीर खान और कैफ ओवर-थ्रो के परिणामस्वरुप दो रन पूरे करने के लिए भागे और फिर क्या था वो लम्हा हर भारतीय दर्शक के दिलो-दिमाग में हमेशा-हमेशा के लिए बस गया। जीत की ख़ुशी से सराबोर भारतीय कप्तान सौरव गांगुली इतने उत्साहित हो गए कि 49.3 ऑवर में मैच जीतते ही उन्होंने भरे मैदान में अपनी जर्सी उतार दी थी।

आलेख: कयूम खान, लोहरदगा।

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