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इतिहास में आज :: बॉलीवुड के सुपर विलन अमरीश पुरी का जन्म [ 22 जून 1932 ]

जून | 22, 2017 :: मुगेम्बो खुश हुआ…. यह डायलॉग शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने न सुना हो!!! यह डायलॉग बॉलीवुड के सुपर विलन ‘अमरीश पुरी’ की फिल्म मिस्टर इंडिया का है। सुपर विलन ‘अमरीश पुरी’ भले ही आज हमारे बीच न रहे हों, लेकिन वे और उनके डायलॉग्स हर किसी के जहन में हैं। उनके दमदार अभिनय की छाप आज भी हर दर्शक के दिलो-दिमाग पर छाई हुई है। दर्शक भी उनकी खलनायकी वाली भूमिकाओं को देखने के लिए बेहद खुश होते थे।

अमूमन दर्शक खलनायक से नफरत करता है लेकिन अमरीश पुरी एक ऐसे खलनायक थे जिन्हें दर्शकों ने अपने दिल में बसाया। अमरीश ने एक से बढ़कर एक निगेटिव रोल किए लेकिन दर्शकों ने कभी उनसे नफरत नहीं की।
एक खलनायक के रूप में अमरीश की हमेशा प्रशंसा हुई। अमरीश ने अपने फिल्मी सफर में करीब 400 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। अमरीश ने बॉलीवुड और हॉलीवुड इंडस्ट्री में अपनी नकारात्मक भूमिका से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई। अमरीश को हॉलीवुड में पहचान फिल्म ‘इंडियाना जोन्स एंड टेम्पल ऑफ डूम’ (1984) के ‘मोला राम’ नाम के किरदार से मिली। यह भी एक नकारात्मक भूमिका थी। जिसने इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्रदान की।
अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1932 को जालंधर के पास नवांशहर (लाहौर, पाकिस्तान) में एक पंजाबी परिवार में हुआ। इनके मां का नाम वेद कौर और पिता का नाम लाला निहाल चंद्र था। अमरीश पुरी के 4 भाई बहन हैं, जिसमें से यह चौथे स्थान पर थे। इनके बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी ने बॉलीवुड में 1960 के दौर में अपने निगेटिव रोल से ऑडियंस के दिलों में एक खास जगह बनाई। अमरीश पुरी की एक बड़ी बहन चंद्रकांता और एक छोटा भाई हरीश पुरी भी हैं। 25 साल की उम्र में इन्होंने उर्मिला दिवेकर के साथ शादी 5 जनवरी 1959 को की। इनको दो बच्चे राजीव पुरी और नम्रता पुरी है। बेटे राजीव पुरी एक रिटायर्ड मर्चेंट नेवी ऑफिसर हैं। हाल ही में इन्होंने बिजनेसमैन बनने का फैसला लिया। अमरीश अपने पोते हर्ष के बेहद करीब माने जाते थे। इनकी पोती सांची डॉक्टर बनने की तैयारी में जुटी हुई है। इनका देहांत मुंबई में ब्लड कैंसर की वजह से 11 जनवरी 2005 को हुआ, उस समय अमरीश की उम्र 72 वर्ष थी।
शुरुआती पढ़ाई के बाद अमरीश अपने माता-पिता और पूरे परिवार के साथ शिमला में रहने लगे। वहीं पर इन्होंने बीएम कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। एक्टिंग में रुचि होने की वजह से अमरीश के भाइयों (चमन और मदन पुरी) ने मुंबई की ओर रुख किया और वहां पर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई। भाइयों के सफल करियर के बाद अमरीश जब मुंबई आए थे उस समय इनकी जेब में सौ रुपये भी नहीं थे। भाइयों के कहने पर इन्होंने अपना पहला स्क्रीन टेस्ट दिया, जिसमें वह फेल हो गए। हालांकि इसी दौरान अमरीश को सरकारी नौकरी के लिए मिनिस्टर ऑफ लेबर से कॉल भी आया और इन्होंने एलआईसी में जॉब करनी शुरू कर दी।
1961 में स्क्रीन टेस्ट में फेल होने के बाद अमरीश जब रोज पृथ्वी थिएटर के पास से गुजरकर अपने एलआईसी के ऑफिस पहुंचते थे, एक बार उन्हें रास्ते में मशहूर थिएटर निर्देशक इब्राहिम अल्काजी मिले। उस मुलाकात में अल्काजी ने अमरीश पुरी को रंगमंच पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद वह थिएटर की दुनिया से जुड़े और थिएटर निर्देशक और लेखक सत्यदेव दुबे से मुलाकात की और उनके साथ बतौर असिस्टेंट काम किया। हालांकि वह थिएटर शाम 5 बजे के बाद सरकारी नौकरी से छुट्टी होने पर जाते थे।
अमरीश देर रात तक पृथ्वी थिएटर में रोज सत्यदेव दुबे को अपना गुरू मानकर उनके लिखे नाटक पर अभ्यास किया करते थे। इसी दौरान उन्होंने कई स्टेट शोज भी किए और देखते ही देखते अमरीश पुरी फिल्म इंडस्ट्री के महान कलाकार बन गए।अमरीश ने 1970 में फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया। लेकिन इन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘रेशमा और शेरा’ साइन की थी, जो 1971 में रिलीज हुई। इन्हें 1979 में संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड से नवाजा गया।
लगभग चार दशक तक अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिल में अपनी खास पहचान बनाने वाले अमरीश पुरी 12 जनवरी 2005 को इस दुनिया से अलविदा कह गये।

आलेख: कयूम खान, लोहरदगा।

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