आलेख़ लाइफस्टाइल

हृदय रोग उत्पन्न करने में भावनाओं की आधारभूत भूमिका : संतोषी कुमारी

 

रांची, झारखण्ड  | फरवरी  | 28, 2022 ::  हृदय रोग उत्पन्न करने में भावनाओं की भूमिका आधारभूत है, अतः लोगों की स्थिति में सुधार करने हेतु सिर्फ वसा रहित भोजन लेने से काम नहीं चलेगा योग विज्ञान के अनुसार तनाव ग्रस्त तथा हृदय रोग पीड़ित व्यक्तियों के लिए अपने भावनात्मक ढांचे की संरचना तथा उसके हृदय तथा मन पर पड़ने वाले प्रभाव को पहचानना एवं समझना अत्यंत आवश्यक है ।

यौगिक शिथिलीकरण के अभ्यासो जैसे योगनिद्रा एवं ध्यान के अभ्यास से यह बोधगम्यता सहज ही प्राप्त हो सकती है।

योग निद्रा की संपूर्ण वैज्ञानिक शिथिलीकरण प्रक्रिया में निपुणता हासिल करना इस दिशा में पहला कदम होगा, क्योंकि ह्रदय रोगी अक्सर अपने भावनात्मक स्थितियों द्वारा अधिक प्रभावित होते है हालांकि सतही तौर पर वे कितने ही शांत, सौम्य एवं सुधीर व्यक्तित्व के मालिक हो उनका अव चेतन संवेदनशील रहता है ।

दमित भावनाएं जो वर्षों तक भीतर ही भीतर सड़ती रही हो और उनकी अभिव्यक्ति शर्म, कुंठा या अस्वीकृति के कारण नहीं हो पाई हो अंदर ही अंदर और अवचेतन तनाव में परिवर्तन हो ह्रदय रोग के रूप में अभिव्यक्त होती हैं।

योग के अभ्यास से व्यक्ति धीरे-धीरे अपने अंतचेतन के घर से इन दमित वासना और अपर्याप्तओ असुरक्षाओ तथा भावनात्मक जटिलताओं को मुक्त करने में सफल होता है।

जिन व्यक्तियों को हृदय रोग होता है उनके व्यक्तित्व की एक विशिष्ट पहचान होती है, जिसे खास नाम भी दिया गया है हृदय रोग व्यक्तित्व या कार्डियक पर्सनालिटी।

ऐसा व्यक्ति प्रायः अधेड़ उम्र का होता है जो अत्यंत लगन शील हट धर्मी तथा प्रतिस्पर्धात्मक स्वभाव का होता है अपने कार्य क्षेत्र में अधिकतर सफल होता है, वह अपनी क्षमताओं को चरम सीमा तक खींच कर ही जीवन में कुछ बन पाता है।

उसके व्यक्तित्व आदर्श ऊंचे होते हैं तथा दूसरों से भी उसकी अपेक्षाएं उन्हीं आदर्शों के अनुरूप होती है।

वह काम करने की ऐसी लत पाल लेता है कि अपने कार्य को ही वह आत्म संतुष्टि का एकमात्र माध्यम बना लेता है बहुत बार वह पारिवारिक जिम्मेदारियों तथा पीड़ादायक भावनात्मक परिस्थितियों की अपेक्षा कर उन्हें टाल जाता है हालांकि ऊपर से तो वह बहुत सख्त इच्छा शक्ति वाला स्वतंत्र व्यक्तित्व का दिखाई पड़ता है मगर उसके अंदरूनी व्यक्तित्व प्रवृत्ति बिल्कुल विपरीत हो सकती है।

वह अंदर से प्रायः अत्यंत संवेदनशील तथा कलात्मक अभिरुचि वाला हो सकता है मगर उसने अपने व्यक्तित्व के कोमल पहलू को दमित कर दिया होता है दमित का अर्थ यहां पर खत्म कर दिया होता है और यही वैषम्य में उसके अंतर्द्वंद मानसिक तनाव तथा हृदय रोग का मूल कारण होता है ।
रोग चिकित्सा के दौरान ऐसा व्यक्तित्व वाले लोगों को शांतिपूर्वक बिना प्रतिस्पर्धात्मक रुख अपनाएं अभ्यास करना अक्सर मुश्किल हो जाता है। उसका मन सफलता एवं तुरंत उपलब्धियों की और इतना अभिमुख होता है कि उसे शुरू शुरू में शिथिलीकरण संपन्न प्रति ग्रहण तथा विश्वास जैसी चीजें और प्राकृतिक जान पड़ती है उसके मानसिक संकुचन उसे अपने आप को ढीला छोड़ दें तथा स्थितियों को प्रवाह के अनुसार बहने देने में बाधक बन जाते हैं हालांकि कि यदि यही प्रथम शिक्षा ग्रहण कर ली जाए तो तीव्र उन्नति संभव है।चिकित्सा की सफलता एवं शीघ्र लाभ की आशा के पीछे भागने की बजाय निश्चिंत रहने पर ही सफलता समीप आएगी। हृदय रोगियों के लिए योगाभ्यास निम्नलिखित हैं

 

 

 

 

 

 

 

 

 

संतोषी कुमारी

असिस्टेंट प्रोफेसर , स्कूल ऑफ योग रांची यूनिवर्सिटी, रांची

 

Leave a Reply