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अगर है पार्किंसन के मरीज तो जगदीश से जानिए कौन से योगासनों का करे अभ्यास

पार्किंसन रोग : अधिकतर लोगों के लिए “पार्किंसन रोग” एक नया नाम हो सकता है, इसलिए वो इसके लक्षणों की पहचान भी नहीं कर पाते हैं। जिस वजह से इसका इलाज कराना भी कठिन हो जाता है। एक शोध के अनुसार पार्किंसन रोगियों की संख्या करीब 6.2 मिलियन है और उनमें से लगभग 117,400 रोगियों की मौत हो चुकी है। इस शोध से ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बीमारी कितनी भयंकर हो सकती है। हालांकि, दुर्भाग्य की बात ये है कि पार्किसन रोग को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं है।

पार्किंसन, केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। लक्षणों के शुरू होने की औसत उम्र लगभग 60 होती है. महिलाओं की तुलना में पुरुषों को पार्किंसन रोग होने की संभावना डेढ़ गुना अधिक होती है।

पार्किंसन रोग के तीन प्रमुख लक्षणों का संबंध शारीरिक गतिविधि से है:

* शरीर के विशिष्ट हिस्सों का अनैच्छिक रूप से हिलना – जिसे कँपकँपी कहते हैं

* मांसपेशियों में कड़ापन जिससे दैनिक कार्य जैसे कुर्सी से उठना बहुत मुश्किल हो जाता हैं – इसे अकड़न कहते हैं

* शारीरिक गतिविधियाँ बहुत धीमी हो जाती हैं – इसे ब्रैडीकाइनेशिया कहते हैं.

पार्किंसन रोग से ग्रसित एक व्यक्ति कई दूसरे लक्षणों का भी अनुभव कर सकता है जिनका संबंध गतिविधि से नहीं होता है (नॉन-मोटर लक्षण), जैसे:

* अवसाद

* दिन में उनींदापन

* डिस्फेजिया (निगलने में कठिनाई)

वैज्ञानिक कारण

पार्किंसन रोग सब्सटैंशिया नीग्रा (substantia nigra) नामक मष्तिष्क के हिस्से में तंत्रिका कोशिकाओं की क्षति होने की वजह से होता है। इसके परिणामस्वरूप मष्तिष्क में डोपामाइन नामक रसायन की मात्रा कम हो जाती है।

शरीर की गतिविधि को नियंत्रित करने में डोपामाइन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और डोपामाइन की यह कमी पार्किंसन रोग के कई लक्षणों के लिए जिम्मेदार होती है।

मष्तिष्क के इस हिस्से की तंत्रिका कोशिकाएँ डोपामाइन नामक एक रसायन के निर्माण के लिए जिम्मेदार होती हैं। डोपामाइन मष्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के मध्य एक संदेशवाहक का काम करता है, और शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करने और संयोजित करने में सहायता करता है।

यदि ये तंत्रिका कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं या मर जाती हैं, तो मष्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा घट जाती है। इसका मतलब होता है कि गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला मष्तिष्क का हिस्सा इतने अच्छे से काम नहीं कर पाता है जिसकी वजह से गतिविधियाँ धीमी और असामान्य हो जाती हैं।

तंत्रिका कोशिकाओं की क्षति एक धीमी प्रक्रिया है। मष्तिष्क में डोपामाइन का स्तर समय के साथ गिरता है। सब्सटेंशिया नीग्रा में 80% तंत्रिका कोशिकाओं की क्षति होने के बाद ही पार्किंसन रोग के लक्षण सामने आते हैं और धीरे-धीरे अधिक गंभीर होते जाते हैं।

* लक्षणों के प्रकार

संभावित लक्षण काफी अलग-अलग हो सकते हैं किंतु तीन मुख्य श्रेणियों में होते हैं:

* शारीरिक गतिविधि को प्रभावित करने वाले लक्षण – जिन्हें मोटर लक्षण कहते हैं (कँपकँपी, गतिविधि का धीमा होना (ब्रैडीकाइनेशिया), मांसपेशियों का कड़ापन (अकड़न). डिस्टोनिया, शारीरिक मुद्रा की अस्थिरता

* मिजाज़, सोच और व्यवहार को प्रभावित करने वाले लक्षण – जिन्हें न्यूरोसाइकिएट्रिक लक्षण कहते हैं (अवसाद, चिंता, माइल्ड कॉग्निटिव इंपेयरमेंट और डिमेंशिया, नींद में बाधा, ऑटोनॉमिक डिसफ़ंक्शन )

* आपके स्वचालित तंत्रिका तंत्र (आपके ‘स्वचालित’ कार्यों जैसे सांस लेना और मूत्रोत्सर्ग को नियंत्रित करने वाला तंत्रिका तंत्र) को प्रभावित करने वाले लक्षण जिन्हें स्वचालित दुष्क्रिया (ऑटोनॉमिक डिसफ़ंक्शन) के नाम से जाना जाता है

पार्किंसंस के लक्षण शुरुआती हों, तो इस रोग को आप योगासन के जरिए कंट्रोल कर सकते हैं। योग की विभिन्न क्रियाओं से स्नायु और मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाया जाता है। शुरुआत में कोई भी आसन या एक्सरसाइज करने से आपको थकान महसूस हो सकती है। आप प्रतिदिन खुली हवा में दो से तीन किलोमीटर तक टहलें। स्विमिंग करने से भी लाभ होता है।

आइए जानते हैं योगासनों के बारे में जो शरीर पर आपका संतुलन बनाने में मदद करेंगे :

पवनमुक्तासन भाग 1

पादांगुलि नमन, गुल्फ नमन, गुल्फ चक्र, गुल्फ घूर्णन, जानू नमन, जानू चक्र, अर्ध तितली, श्रोणि चक्र, पूर्ण तितली, मुष्टिका बन्धन, मणिबन्ध  नमन, मणिबन्ध चक्र, कोहनी नमन, स्कन्ध चक्र, ग्रीवा संचालन

पवनमुक्तासन भाग 2

उत्तानपादासन, पाद संचालनासन, सुप्त पवनमुक्तासन, झूलना लुढ़कना, सुप्त उद्राकर्षण, नौकासन

पवनमुक्तासन भाग 3

गत्यात्मक मेरु वक्रासन, चक्की चलानासन, नौका संचालन, नमस्कार आसन

आसन

ताड़ासन, कटिचक्रासन , तिर्यक ताड़ासन, हस्त उत्तानासन, उत्कटासन, त्रिकोणासन, उष्ट्रासन, वक्रासन, पश्चिमोत्तानासन, वज्रासन, शलभासन, भुजंगासन, मकरासन

प्राणायाम : नाड़ी शोधन

ध्यान

शिथिलीकरण : योगनिद्रा, शवासन [ प्रतिदिन ]

•विशेष : सूर्य नमस्कार – अगर मरीज कर पाए तो

क्रिया : जल नेती, सूत्र नेती

योगिक डाइट : कम तेल, नमक और मसाले वाला खाना

 

 

जगदीश सिंह

[ Masters in Yogic Science ]

योग इंस्ट्रक्टर

jagdishranchi@gmail.com

 

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