शाहदरा, दिल्ली
श्रमण संस्कृति का मूलभूत अंग है व्रत। जैन , बौद्ध आदि परम्पराओ मे जीवन परिष्कार की दृष्टि से व्रतों को अतिरिक्त मूल्य दिया गया है।वर्तमान युग मे जैन परिवारों मे कुछ व्रतों को अनुष्ठान के रूप में स्वीकार किया जाता है।
श्रावक की पहली भूमिका सम्यक दीक्षा होती है, दूसरी भूमिका में व्रत दीक्षा स्वीकार की जाती है।भगवान महावीर ने बारह व्रत रूप संयम धर्म का निरूपण गृहस्थों के लिए किया।
दैनिक जीवन मे व्रतों का सीमाकरण करने की विधि है चौदह नियम , इन्हे अपने जीवन मे अवश्य धारण करना चाहिए। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी शिष्या साध्वी श्री संगीत श्री ने उपरोक्त प्रेरणा शाहदरा सभा के चातुर्मासिक स्थल ओसवाल भवन में चौदह नियम कार्यशाला को संबोधित करते हुए दी।
इस अवसर पर साध्वीश्री कमल विभा जी ने प्रतिबोध देते हुए फरमाया कि दैनिक प्रवृतियों के सीमाकरण हेतु 1- सचित्त, 2-द्रव्य, 3-विगय छह, 4- पन्नी, 5- ताबूंल, 6- वस्त्र, 7- कुसुम, 8- वाहन, 9- शयन,10- विलेपन, 11-अब्रह्मचर्य, 12- दिशा, 13- स्नान, 14-भक्त ( आहार) का नियमित उपयोग हेतु व्रत प्रत्याख्यान त्याग आवश्यक है।
इससे समुद्र के जल जितना पाप एक लोटे के जल में समा जाता है।सीमाकरण का बहुत महत्व है , अतः सभी को चौदह नियम स्वीकारने चाहिए।
साध्वी श्री की प्रेरणा से अधिकाशं व्यक्तियों ने व्रतों को स्वीकार कर धन्यता का अनुभव किया।
विशेष ज्ञातव्य रहे कि साध्वीश्री संगीत श्री जी, साध्वीश्री शान्तिप्रभाजी, साध्वीश्री कमल विभाजी और साध्वीश्री मुदिताश्री जी चारो साध्वियां विगत सात वर्षो से स्वयं वर्षी तप की साधना कर रही हैं । आपने शाहदरा क्षेत्र में भी सघन परिश्रम से श्रावक समाज की सार सम्भाल करके घर्म संघ की जडो को सिंचित किया है