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रांची में हुआ आयोजित एजुकेशन विज़न 2025 कॉन्क्लेव: विभिन्न शिक्षाविदों ने रखे अपने विचार

रांची, झारखण्ड । सितम्बर | 08, 2017 :: ब्लबवर्ल्ड एक्शन एजुकेशन कंसल्टेशन सीरीज 2017 का तृतीय सत्र रांची में 8 सितम्बर कोसुबह 10 बजे से चाणक्या बी एन आर होटल में आयोजित हुआ।

एजुकेशन विज़न 2025 कॉन्क्लेव के मुख्य अतिथि के तौर पर सुदेश कुमार महतो (पूर्व उपमुख्यमंत्री, झारखण्ड सरकार) उपस्थित रहे । इस कार्यक्रम में 50 से अधिक स्कूलों के प्रिंसिपल तथा कई गणमान्य शिक्षाविदों ने प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया तथा अपनी विचारों को साझा किया।

 

सुदेश महतो (पूर्व उपमुख्यमंत्री, झारखण्ड सरकार) की मुख्य बातें

  1. भारत की शिक्षा प्रणाली के भूत, वर्तमान और भविष्य पर जो जिक्र हुआ, उसका स्वागत करते हैं।
  2. 2. जो बातें यहाँ आयी, वो इस प्लैटफॉर्म से सीधे मानव संसाधन मंत्रालय तक पहुंचेंगी।
  3. फिलहाल शिक्षा भारत में मूलभूत जरूरतों के बाद आती है। लेकिन इसका महत्व सीधे जीने के अधिकार से जुड़ा है। इस पर लगातार मंथन होनी चाहिए।
  4. स्कूली शिक्षा सीधे तौर से सोलह लाख से ऊपर नौनिहालों का भविष्य जुड़ा है।
  1. ये आबादी शिक्षकों के भारी अभाव से जूझ रहा है। विषय विशेज्ञयों की कमी से जूझ रहा है।
  2. कई परिवारों में अपने सन्तानों के लिए सही मार्ग दर्शन देने की दक्षता भी नहीं है।
  3. ग्राम सभा, और अभिभावकों की सहभागिता से स्कूल कमिटी बनी है, पर दुर्भाग्य से इन स्कूल कमिटी की प्राथमिकता शिक्षा को छोड़कर अन्य चीजे हैं। मसलन भोजन आदि की व्यवस्था आदि।
  4. बेसिक बदलाव कहाँ करना है ? ~ शिक्षक और अभिभावक के सामूहिक दबाव से छात्रों की मुक्ति। ये दबाव उनपर हीन भावना का संचार करती है। छात्र त्रिकोणीय दबाव – शिक्षक, अभिभावक और खुद के मित्रों ( peer pressure ) के दबाव के बीच *प्रेम ( घृणा )त्रिकोण* का शिकार हो जाता है।

जो छात्र थोड़ा कमजोर हैं, उन्हें हारे हुए सैनिक की तरह पेश करते हैं।उसकी हीन भावना की ग्रंथि मजबूत होती है।

 

  1. जो 15 % की haves society है, वो शिक्षा के स्तर की खायी को बढ़ा रहा है जाने – अनजाने। हमे शिक्षा नीति बनाते वक्त 85% की have- nots को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए । वरना समाज की खायी बढ़ सकती है । और विद्वेष बढ़ता है।

10। शिक्षा का व्यसायिकरण नहीं होना चाहिए। शिक्षा को शिक्षा रहना चाहिए।

  1. ये सोचना जरुरी है कि बच्चे स्कूल क्यों नहीं जाना चाहते। किताबों को क्यों नहीं दिलचस्प बना पा रहे ? किताबों और स्कूलों को लुभावने बनाने होंगे। स्कूलों में ठहराव कैसे हो , इस पर व्यापक मंथन की आवश्यकता है।
  2. किताबों में जो आज के भौगोलिक बदलाव मसलन गायब होती नदियां , गायब होते जंगल और धरोहर के बारे में भी जिक्र होना चाहिए ताकि छात्र जान सकें कि आखिर इनका संरक्षण कैसे हो
  3. परिवार और समाज को बच्चे की जो सबसे सकारत्मक पहलू है, उसको मजबूती से  चिन्हित कर उस बच्चे को सँवारे जाने की दायित्व लेने होंगे।

 

डॉ आर के पांडे ( कुलपति , रांची विश्वविद्यालय) गुणवत्ता शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है, वर्तमान परिदृश्य में   की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता, शिक्षक बच्चों की नज़र में एक उच्च ओहदा रखता है, प्रभावी शिक्षा पद्दति की जरूरत है, सरकार को शोध और शिक्षण पर बजट बढ़ाना चाहिए, विद्या दान से बढती है।

डा लम्बोदर महतो (झारखंड प्रशासनिक सेवा) : ग्रामीण शिक्षा और शहरी शिक्षा के बीच की खाई को भरना होगा ।

गोपाल पाठक ( कुलपति, झारखण्ड तकनिकी विश्वविद्यालय): मैंने बहुत बारीकी से विश्लेषण किया है कि बहुत कम शिक्षण संसथान में, स्कूलों में प्रभावी शिक्षा प्रदान की जाती है, आज बच्चों का समय जा रहा है पर उनको समय के अनुसार फल नहीं मिल रहा है, शिक्षकों को इस ओर विचार करने की जरूरत है और शिक्षा व्यवस्था को प्रभावी बनाने की जरूरत है।

पंकज गुप्ता (ओ पी जिंदल यूनिवर्सिटी ) : बच्चों के स्वाभाव को पहचाने, स्वाभाव से स्वधर्म, साधना और संकल्प का निर्माण होता है।

उज्जवल चौधरी (निदेशक रामोजी फिल्म सिटी शिक्षा विभाग): शिक्षक का प्रथम दायित्व बनता है कि वो बच्चों के मन में रूचि पैदा करें, तीन चीजों से शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनया जा सकता है, अनुभव, क्लासरूम-संरचना और डिजिटल तकनीक आधारित ज्ञान।

दक्ष (संस्थापक, ब्लब वर्ल्ड एजुकेशन): लोकतान्त्रिक ढंग से अपनी बातों को रखने का सबका अधिकार है, वार्तालाप के आदानप्रदान से ही लोग सीखते हैं और सीखने कीकि प्रक्रिया निरंतर है, इसके लिए नई-नई कहानियां बनानी होंगी, पौराणिक कालों से ही कहानी सीखने-सिखाने का सशक्त माध्यम रहा है।

अर्चना चौधरी ( यूनेस्को): शिक्षा का वैश्वीकरण एवं सतत लक्ष्य कि जरूरत है।

डॉ रमण कुमार झा ( एमिटी) व्यक्तिगत सफलता का उदाहरण बच्चों को देना चाहिए। शिक्षा कि गुणवत्ता बढ़ने के लिए सर्कारिन सहयोग और एक ढांचागत योजना की जरूरत है।

 

अन्य गणमान्य अतिथि

एस पी सिंह ( रांची विश्विद्यालय , पूर्व कुलपति )

एल अन भगत ( रांची विश्विद्यालय , पूर्व कुलपति )

अर्चना चौधरी ( UNESCO )

सोमा देबनाथ (क्षेत्रीय निदेशक, ज़ी लर्न)

बी के चाँद ( Retd IAS)

डॉ अजय मलकानी ( मारवाड़ी कॉलेज)

डॉ विनय भारत

डॉ रविशंकर

 

 

ब्लब एजुकेशन विज़न के निम्न 5 एजेंडों पर परिचर्चा हुई

  • शिक्षा में क्या-क्या बदलाव हो सकते हैं इस हेतु मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के लिए एजुकेशन विज़न 2025 तैयार करना साथ ही साथ मॉडल एजुकेशन प्लान तैयार करना।
  • स्कूलों के लिए एक कम्युनिटी मीडिया बनाना। यह कम्युनिटी मीडिया राष्ट्रव्यापी उपस्थिति और भागीदारी के साथ भारत का पहला इंटर-स्कूल कम्युनिटी मीडिया होगा।
  • एक राष्ट्रीय सलाहकार बोर्ड का निर्माण करना जो कि भविष्य के कार्यों और इस कम्युनिटी मीडिया के विभिन्न पहलुओं का मार्गदर्शन करेगा।
  • प्रत्येक विद्यालय में लीडर बोर्ड के स्थान पर टैलेंट पूल का निर्माण करना जहाँ प्रत्येक बच्चे को उनकी प्रतिभा और क्षमता के अनुसार सम्मान मिलेगा।
  • प्रतिभाशाली छात्रों को खोजना और उनकी रचना को प्रकाशित करना। यह एक ऐसा प्लेटफार्म होगा जहाँ बच्चे ही बच्चे से सीखेंगे।

 

 

 

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