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अर्थ डे : धरा नही रहेगी तो सब धरा रह जायेगा

आज जब 22 अप्रैल सन 2022 में हम विश्व अर्थ डे मना रहे हैं तो हमारी यह नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है कि पृथ्वी को यथासंभव बचाने का प्रयत्न किया जाए। आजकल यह प्रयत्न सिर्फ हम मनुष्य में यहां तक सीमित रह गया कि हम स्टेटस पर अपने एक पोस्टर लगा देते हैं SAVE EARTH । इस से ऊपर उठकर भी हमें अब सोचना होगा।

एक सिंपल सा वाक्य है धरा नहीं रहेगी तो सब धरा रह जाएगा यह हम सब को मान लेना है कि अगर पृथ्वी है तो हम हैं हमारे वर्चस्व हमारा वजूद सिर्फ और सिर्फ पृथ्वी से है हम पृथ्वी को कई कारणों से दूषित या खराब किए जा रहे हैं चाहे वह पोलूशन हो जाए युद्ध के लिए एकत्रित की गई सामग्री हो । प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य को खाये जा रहा है। हमारी हवाओं में वह बात नहीं रही कि हम लोग स्वस्थ रह पाएं, आए दिन हमको बीमारियां यहां वहां कहां-कहां से घेरती जा रही हैं और हम हैं कि पृथ्वी को बर्बाद करने पर लगे हुए हैं।
हमारा पहला प्रयास होना चाहिए कि पृथ्वी को कैसे बचाया जाए। स्कूलों में यह पढ़ाया गया कि हर एक व्यक्ति एक पौधा जरूर लगाना चाहिए। डेढ़ सौ करोड़ की आबादी में अगर हर व्यक्ति एक पौधा भी लगाता है तो डेढ़ सौ करोड़ पौधे देश में लगाए जा सकते हैं।

आपने देखा होगा कि जब हम डॉक्टर के पास जाते तो डॉक्टर ही बोलते हैं कि आप 1 महीने के लिए अपनी आवो हवा बदल लीजिए । इसका मतलब यह कि आप हमारे शहर रहने योग्य रहे ही नहीं, यहां की हवा में इतना प्रदूषण हो गया कि मनुष्य को चाहे ना चाहे कि बीमारियां घेर ही लेती हैं तो धरा को बचाना हमारे लिए ना सिर्फ एक कार्य बन गया बल्कि हमारी नैतिक जिम्मेदारी के साथ साथ हमारी जरूरत भी बन गई है। गौर करने योग्य बात यह है कि हमने अपने प्रयासों से या किसी और संस्थाओं के प्रयासों से देखा है कि वृक्षारोपण का कार्य बहुत जोर से किया जाता है किसी एक दिन 10000 पेड़ लगा दिए । अरे भाई सिर्फ पेड़ लगाने भर से कुछ समस्या का समाधान नहीं होगा आपको यह भी सुनिश्चित करना है कि वह पेड़ पनप रहा है कि नहीं। आप 1 महीने के बाद वहां जाकर देखेंगे जितने भी आपने पेड़ लगाए थे, उनमें से 99% तो मर गए तो ऐसे में क्या फायदा ।हम यह एक अच्छा कार्य ना करके बल्कि पौधों की हत्या कर रहे हैं । हम को यह सुनिश्चित करना जरूर हो गए 10000 पेड़ बेशक ना लगाएं, 100 ही लगाएं पर वह अच्छे से पनपे , यह सुनिश्चित करना ही होगा, यह हमारी सर्वप्रथम जिम्मेदारी होनी चाहिए।

आइए प्रण करें की हम अपनी धरा को बचाने के लिए यथासंभव प्रयास ना सिर्फ थ्योरिटिकल रूप में करेंगे बल्कि उसका प्रेक्टिकल रूप में भी अपनाएंगे । अपने घर से, अपने स्कूल से अपने रिश्तेदारों से या अपने आपके प्रयासों से हम सबको पृथ्वी को बचाना है। पृथ्वी को बचाना है यह हमारा एक स्लोगन ना होकर, हमारा कर्तव्य बन जाना चाहिए। याद रहे — धरा नही रहेगी तो सब धरा रह जायेगा।

डॉ विक्रम सिंह

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