रांची, झारखण्ड | अप्रैल | 18, 2020 :: बच्चों को माँ और पिता दोनो के प्यार की जरूरत होती है।
इन्हीं प्यार के साये में वे अपनी सुरक्षा और कोमल भावनाओं का जवाब ढूंढते हैं।
हर माँ अपने बच्चे के लिए उसके भोजन, पढ़ाई, सेहत आदि को लेकर बहुत चिंतित रहती है। ये स्वाभाविक भी है।
लेकिन बच्चे को लेकर जरूरत से ज्यादा चिंता उसे लाभ पहुंचाने के बजाय हानि पहुंचा सकती है।
कुछ बातों पर ध्यान देकर हम अपनी और उनकी दोनो की समस्या को कम कर सकते हैं।
1. बच्चे की अपनी सोच विकसित होने दें।
बच्चे को जन्म भले ही माँ ने दिया है।
लेकिन उनकी भी अपनी एक सोच होती है।
ये सोच उम्र बढ़ने के साथ साथ धीरे धीरे बढ़ती है।
अगर उनकी सोच पर हम अपनी सोच थोपते रहेंगे तो ये बच्चे के विकास में बाधा उत्पन्न करेगा।
फिर उनमें सोचने, समझने की क्षमता भी कम होती जाएगी और वे अपने हर निर्णय के लिए हमारे ऊपर निर्भर रहेंगे।
यही नहीं अपने हम उम्र के बच्चों के साथ उन्हें सामंजस्य स्थापित करने में परेशानी होगी।
इसलिए उसे अपनी निर्णय लेने के लिए थोड़ी छूट दें।
यह बात हमेशा ध्यान रखें कि हम तो बच्चे के पीछे सपोर्ट सिस्टम की तरह हैं ही।
उसे धीरे धीरे आगे की ओर खुद ही कदम बढ़ाने दें।
2, वास्तविकता से परिचय करायें।
बच्चे को हमेशा ज़मीनी हकीक़त से रुबरु करायें।
यही वो दौर है, जब हम जीवन की सच्चाइयों से उसे अवगत कराकर सही मार्गदर्शन दे सकते हैं।
चाहे हमने उसे घर में कितनी ही सुविधायें क्यों ना दी हों।
इसके साथ ही उसे ये भी बतायें कि कभी कभी इन चीजों के बिना भी वो रहना सीखे।
इन सब आदतों से उसे कहीं बाहर जाने पर किसी तरह की असुविधा नहीं होगी।
जैसे टेलीविजन, मोबाइल, महँगी गाड़ियों में घूमना आदि।
इन सब आदतों के रहने से बच्चे थोड़े से दिनों के लिए कहीं भी बाहर जाएंगे, तो वे अपनी जिंदगी को एन्जॉय कर सकते हैं।
वे अपनी जरूरतें भी समझने लगेंगे और अपना ध्यान खुद रखना सीखेंगे।
पैसे के बारे में भी बच्चे को बताना जरूरी है कि पैसे कैसे कड़ी मेहनत और ईमानदारी से कमाये जाते हैं। इससे उनमें संघर्ष करने की क्षमता का विकास होगा।
3. थोड़ी देर खुद से अलग भी रखें।
माँ पिता होने के नाते बच्चों की हर ज़रूरतों को पूरा करने के लिए हम उनके काफी करीब होते हैं।
ये एक हद तक सही भी है।
उम्र बढ़ने के साथ साथ बच्चे को थोड़े थोड़े से अंतराल के लिए खुद से अलग भी रखें।
इस दौरान उसे उसकी क्षमता के अनुसार छोटी छोटी जिम्मेंदारियाँ भी दें।
जैसे वे अपना होम वर्क आपकी अनुपस्थिति में करे, अपने सभी सामानों को ठीक से रखें आदि।
इससे एक फायदा यह भी होगा कि बच्चे अपना काम खुद से करना सीखेंगे और दूसरी बात ये भी कि हम खुद भी थोड़ा फ्री होकर अपना काम कर पाएंगे।
छोटी सी उम्र में लगाई गई इन आदतों के कारण आगे चलकर बच्चों में परिपक्वता आती है।
क्योंकि हम हमेशा, हर जगह बच्चों के पीछे तो नहीं रह सकते हैं।
स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, परिवार और समाज सभी जगह सामंजस्य स्थापित करने में ये आदतें ही बच्चे की सहायक होंगी।
इससे वे जीवन में आने वाली हर उतार चढ़ाव को बड़े ही दृढता पूर्वक सामना जर जीवन पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहेंगे।


