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ब्रह्म की प्राप्ति भ्रम की समाप्ति : निरंकारी मिशन

राची, झारखण्ड  | जनवरी |  01, 2025 ::

ब्रह्म ज्ञान प्राप्ति के बाद ही जीवन में वास्तविक भक्ति शुरू होती है और इसकी स्थिरता से ही जीवन भक्तिमय और आनंदमय बनता है।’ उक्त शब्द सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के संदेश को सांझा करते हुए नववर्ष के शुभारंभ पर रांची नामकुम में आयोजित विशेष सत्संग को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। यह जानकारी रांची ब्रांच के बहन ललित सूद ने दी । ईश्वरीय ज्ञान के महत्व को समझाते हुए कहा कि ब्रह्मज्ञान का अर्थ हर पल उसके प्रकाश में जीना है और यह अवस्था हमारे जीवन में तभी आती है जब यह निरंतर हो, इससे सही मायनों में मुक्ति मिलती है। लेकिन इसके विपरीत यदि हम माया (भ्रम और आसक्ति) के प्रभाव में रहते हैं, तो आनंद और मुक्ति की स्थिति प्राप्त करना संभव नहीं है। जीवन का वास्तविक उद्देश्य माया के प्रभाव से खुद को बचाना और जीवन के उद्देश्य को समझना है, जो कि ईश्वर को जानना है। इस संसार में निरंकार और माया दोनों की उपस्थिति निरंतर बनी रहती है। इसलिए हमें निरंकार के साथ जुड़कर भक्ति में लीन होना होगा। सेवा, सिमरन, सत्संग हमारे जीवन में या हमारी चेक लिस्ट में मात्र शब्द नहीं हैं, बल्कि हमें निरंकार के साथ जुड़कर अपने कल्याण के लिए काम करना चाहिए।

बहन जी ने उदाहरण देकर समझाया कि जब विद्यार्थी विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हैं और विषय समझ में नहीं आता तो शिक्षक हमारी शंकाओं का समाधान करने के लिए होते हैं। जिन विद्यार्थियों को अपने विषय में स्पष्टता होती है, वे उन शिक्षाओं को जीवन में अपनाकर सफल होते हैं। लेकिन कुछ लोग मन में नकारात्मक विचार लेकर बैठ जाते हैं और अपनी शंकाएं पूछते ही नहीं, जिसके कारण वे अपने विषय में पूरी तरह पारंगत नहीं हो पाते। इसी प्रकार जीवन में आनंद केवल ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने से नहीं, बल्कि उसे समझने और आत्मसात करने से ही संभव है। अन्यथा ज्ञान के प्रकाश के होते हुए भी वह अंधकारमय जीवन जीता है और अपना अमूल्य जन्म भ्रम और अंधविश्वासों में बिताता है।

बहन जी ने फरमाया मुक्ति के मार्ग का उल्लेख करते हुए ने कहा कि मुक्ति केवल उन्हीं संतों को प्राप्त होती है जिन्होंने ब्रह्मज्ञान को सही मायने में समझ लिया है और उसे जीवन में अपना लिया है। वह इंसान मुक्ति का हकदार है सत्संग सभा में संयोजक बहन चंपा भाटिया ने साथ संगत को नव वर्ष की शुभकामनाएं दी और निरंकार प्रभु परमात्मा से सभी के उज्जवल भविष्य की कामना की सत्संग समाप्ति के उपरांत संतो के बीच अटूट लंगर का वितरण भी किया गया।

 

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