रांची, झारखण्ड | जनवरी | 03, 2019 :: कहते हैं पत्थर नीर्जिव होते हैं उनमें संवेदनाएँ नहीं होतीं इसलिये तो कठोर इंसान को पत्थरदिल तक कह डालते हैं हम। लेकिन उन्हीं पत्थरों से जब राम बनाये जाते हैं कृष्ण बनाये जाते हैं, गाँधी, पटेल, लोहिया शास्त्री और नेहरू बनाये जाते हैं तब वही बेजान पत्थर को गढ़ने वाले संगतराश को रचयिता मान लिया जाता है।
राँची करमटोली की तंग गलियों से निकल कर अरोबिन्दो उराँव पत्थरों में जान डालने का काम कर रहा है। आज युवाओं में प्रेरणा के स्रोत बन रहा है अरविन्दो।
डीएवी बरियातु से मैट्रिक करने के बाद एल.एम.एन.एस.एम. इन्टर कॉलेज इटकी से इन्टर करने के बाद पत्थरों से खेलने वाला आदिवासी युवक अरोबिन्दो के दिल में न जाने कितने जज़्बात पल रहे हैं और वह बेताब है झारखंड की हस्तियों को पत्थर में उतारने के लिये।
कम उम्र में ही पिता का साया उठ जाने के बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और इसमें बड़े भाई राज उराँव ने अरविन्दों का हौसला बढ़ाया। उसके संगतराशी के जुनून को एक धार देने के लिये उसका दाखिला जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स विभाग में दाखिला करवा दिया। जहाँ पूरे भारत से मूर्तिकला शिल्पकला सीखने आते हैं युवा। अरोबिन्दो ने पढ़ाई में भी राँची सहित पूरे झारखंड का मान रखा। उसने फाइन आर्ट्स के बैचलर डिग्री में प्रथम श्रेणी में प्रथम आकर गोल्ड मेडल हासिल किया। इससे उसका हौसला और बुलन्द हुआ और उसने दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ फाईन आर्ट्स (मूर्तिकला/शिल्पकला) में आगे की पढ़ाई के लिये दाखिला ले लिया। जहाँं वही संगतराशी की और अधिक बारीकियाँ सीख रहा है।
पढ़ाई के साथ शिल्पकला में अच्छे प्रदर्शन के कारण पढ़ाई के दौरान ही दिल्ली और पास के क्षेत्रों में अरोविन्दों उराँव को मूर्तिकला के वर्कशॉप में ऑब्जर्वर बना भेजा जाने लगा। ललित कला अकादमी नई दिल्ली के क्षेत्रीय केन्द्र द्वारा आयोजित डोकरा आर्ट कैम्प में भी अरोविन्दों उराँव को बतौर ऑब्जर्वर भेजा गया।
मेक्सिको दूतावास और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित म्यूरल वर्कशॉप में भी अरोबिन्दो उराँव को हिस्सा लेने का अवसर प्राप्त हुआ। इसी बीच एम.एफ. हुसैन आर्ट गैलरी में भी अरोविन्दों का बनाया हुआ मॉडल प्रदर्शित हुआ। इसके अतिरिक्त लखनउ के कला स्रोत आर्ट गैलरी में भी अरोबिन्दो के मॉडल प्रदर्शित किए गये।
बकौल अरोबिन्दो उराँव के – झारखंड में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। राज्य में विभिन्न कलाओं के विकास की असीम संभावनाएं हैं। यदि राज्य सरकार कलाकारों के सम्मानजनक नियोजन की व्यवस्था करते हुए प्रतिभाओं को आगे बढ़ने में आर्थिक रूप से मदद करे तो यहां के कलाकार उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। मेरा सपना है कि झारखंड के विशिष्ट व्यक्तियों की मूर्तियाँ बनाउं और साथ ही झारखंड के पर्यटन स्थलों की सुन्दरता बढ़ाने में मूर्तिकला के माध्यम से अपना योगदान दूँ जिससे हमारे प्रदेश को रेवेन्यू भी मिल सके।
रिपोर्ट :: सुशील अंकन