रांची, झारखण्ड | फरवरी | 18, 2019 :: एनीमिया मुक्त भारत :: 2022 तक एनीमिया को कम करेगा झारखंड
एनीमिया क्या है ?
एनीमिया एक विश्वव्यापी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है, जिसमें पिछले दशक में कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं दिख रहा है। एनीमिया एक अवस्था है, जिसमें लाल रक्त का आकार एवं संख्या या हेमोग्लोबिन अपने स्थापित मानक से नीचे चला जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने की रक्त की क्षमता में कमी आ जाती है। एनीमिया खराब पोषण तथा खराब स्वास्थ्य की पहचान है। एनीमिया तथा शरीर में आयरन की कमी व्यक्ति के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, जिसके फलस्वरूप थकान, सुस्ती तथा शारीरिक क्षमता एवं कार्य क्षमता में कमी देखी जाती है। दुनिया भर में एनीमिया को दूर करने में असफलता का दुष्परिणाम लाखों महिलाओं के खराब स्वास्थ्य, खराब जीवन शैली, पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों के विकास एवं शिक्षा में अवरोध तथा समुदाय एवं राष्ट्र के खराब आर्थिक उत्पादकता एवं विकास में रूकावट के रूप में सामने आ सकता है। माता को होने वाली एनीमिया, मां एवं बच्चे की रूग्ण्ता एवं उनकी मृत्यु से जुड़ा है, इसके अलावा गर्भपात, मरा बच्चा पैदा होना, समय पूर्व प्रसव एवं कम वजन के बच्चे का पैदा होने जैसी समस्या इसके कारणों में शामिल है।
झारखंड में एनीमिया की समस्या
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, यदि 40 प्रतिशत या उससे अधिक जनसंख्या में एनीमिया का प्रसार पाया जाता हैं, तो उसे गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में निरूपित किया जाता है।
झारखंड में, 6-59 महीने के 70 प्रतिशत बच्चे, 62.6 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं तथा मां बनने योग्य उम्र की 65.2 महिलाएं एनीमिया ग्रस्त हैं। एनएफएचएस-4 रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड के ग्रामीण इलाकों तथा आदिवासी समुदाय की महिलाओं तथा जो महिलाएं कभी स्कूल नहीं गई हैं, उनमें एनीमिया का प्रसार सबसे अधिक है।
यूनिसेफ झारखंड की प्रमुख, डा. मधुलिका जोनाथन कहती हैं, ‘‘वैश्विक रूप से एनीमिया का सबसे सामान्य कारण आयरन की कमी है। लेकिन इसका कारण मलेरिया, हुकवार्म, पोषण की कमी तथा जीर्ण संक्रमण भी है। बेहतर आहार की आदतें बड़े पैमाने पर एनीमिया को रोक सकता है। हालांकि, एनएफएचएस 4 ने पाया कि झारखंड में केवल 16 प्रतिशत बच्चों ने (9-23 महीने) सर्वे के पहले आयरन युक्त खाद्य पदार्थ ग्रहण किया तथा 6-59 महीने के 17 प्रतिशत बच्चों को सर्वे के एक हफ्ते पहले आयरन की खुराक दी गई।’’
एनीमिया मुक्त भारत
वर्ष 2012 में, वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली के सभी सदस्य देश, जिसमें भारत भी शामिल था, ने छह वैश्विक पोषण लक्ष्यों को 2025 तक प्राप्त करने की सहमति जताई थी। द्वितीय विश्व पोषण लक्ष्य के तहत मां बनने योग्य आयु की महिलाओं में एनीमिया को 50 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
पिछले वर्ष 8 मार्च 2018 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पोषण अभियान की शुरूआत की थी, जिसका लक्ष्य नाटापन तथा एनीमिया को वार्षिक रूप से 2 एवं 3 प्रतिशत तक कम करना था। यह महिलाओं एवं बच्चों में पोषण स्तर को बढ़ाने की भारत की मजबूत प्रतिबद्धता का परिचायक है।
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पूरे जीवन चक्र के दौरान एनीमिया की समस्या के समाधान के लिए ‘‘एनीमिया मुक्त भारत’’ कार्यक्रम की शुरूआत की है। यह 6ग6ग6 रणनीति पर आधारित है, जो पोषण अभियान के तहत परिकल्पित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए छह हस्तक्षेपों और छह संस्थागत तंत्र के माध्यम से छह लाभार्थी समूह पर ध्यान केंद्रित करता है।
वे छह लाभार्थी जो कि एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के दायरे में आएंगे वे हैं, 6-59 महीने के बच्चे, 5-10 वर्ष के बच्चे, 15-19 वर्ष के किशोर-किशोरियां, मां बनने योग्य आयु की महिलाएं, गर्भवती महिलाएं तथा स्तनपान कराने वाली महिलाएं शामिल हैं।
एनीमिया मुक्त भारत रणनीति के तहत छह निम्नलिखित उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया है –
1. बच्चों, किशोर-किशोरियों, मां बनने योग्य आयु की महिलाओं, गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रोफिलेक्टिक आयरन फॉलिक एसिड की खुराक देना।
2. कृमिनाशः सॉइल ट्रांसमिटेड हेल्मिन्थ्स (एसटीएच) नियंत्रण की दिशा में प्रयासों को तेज करना
3. पूरे वर्ष सघन रूप से व्यवहार परिवर्तन संचार अभियान चलाना, जिसमें नवजातों के गर्भनाल को काटने में देरी भी सुनिश्चित होना चाहिए। नवजातों के गर्भनाल काटने में 3 मिनट की देरी (या जब तक गर्भनाल धड़कना बंद न हो जाए) जन्म के बाद छह माह तक शिशु के शरीर के लिए जरूरी आयरन को संरक्षित रखता है।
4. गर्भवती महिलाओं एवं स्कूल जाने वाले किशोर-किशोरियों को केंद्रित कर एनीमिया की जांच और उपचार करना
5. सरकार द्वारा वित पोषित स्वास्थ्य कार्यक्रमों में आयरन एवं फॉलिक एसिड फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों का प्रावधान करना
6. मलेरिया पर विशेष ध्यान देने के साथ ही बीमारी के प्रसार वाले क्षेत्रों में एनीमिया के गैर-पोषण संबंधी कारणों के बारे में जागरूकता, स्क्रीनिंग एवं उपचार करना।
एनीमिया मुक्त भारत रणनीति के प्रभावी कार्यान्वयन एवं जबावदारी को सुनिश्चित करने हेतु सरकार ने राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर संस्थागत तंत्र की पहचान एवं स्थापना की है। ये छह संस्थागत तंत्र हैं –
1. अंतर-मंत्रालयी समन्वयः राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरकेएसके) के मौजूदा राष्ट्रीय संचालन समिति के मंच का उपयोग स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत अंतर्विभागीय समन्यवय को मजबूती प्रदान करने के लिए करना
2. अंतर-विभागीय समन्वयः एनीमिया मुक्त भारत ने विभिन्न विभागों – जैसे कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास, स्कूली शिक्षा एवं आदिवासी कल्याण विभाग को एक अवसर प्रदान किया है, ताकि वे एनीमिया के प्रसार को 2022 तक कम करने के लिए समन्वित रूप से कार्य कर सकें।
3. परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय में स्थित राष्ट्रीय एनीमिया मुक्त भारत इकाई, पूरे भारत में कार्यक्रम के कार्यान्वयन की निगरानी करेगा
4. एम्स दिल्ली स्थित नेशनल सेंटर ऑफ एक्सेलेंस फॉर एनीमिया, अनुसंधान आवश्यकताओं को पूरा करने और सप्लाई चेन निगरानी में सहायता प्रदान करने में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एवं विभिन्न राज्यों को तकनीकी जानकारी प्रदान करेगा।
5. कार्यक्रम के स्थायित्व को सुनिश्चित करने तथा निर्बाध आपूर्ति हेतु सप्लाई चेन प्रबंधन को मजबूत करना
6. निगरानी एवं समीक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए ऑनलाइन डैशबोर्ड एवं डिजिटल पोर्टल
वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए सरकार को सर्वोत्तम कार्यक्रम कवरेज, निरंतरता, तीव्रता और गुणवत्ता को सुनिश्चित करना चाहिए । प्रमाण आधारित दृष्टिकोण को सुनिश्चित करना तथा इस गहन कार्यक्रम के तहत सबसे कमजोर समूहों को प्राथमिकता देना लक्ष्य तक तीव्रता से पहुंचने में मदद करेगा।
नोट
वर्ष 2012 में वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली के सभी सदस्य देशों द्वारा 2025 तक छह वैश्विक पोषण लक्ष्य की प्राप्ति हेतु संकल्प व्यक्त किया गया था। वह था –
5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होने वाले नाटेपन में 40 प्रतिशत तक कमी लाना
मां बनने योग्य आयु की महिलाओं में एनीमिया को 50 प्रतिशत तक कम करना
कम वजन के बच्चों के पैदा होने की संख्या में 30 प्रतिशत तक कमी लाना, साथ ही बचपने में वजन बढ़ने पर रोक लगाना
कम से कम छह माह तक विशेष रूप से स्तनपान कराने की दर को बढ़ा कर 50 प्रतिशत करना
बचपन में होने वाले सूखापन (ूंजपदह) में कमी लाकर 5 प्रतिशत से कम करना और इसे बरकरार रखना
पोषण अभियान का उद्देश्य 2022 तक सभी आयु वर्ग में एनीमिया को हर साल 3 प्रतिशत से कम करना है। झारखंड में विभिन्न आयु समूहों के लिए निम्नलिखित लक्ष्य है –
6-59 महीने के बच्चों में होने वाले एनीमिया के प्रसार को 69.9 प्रतिशत से घटाकर 51.9 प्रतिशत पर लाना (एनएफएचएस 5 बेसलाइन)
मां बनने योग्य आयु की महिलाओं (15-49 वर्ष) में एनीमिया प्रसार को 65.2 प्रतिशत से घटाकर 47.2 प्रतिशत पर लाना (एनएफएचएस 4 बेसलाइन)
धातृ माताओं में एनीमिया के प्रसार को 70.8 प्रतिशत से घटाकर 52.5 प्रतिशत पर लाना (एनएफएचएस 4 बेसलाइन)
किशोरियों में एनीमिया के प्रसार को 65 प्रतिशत से घटाकर 47 प्रतिशत पर लाना (एनएफएचएस 4 बेसलाइन)
किशोरों में एनीमिया प्रसार को 35.3 प्रतिशत से घटाकर 17.3 प्रतिशत पर लाना ((एनएफएचएस 4 बेसलाइन)