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तम्बाकू का नशा जीवन का नाश करता है : ब्रह्माकुमारी निर्मला

राची, झारखण्ड | मई | 30, 2024 ::

पारिवारिक, सामाजिक व प्रशासनिक दबाबों के बीच कार्य करते हुए मानव आज असंतोष, तनाव और कुठा में धिरा हुआ है। कुछ लोग इससे मुक्त होने के लिए बीड़ी, सिंगरेट, तम्बाकू, शराब आदि का प्रयोग करते है लेकिन वास्तव में तनाव का इलाज तम्बाकू नहीं, सिगरेट, शराब आदि एक धीमा जहर है। ये उद्गार राजकिशोर कर्ण अभियंता ने अभिव्यक्त किये।
उन्होंने कहा बचपन में भी कई बच्चे बुरी संगति के कारण इस लत के शिकार हो जाते हैं।

कार्यक्रम में उपस्थित अभियंता अनिल सिंह ने कहा जो भी व्यक्ति इस लत के वश में एक बार जाने-अनजाने फंस जाता है वह समय से पूर्व ही काल का ग्रास बन जाता है। राजयोग के
अभ्यास से कठिनाईयों का सामना करने की शक्ति में बढ़ोतरी होती है। इस बढ़ी हुई इच्छा शक्ति से मन को स्वच्छ बनाकर मानव मलीन विचारों से मुक्त होता है। स्वास्थ्य और मानसिक शुद्धि के
लिए ब्रह्माकुमारी संस्थान की राजयोग रूपी प्रयोगशाला का अनुभव करना चाहिए जिससे रोग प्रतिकारक शक्ति में वृद्धि होती है।

कार्यक्रम में उपस्थित अभियंता किशोरी ने कहा धुम्रपान व तम्बाकू का व्यसन एक बुरी चीज है। देह मंदिर से धुआं निकालते व अग्नि को मुख से निगलते मूर्ख मनुष्य गर्व का अनुभव करते हैं। सिगरेट के धुएं में 400 प्रकार के खतरनाक रसायन रहते हैं। सिगरेट पीने से खुन की मात्रा में निकोटीन की मात्रा अधिक होने से ऑक्सीजन वहन की क्षमता बहुत कम हो जाती है वे हृदयरोग, कैंसर हो सकता है। आठ सिंगरेट एक दिन में जेब से निकालकर सुलगाने में 16 मिनट लगते हैं जबकि 15 मिनट के राजयोग अभ्यास से वह आदत छूट सकती है ।

ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन ने कहा विडम्बना इस बात की है कि आजाद भारत के लोग अंग्रेजों की गुलामी से तो मूक्त हो गये लेकिन साढ़े पॉँच फीट का इंसान ढाई इंच के सिगरेट और बीड़ी का गुलाम है। इंसान मुख से आग निगल रहा है और बुराईयों का धुआं उगल रहा है।
इसकी आग ठंडी करने के लिए राजयोग शीतल उपचार प्रक्रिया है जिसका अभ्यास चौधरी बगान,
हरमू रोड ब्रह्माकूमारी केन्द्र प कराया जाता है। राजयोग सब नशों और व्यसनों का नाश करने के लिए अचूक औषधिे है। यदि कोई व्यक्ति तम्बाकू का सेवन त्याग दे तो इसका हानिकारक
प्रभाव खत्म हो कैंसर खतरा टल जाता है। इश्वरीय राजयोग साधना के दौरान जब व्यक्ति परमात्मा से सम्पर्क साध लेता है तो नशे की लालसा कम होकर खत्म हो जाती है। राजयोगी मन
का स्वामी बन कर रहता है, दास नही। राजयोग से मनोबल में अल्पकाल में ही बहुत वृद्धि होती है। परमात्मा की सन्तान होने के नाते से हमें उनके द्वारा रचे हुए रूद्र ज्ञान यज्ञ में बुराईयों की
आहुति डालकर ईश्वरीय राजयोग सीखना चाहिए तभी भारत की मूल दैवी सभ्यता सृष्ट पर आयेगी।

राजयोग केवल तनाव मुक्त होने की विधि ही नहीं है बल्कि शुद्ध जीवन पद्धति है। राजयोग का अभ्यास व्यक्ति की मनोवृति तथा वातावरण में बदलाव लाता है तथा रोगों से मुक्ति दिलाकर मस्तिष्क को स्वस्थ बनाता है जबकि बीड़ी, सिंगरेट, गुटखा आदि लेने से आदमी का विकास नहीं होता, उलटे शरीर की रौनक कम होती जाती है।

बड़ी संख्या में लोगों ने सिगरेट, गुटखा आदि भविष्य में प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा की।

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