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नारी शक्ति का प्रतीक और अखंड सौभाग्य की कामना का पावन व्रत हरतालिका तीज व्रत 24 अगस्त गुरुवार को

रांची, झारखण्ड । अगस्त | 22, 2017 :: तीज 24 अगस्त गुरुवार को तृतीय रात 9:15 तक है, – पँड़ित रामदेव पाण्डेय

हस्ता दिन – 3:56 से

हरतालिका तीज व्रत की कथा पूजन विधि  सामान

नारी शक्ति का प्रतीक और अखंड सौभाग्य की कामना का यह पावन व्रत हरतालिका तीज पंचांगानुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है , हस्ता नक्षत्र मे ।
हरतालिक तीज को हरितालिका तीज भी कहा जाता है ।
नारी के सौभाग्य की रक्षा करनेवाले इस व्रत को सौभाग्यवती स्त्रियां अपने अक्षय सौभाग्य और सुख की लालसा हेतु श्रद्धा, लगन और विश्वास के साथ मानती हैं। कुवांरी लड़कियां भी अपन मन के अनुरूप पति प्राप्त करने के लिए इस पवित्र पाव व्रत को श्रद्धा और निष्ठा पूर्व करती है।
हर भगवान भोलेनाथ का ही एक नाम ह और चूँकि शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माँ पार्वती ने इस व्रत को रखा था इसलिए इस पावन व्रत का नाम हरतालिका तीज रख गया।

हरतालिका तीज नियम

हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता हैं, अर्थात पूरा दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता |
हरतालिका व्रत कुवांरी कन्या, सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा किया जाता हैं |इसे विधवा महिलायें भी कर सकती हैं |
हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता | इसे प्रति वर्ष पुरे नियमो के साथ किया जाता हैं|
हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता हैं | पूरी रात महिलायें एकत्र होकर नाच गाना एवम भजन करती हैं | नये वस्त्र पहनकर पूरा श्रृंगार करती हैं |
हरतालिका व्रत जिस घर में भी होता हैं | वहाँ इस पूजा का खंडन नहीं किया जा सकता अर्थात इसे एक परम्परा के रूप में प्रति वर्ष किया जाता हैं |
सामान्यतह महिलायें यह हरतालिका पूजन मंदिर में करती हैं |

हरतालिका के व्रत से जुड़ी कई मान्यता हैं,
जिनमे इस व्रत के दौरान जो सोती हैं, वो अगले जन्म में अजगर बनती हैं, जो दूध पीती हैं, वो सर्पिनी बनती हैं,
जो व्रत नही करती वो विधवा बनती हैं, जो शक्कर खाती हैं मक्खी बनती हैं, जो मांस खाती शेरनी बनती हैं, जो जल पीती हैं वो मछली बनती हैं, जो अन्न खाती हैं वो सुअरी बनती हैं जो फल खाती है वो बकरी बनती हैं | इस प्रकार के कई मत सुनने को मिलते हैं |

सरगही – उपवास वाले दिन के सुबह 4:50 तक , कर ले , दुध , दही , अकुरी , फल , ले ।

पारण_ दुध , फल आदि से सुर्योदय के पहले करे ।

पूजन सामाग्री  हरतालिका
तीज की पूजन सामग्री

हरतालिका पूजन के लिए –

गीली काली मिट्टी या बालू रेत।

बेलपत्री,  धतूरे का फल एवं फूल ,वस्त्र, सभी प्रकार के फल एवं फूल , मिठाई , पेडुकी , मक्का , चना ,  पीढा , पान पता 11, आम पता , दुब घास , बेल पत्र , बेलजन , काशी , अँजीर नीबू , सेव, अमरूद , पडकिया, अनारस , मक्का, खीरा , ( खीरा मे काजल करना है )

पार्वती मां के लिए सुहाग सामग्री-

मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, साड़ी सेट , धोती सेट , डलिया सिगाँर , ईत्र ,   आदि।

श्रीफल, कलश, अबीर, चन्दन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, घी, दही, शक्कर, दूध, शहद ,        ।।

पीढा / पाटा पर –  गौरी , शिव , नन्दी और हरतकी सहेली  का मूर्ति बनाए। बेलपत्र पर या केला पता पर शिव जी , पार्वती , हरतकी बनावे ,
1 फुलेरा विशेष प्रकार से  फूलों से सजा होता |
2 गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत
3 केले का पत्ता
4 सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते
5 बैल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकाँव का फूल, तुलसी, मंजरी |
6 जनैव, नाडा, वस्त्र,
7 माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान जिसमे चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, मेहँदी आदि मान्यतानुसार एकत्र की जाती हैं | इसके अलावा बाजारों में सुहाग पुड़ा मिलता हैं जिसमे सभी सामग्री होती हैं |
8 घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, श्री फल, कलश |
9 पञ्चअमृत- घी, दही, शक्कर, दूध, शहद |

पूजन व अन्य सामग्री
5 बडा सुपारी
11 छोटा सुपारी
5 हल्दी अखा
15  पान के पत्ते
आमपता
सुन्दर मिक्स फुल माला 1
दुब घास माला – 1
बेलपत्र माला-1
कलश ढकनी -1
बड़े दीपक -1
मोली बड़ा -1
धोती गमछा गँजी कुर्ता अन्डर वियर

ताम्बे या पीतल का कलश/ लोटा
अक्षत (साबुत चावल) -2 किलो
नारियल 1
ताजे पुष्प
इत्र
केले के पत्ते-5
दूर्वा
हल्दी चन्दन टीके हेतु
कपूर, धूप व अगरबत्ती
गौ घृत का दीपक
बती
धुप
माचीस
शहद-200
गुड़ -200
गंगा जल
5 अखरोट, 5 बादाम, 5 खारेक, 5 काजू, 5 किशमिश आदि पंचमेवा।
फल
प्रशाद लड्डू मोदक
मिठाई 5 प्रकार
फल 5 प्रकार
कर्पूर -1
सिनदुर – 1
अष्टगँध चन्दन -1
पँच मेवे – 250 ग्राम
सर्वोसधी -1
महसधी -1
पँच कषाय -1
पँचरत्न -1
हवन पैकेट 1
जनेउ – 3
लँवग इलायची -20 ग्राम

लाल वस्त्र – 1/2मी
पीला कपड़ा1/ 2 मी
चौकी -1
बालु
फुल –
कमल –
चम्पा –
गेनदा –
पता प्लेट
फल – सेव, केला , अनार , अँजीर ,

*श्रृंगार सामग्री* शँकर – पार्वती के लिऐ ;-
मुकुट
माला
भुजबन्ध
वस्त्र गणेश जी के।

घरेलू सामान –
कम्बल 4
आसन –
परात -3
थाली –3
लोटा -2
तस्तरी -3
बाल्टी -1
दीपक -1

पूजन से पहले सब सामान सजाकर रखे ।

एक कलश मे आमपता , दुब , सुपारी , सिक्का , पानपता , जल , गँगाजल , सर्वोसधी , पँच रत्न , पँच कषाय , सर्वोसधी, डालकर उपर नारियल पानी वाला मे लाल कपड़ा लपेट दे और  रखे , माला पहनावे ,
एक थाली मे सभी फल ।
एक थाली मे सभी मिठाई , पान , ।
एक थाली मे फुल ।
एक मे पँचमेवा ।
एक थाली मे फुल डाले   आरती सजावे , ।
एक थाली मे पूजन का सामान खोलकर सजा कर रखे ।
एक थाली मे फुल , माला , दुब घास , बेलपत्र , ।
एक थाली मे रोरी, आटा , हल्दी , अबीर , सुपारी, चन्दन , सिन्दुर , कुमकुम , गुलाल , ईत्र , गुलाब जल  ।
एक कटोरी मे पीला चावल , फुल ।
एक मे दुध , दही , मधु , घी , गुड़, गुलाब जल ,  डालकर पँचामृत बनावे ।

9 पान पता लेकर – हरेक पर अक्षत , फल , फुल , सुपारी, लँवग , इलायची, ईत्र , अबीर , गुलाल , मोली धागा , पान , पँच मेवा सजाकर रखे ,
एक रूमाल रखे ,
एक ग्लास या लोटा मे जल भर कर रखे ,
पुजन पुरब मुँह होकर करे ,

इतना सजाकर रखे और पण्डित जी से कथा सुने ।

*ध्यान रहे कल  गणेश चतुर्थी व् स्थापना काल में ‘चंद्र दर्शन’ ना करें।*

हरतालिका तीज पूजन विधी

हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं | प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय |
हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से हाथों से बनाई जाती हैं |
फुलेरा बनाकर उसे सजाया जाता हैं |उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर पटा अथवा चौकी रखी जाती हैं | चौकी पर एक सातिया बनाकर उस पर थाल रखते हैं | उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं |
तीनो प्रतिमा को केले के पत्ते पर आसीत किया जाता हैं |
सर्वप्रथम कलश बनाया जाता हैं जिसमे एक लौटा अथवा घड़ा लेते हैं | उसके उपर श्रीफल रखते हैं | अथवा एक दीपक जलाकर रखते हैं | घड़े के मुंह पर लाल नाडा बाँधते हैं | घड़े पर सातिया बनाकर उर पर अक्षत चढ़ाया जाता हैं |
कलश का पूजन किया जाता हैं | सबसे पहले जल चढ़ाते हैं, नाडा बाँधते हैं | कुमकुम, हल्दी चावल चढ़ाते हैं फिर पुष्प चढ़ाते हैं |
कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं |
उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं |
उसके बाद माता गौरी की पूजा की जाती हैं | उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं |
इसके बाद हरतालिका की कथा पढ़ी जाती हैं |

फिर सभी मिलकर आरती की जाती हैं जिसमे सर्प्रथम गणेश जी कि आरती फिर शिव जी की आरती फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं |
पूजा के बाद भगवान् की परिक्रमा की जाती हैं |
रात भर जागकर पांच पूजा एवं आरती की जाती हैं |
सुबह आखरी पूजा के बाद माता गौरा को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं | उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं |
ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं | उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं |
अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं |

पूजन विधि:-
इस व्रत  पर सौभाग्यवती स्त्रियां नए लाल वस्त्र पहनकर, मेंहदी लगाकर, सोलह श्रृगार करती है और शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और मां पार्वती जी की पूजा आरम्भ करती है। इस पूजा में शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन किया जाता है और फिर हरितालिका तीज की कथा को सुना जाता है। माता पार्वती पर सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। भक्तों में मान्यता है कि जो सभी पापों और सांसारिक तापों को हरने वाले हरितालिका व्रत को विधि पूर्वक करता है, उसके सौभाग्य की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं।

शिव पुराण की कथा
शिव पुराण की एक कथानुसार इस पावन व्रत को सबसे पहले राजा हिमाचल  की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किया था और उनके तप और आराधना से खुश होकर भगवान शिव ने माता को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
लिंग पुराण मे तीज व्रत कथा
लिंग पुराण के अनुसार एक कथा – मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल पानी  पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।।
इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई।
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।
मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं। साथ ही यह् व्रत पर्व दांपत्य जीवन में आनन्द व उमंग बनाये रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है इस व्रत के माध्यम से नारी अपने सुहाग के प्रति अपने समर्पण व त्याग की भावना को प्रकट करती है
श्री भोलेनाथ माता पार्वती जी की जय

व्रत कथाः

तीज व्रत के माहात्म्य की कथा शिवजी ने पार्वतीजी को उनके पूर्वजन्म का स्मरण करवाने के उद्देश्य से सुनाई थी. वह कथा इस प्रकार से है-

शिवजी बोले- हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया था. इस अवधि में तुमने अन्न का त्यागकर केवल वायु का ही सेवन किया.

फिर तुमने सूखे पत्ते चबाकर तप किया. माघ की ठंढ़ में तुम जल में खड़े होकर तप किया करती थीं. वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि जलाकर तप किया और शरीर को तपाया.

श्रावण की मूसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न जल ग्रहण किए तप करती रहीं.

तुम्हारी इस कष्टदायक तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता पर्वतराज हिमवान बहुत दुःखी और नाराज़ होते थे. तब एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराज़गी देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे.

तुम्हारे पिता ने नारदजी से आने का कारण पूछा तो नारद बोले– हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूँ. आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं. इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं.

नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज प्रसन्न होकर बोले- यदि स्वंय विष्णुजी मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो यह हर्ष की बात है. वह तो साक्षात ब्रह्म हैं. हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पुरुष की जीवनसंगिनी बने.

तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी बैकुंठ लोक चले गए औरर विष्णुजी को विवाह तय होने का समाचार सुनाया परंतु जब सखियों से तुम्हें इस बारे में पता चला तो तुम्हारे दुःख का ठिकाना ना रहा.

तुम्हें दुःखी देखकर, तुम्हारी एक सहेली ने दुःख का कारण पूछा.

तुमने बताया -मैंने सच्चे मन से शिवजी का वरण किया है किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है. मैं विचित्र धर्मसंकट में हूँ. अब प्राण त्याग देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.

तुम्हारी सखी बहुत समझदार थी. उसने कहा- प्राण छोड़ने का क्या लाभ? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिए. नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण करे, जीवनपर्यन्त उसी से निर्वाह करे.

सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो भगवान् भी असहाय हैं. मैं तुम्हें घनघोर वन में ले चलती हूँ जो साधना स्थल भी है. वहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी नहीं पाएंगे. मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे.

तुमने ऐसा ही किया. तुम्हारे पिता तुम्हें न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए. वह सोचने लगे कि मैंने तो विष्णुजी से अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया है. यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गये और कन्या घर पर न मिली तो बहुत अपमान होगा.

ऐसा विचारकर पर्वतराज ने चारों ओर तुम्हारी खोज शुरू करवा दी. इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं. तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया.

रात भर मेरी स्तुति में गीत गाकर जागरण किया. तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुँचा और तुमसे वर मांगने को कहा.

अपनी तपस्या को सफल देखकर तुमने कहा- मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ. यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये. ‘तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया.@@ हरतालिका तीज का नाम सुनते ही महिलाओं एवम लड़कियों को एक अजीब सी घबराहट होने लगती हैं | वर्ष के प्रारम्भ से ही जब कैलेंडर घर लाया जाता हैं, कई महिलायें उसमे हरतालिका की तिथी देखती हैं | यूँ तो हरतालिक तीज बहुत उत्साह से मनाया जाता हैं, लेकिन उसके व्रत एवं पूजा विधी को जानने के बाद आपको समझ आ जायेगा कि क्यूँ हरतालिका का व्रत सर्वोच्च समझा जाता हैं और क्यूँ वर्ष के प्रारंभ से महिलायें तीज के इस व्रत को लेकर चिंता में दिखाई देती हैं |

हरतालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं | यह तीज का त्यौहार भादो की शुक्ल तीज को मनाया जाता हैं | खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता हैं | कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरतालिका का व्रत क्ष्रेष्ठ समझा गया हैं | हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी एवम गणेश जी की पूजा का महत्व हैं | यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता हैं | रत जगा कर नाच गाने के साथ इस व्रत को किया जाता हैं |

हरतालिका नाम क्यूँ पड़ा ?

माता गौरी के पार्वती रूप में वे शिव जी को पति रूप में चाहती थी जिस हेतु उन्होंने काठी तपस्या की थी उस वक्त पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा कर लिया था | इस करण इस व्रत को हरतालिका कहा गया हैं क्यूंकि हरत मतलब अगवा करना एवम आलिका मतलब सहेली अर्थात सहेलियों द्वारा अपहरण करना हरतालिका कहलाता हैं |

शिव जैसा पति पाने के लिए कुँवारी कन्या इस व्रत को विधी विधान से करती हैं |

हरितालिका तीज भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है. यह आमतौर पर अगस्त – सितम्बर के महीने में ही आती है. इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते है.

दिन भर करे तीज पूजा देर रात तक

– पँड़ित रामदेव पाण्डेय 

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