रांची, झारखण्ड | अप्रैल | 24, 2020 :: 24 अप्रैल का महान दिन मानव एकता के संकल्प का दिन है ।
यह मानव एकता के अद्भुत शिल्पी युगपुरुष बाबा गुरबचन सिंह जी को याद कर उनके कार्यों को आगे बढ़ाने के दृढ़ निश्चय का दिन है।
आज के दिन 24 अप्रैल 1980 भ्रमित मानसिकता वाले लोगों ने उनकी हत्या करके सत्य, ज्ञान, और प्रेम के उनके महान अभियान को रोक देने का कुत्सित प्रयास किया था, जो सफल नहीं हुआ।
उनके योग्य सुपुत्र और उनके बाद सन्त निरंकारी मिशन की बागडोर संभालने वाले बाबा हरदेव सिंह जी ने मानव एकता अभियान के रथ के पहियों को अदभुत गति देकर इसे विश्वव्यापी विस्तार दिया।
यह दिन निरंकारी जगत के लिए विशेष मायने रखता है ।
1930 से 1980 तक के 50 वर्षों के युग प्रवर्तक बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज जी के संपूर्ण जीवनकाल का एक एक पल मानवता की भलाई में लगा।
उन्होंने जहां भी, जो भी साधन उपलब्ध हुआ उसके सर्वोत्तम उपयोग द्वारा संसार से अज्ञानता के गहन अंधकार को मिटाने का प्रयास किया।
एक ओर जहां उन्होंने मानव को सत्य इश्वर प्रभु के साथ जोड़ा वहीं समाज में प्रचलित कुरीतियों और रूढ़िवादिता का भी अन्त किया।
समाज सुधार की दिशा में नशाबंदी उनका महत्वपूर्ण कार्य है जिसके आशातीत परिणाम सामने आए और लाखों परिवारों से रोज रोज का कलह क्लेश सदा सदा के लिए समाप्त हुआ।
बिना दहेज के सादा सादियों का जो अभियान उन्होंने आरंभ किया उससे दिखावे के चक्कर में कर्ज के जाल में फंसने से लोग बच पाए ,परिवारों में अपनापन बढ़ा।
ऐसे कितने ही बड़े बड़े कार्य बाबा गुरबचन जी के द्वारा हुए जिनकी लंबी सूची है।
उन्होंने नौजवानों को सदाचरण के मार्ग पर चलाया और उन्हें मिशन की मुख्य धारा से जोड़ा।
युवा शक्ति को सकारात्मक रूप से मानवता की सेवा करने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने अपने कर्म द्वारा स्वयं जीवन जी कर जो सिखाया वह सीधे लोगों के दिलों में उतरता चला गया।
मिशन के प्रचार के लिए पुरानी गाड़ियों की मरम्मत में स्वयं लग जाना उन्हें कभी भी छोटा या साधारण कार्य नहीं लगा। वास्तविकता में उन्होंने संसार को जीवन जीने का सही ढंग सिखाया।
उनकी शिक्षाओं और महान कार्यों के लिये आने वाली पीढ़ी उनकी ऋणी रहेगी।
उनके साथ चाचा प्रताप सिंह जी का महान बलिदान और सेवाभाव भी कभी भुलाया न जाएगा।
बाबा गुरबचन सिंह जी को शद्धा सुमन अर्पित करते समय उन्हीं की कही गई यह बात याद रखनी होगी –
ब्रह्मज्ञानी महापुरुष हो चुके बुजुर्गों को केवल श्रद्धांजलियां ही नहीं देते, और न ही वह बहुत बड़े-बड़े भाषण देकर उनके जीवन की केवल कथाएं ही सुनाते हैं, बल्कि वे जानते हैं कि कोरे भाषणों और केवल लफजी श्रद्धांजलियों से कुछ भी फायदा होने वाला नहीं। यदि हमें उन को सच्ची श्रद्धांजलि देनी है तो हमें उनके जीवन से ही प्रेरणा लेनी होगी।
उनके जीवन से सच्चा लाभ प्राप्त करना होगा।
जो महान कार्य उन्होंने किए थे, जो मानव मात्र की सेवा उन्होंने की थी, जो सेवा सुमिरन सत्संग इन्होंने सही रूप से अपने जीवन में अपनाया था, जो सत्य निष्पक्ष भाव से मानव मात्र में बांटा था, वही सब कुछ आज हम उन्हीं की तरह कर्म में ढालना है यही उनके प्रति सच्ची श्रृद्धाजंलि होगी।