राची, झारखण्ड | जून | 20, 2024 ::
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के स्थानीय सेवा केन्द्र, चौधरी बगान हरमू रोड में अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के पूर्व संध्या पर विभिन्न प्रकार के आसन एवं प्राणायाम के
अभ्यास किए गए। इस अवसर पर बोलते हुए केन्द्र संचालिका ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन ने कहा कि वर्तमान समय संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ राजयोग का अभ्यास आवश्यक है जिससे हमारे तन के साथ- साथ मन भी स्वस्थ और शक्तिशाली बने। बुद्धि को परमपिता परमात्मा से जोड़ना ही योग है। आज मनुष्य की बुद्धि अनेकों से जुड़ी हुई है अतः भटकती रहती है। बृद्धि को अनेकों से तोड़ एक से जोड़ने वाला मनुष्य ही योगी है। एक परमात्मा ही है जिनसे सर्व संबंधों, सर्व रसनाओं और सर्व सुखों की प्राप्ति होती है। आत्मा का
संबंध परमात्मा से जोडना ही सच्चा योग है।
मानव मन को चाहिए सुख शांति का ठिकाना। बुद्धि बहुत चंचल है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति का कहीं ठिकाना नहीं होता, कोई आपना घर नहीं होता वह यहाँ वहाँ भटकता रहता है।
लेकिन जिसे अपना घर है वह आवश्यक कार्य से कहीं जाने पर भी रात्रिशयन के लिए अवश्य अपने घर लौट आएगा, भटकेगा नही कार्योपरांत ठिकाने पर पहुँच जाएगा। इसी प्रकार से
सुखशांति का एक मात्र ठिकाना आनन्द के सागर, शांति के सागर निराकार परमात्मा शिव ही हैं।
जिसे इस ठिकाने की प्राप्ति हो गयी है उसकी बुद्धि आवश्यक कार्योपरांत निश्चित रूप से वहाँ पहुँच जायेगी, उसके भटकने का प्रश्न ही नहीं उठ सकता। परंतु जिसे इस ठिकाने की प्राप्ति नहीं हुई है उसकी बुद्धि सुख-शांति की खोज में इधर उधर विक्षिप्त की भांति निरंतर भटक रही
है। सांसारिक सुखों के पीछे मृगतृष्णा की तरह वेतहाशा दौड़ते-दौड़ते अन्त में बुद्धि हताश तथा निराश हो जाती है। परमात्मा ही वह िकाना है जहां बुद्धि तृप्त होती है।
आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि आत्मस्थिति से ही परमात्म स्मृति होती है तथा परिचय से प्रेम उत्पन्न होता है। हमें अपने आप का तथा परमपिता परमात्मा का यथार्थ परिचय और
परमात्मा के दिव्य कत्त्यों का ज्ञन होने से उनके प्रति हमारे हदय में सहज प्रेम उत्पन्न होता है। वास्तव में हम शरीर नहीं वरन् निराकार आत्मा हैं तथा निराकार ज्योति-बिन्दु परमात्मा की
संतान हैं। शरीर भान में रहने से शरीर के संबंधियों की याद स्वतः आती है। इसी तरह आत्मिक स्थिति में रहने पर आत्मा के एक मात्र संबंधी परमात्मा की स्वभाविक याद आती रहेगी। इस
तरह आत्म स्वरूप का ज्ञान हो जाने पर परमात्मा की अनुभूति सहज हो जाती है। परमात्मा के गुण व कर्तव्य का ज्ञान भी स्मृति को सहज बना देता है। परमात्मा प्रेम के सागर, शांति के
सागर, आनन्द के सागर हैं। उनसे संबंध जुटने पर आत्मा प्रेम की लहरों में लहराने लगती है।
आत्मा और परमात्मा का संबंध जुड़ जाता है यही वास्तविक योग है।